महाराणा प्रताप महाविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भाषाई संदर्भ विषय पर हुआ गहन विमर्श
मातृभाषा में शिक्षा से अधिक सशक्त और रचनात्मक बनेगा विद्यार्थी का व्यक्तित्व : प्रो. जंगबहादुर पाण्डेय
अकेले नहीं, संस्कृति के साथ चलती है भाषा : प्रो. धनजी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों को अपनाने में आगे है महाराणा प्रताप महाविद्यालय : डॉ. प्रदीप राव
गोरखपुर । दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा तथा पत्रकारिता विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. रामदेव शुक्ल ने कहा है कि भाषा के बिना शिक्षा की कल्पना अधूरी है। मातृभाषा के माध्यम से ज्ञान का संवहन ही भारतीय शिक्षा की आत्मा है।
प्रो. शुक्ल शनिवार को महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़, गोरखपुर के हिंदी विभाग एवं हिंदुस्तानी अकादमी, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। “राष्ट्रीय शिक्षा नीति भाषायी संदर्भ : चुनौतियां एवं समाधान” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रो. शुक्ल ने कहा कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करने के उद्देश्य से बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं के उन्नयन पर जोर दे रही है।
इसमें मातृभाषाओं के साथ त्रिभाषा फार्मूला के उन्नयन के अनेक प्रावधान सन्निहित हैं, जो भली-भांति अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सतत क्रियाशील हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में बहुभाषावाद को भी प्रोत्साहित कर रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के भाषाई संदर्भ पर यदि विचार करें, तो यह प्रत्येक विद्यार्थी को तीन भाषाएं सीखने को प्रेरित कर रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति वास्तव में मातृभाषा सहित बहुभाषावाद को बढ़ावा देने और भारतीय भाषाओं को जीवंत बनाए रखने का महनीय कार्य कर रही है। देश का शीर्ष नेतृत्व इसके लिए साधुवाद एवं प्रशंसा का पात्र है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि रांची विश्वविद्यालय, रांची के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जंगबहादुर पाण्डेय ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 केवल एक शैक्षणिक दस्तावेज नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और भाषा की पुनर्स्थापना का माध्यम है। शिक्षा मातृभाषा में मिलेगी तो विद्यार्थी का व्यक्तित्व अधिक सशक्त और रचनात्मक बनेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा के महत्व को बहुविध स्वीकार किया गया है और स्कूली शिक्षा में एक अहम बदलाव के रूप में मातृभाषा को शामिल किया गया है।
उन्होंने कहा कि भाषा केवल किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है, अपितु वह किसी देश की अस्मिता की पहचान है। जैसे अंग्रेजी से इंग्लैंड की, चीनी से चीन की और रूसी से रूस की वैश्विक पहचान बनी है, वैसे ही हिंदी से भारत की वैश्विक पहचान बनेगी। भारत की राजभाषा हिंदी, भारत मां के माथे पर बिंदी के समान है। प्रो. पाण्डेय ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन से भारत के प्रतिभावान विद्यार्थियों का भविष्य उज्जवल होगा और भारत पुनः विश्व गुरु बनेगा।
विशिष्ट अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान, दिल्ली के प्रो. धनजी ने कहा कि भाषा राष्ट्र की पहचान है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बहुभाषिकता की अवधारणा भारत की विविधता को एक सूत्र में बांधने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि भाषा कभी अकेली नहीं चलती, उसके साथ संस्कृति भी चलती है। आज के जेन-ज़ी युवा अपनी भाषा और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, ऐसे में मातृभाषा में शिक्षा देना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति और संस्कारों का संवाहक भी है।
इसलिए ऐसी संगोष्ठियां समय की मांग हैं, जहां शिक्षा के साथ संस्कृति का भी संगम हो सके। राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में स्वागत संबोधन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव ने किया। उन्होंने कहा कि यह महाविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों को अपनाने में आगे और संवेदनशील रहा है। इस महाविद्यालय की स्थापना ही राष्ट्रीयता के विचारों पर केंद्रित है। उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति के संबंध में भाषाई संदर्भ एक महत्वपूर्ण विषय है। इस विषय पर मंथन से निकलने वाले निष्कर्ष मार्गदर्शक होंगे। संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. आरती सिंह ने प्रस्ताविकी प्रस्तुत की।
उद्घाटन के बाद दो तकनीकी सत्रों का आयोजन
उद्घाटन सत्र के बाद प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के हिंदी विभाग के पूर्व आचार्य प्रो. रामदरश राय ने की। विषय विशेषज्ञ के रूप में डीसीएस खंडेलवाल पीजी कॉलेज, मऊ के प्राचार्य डॉ. सर्वेश पांडेय उपस्थित रहे। विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. सर्वेश पांडेय ने कहा कि किसी भी भाषा का ज्ञान गलत नहीं, पर सोच और शोध अपनी भाषा में होना जरूरी है। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. रामदरश राय नें कहा कि भाषाओं का आदान-प्रदान ज्ञान का विस्तार करता है, लेकिन शिक्षा और अभिव्यक्ति का माध्यम मातृभाषा ही होना चाहिए। मातृभाषा में सोचने और बोलने से व्यक्ति अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है और विचारों में आत्मीयता आती है।
प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ. राणा तिवारी, ज्ञानेंद्र पांडेय, राहुल यादव, निमिष सिंह सहित 7 लोगों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। सत्र का संचालन महाविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के प्रभारी डाॅ. वेंकट रमन पांडेय तथा प्रतिवेदन भूगोल विभाग की सहायक आचार्य डॉ. शालू श्रीवास्तव ने किया। द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के प्राचीन इतिहास ,पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष प्रो.राजवंत राव ने की।
सत्र में विषय विशेषज्ञ के रूप में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के हिंदी विभाग के आचार्य प्रो. दीपक प्रसाद त्यागी भी उपस्थित रहे। सत्र मे डॉ. यामिनी राय, डॉ. मनीषा कुमारी, डॉ. निमिषा सिंह तथा डॉ. विजय चंद्र मिश्र सहित 8 शोधार्थियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। सत्र का संचालन महाविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभाग के प्रभारी डॉ. सत्येंद्र नाथ शुक्ला तथा प्रतिवेदन अंग्रेजी विभाग की प्रभारी श्रीमती शिवानी सिंह ने किया।





