रिटायर्ड अधिकारियों ने कहा, जिंदगी बचाने की जंग में रोजी रोटी बचाना भी जरूरी

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अवधनामा ब्यूरो

लखनऊ. महामारी का रूप धारण कर चुके कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने देश-दुनिया में जैसी भयावह परिस्थितियां पैदा कर दी हैं उनसे बचने के लिए हर किसी को बिना समय गंवाए चेत जाना चाहिए। इस महामारी से तभी लड़ा और बचा जा सकता है जब हर कोई उसमें अपना सहयोग दे और ऐसा करते समय बेहद सतर्क रहे-कुछ वैसे ही जैसे युद्ध के समय हमारे सैनिक रहते हैं। न डरना है और न डराना है, लेकिन सतर्कता में कोई कमी भी नहीं आने देनी है। जिंदगी बचाने की इस जंग में रोजी रोटी बचाने पर भी ध्यान देना होगा, तब ही सबका भला होगा।

देश और प्रदेश में जब ऐसा करने की जरूरत है तब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को लखनऊ, कानपुर और वाराणसी सहित पांच शहरों में 26 अप्रैल तक पूर्ण लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया। हालांकि योगी सरकार लॉकडाउन लगाने को तैयार नहीं हुई और सुप्रीम कोर्ट के जरिए इस आदेश पर रोक लगवाने में सफल रही। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाकर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार के इस फैसले पर मोहर लगाई है कि योगी सरकार राज्य में आम जन जीवन के साथ उनकी आजीविका को भी बचाना चाहती है, क्योंकि ग़रीब व्यक्तियों और ग़रीब परिवारों को लॉकडाउन की वजह से बहुत नुक़सान होता है।

प्रदेश सरकार का यह कहना कि गरीब व्यक्तियों और ग़रीब परिवारों को लॉकडाउन की वजह से बहुत नुक़सान होता है। सौ फीसदी सही कथन है। इस संबंध बीते वर्ष जब देश भर में लॉकडाउन लगा था, तो उसके नतीजे बेहतर नहीं मिले थे। तब लगे लॉकडाउन की तमाम शोध रिपोर्ट में यह बताया गया था कि लॉकडाउन कोरोना संक्रमण पर अंकुश लगाने का कोई रामबाण इलाज नहीं है। इसके बाद भी वर्तमान में तमाम नेता और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग कोरोना को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाने की मांग कर रहे हैं।

वास्तव में अपने देश तथा प्रदेश में ऐसा लग रहा है कि लॉकडाउन को कोरोना वायरस से लड़ने का रामबाण नुस्खा मान लिया गया है। जो उचित नहीं है। असल में यह अपने समाज की सोच है कि किसी भी समस्या का जो सबसे आसान समाधान दिखे उसे आजमाया जाए और बाद में उसको ही असली समाधान मान लिया जाए। लॉकडाउन को लेकर भी बीते 24 घंटे में जो विमर्श हुआ, उससे ऐसा ही लगता है कि इसी को कोरोना वायरस खत्म करने का असली नुस्खा मान लिया गया है। परन्तु हकीकत यह है कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन ढेर सारे उपायों में से एक उपाय है, जिससे वायरस के संक्रमण की श्रंखला टूटेगी। इससे वायरस खत्म नहीं होगा और न जिनको वायरस का संक्रमण हो गया है वे ठीक हो जाएंगे। इससे ज्यादा से ज्यादा यह संभावना है कि संक्रमण की रफ्तार कम होगी। ध्यान रहे चंद दिनों के लॉकडाउन या कर्फ्यू से इसको खत्म नहीं किया जा सकता। लेकिन इससे देश और समाज की आर्थिक स्थिति खराब होती है।

इसी सोच के तहत मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ, कानपुर और वाराणसी सहित पांच शहरों में 26 अप्रैल तक पूर्ण लॉकडाउन लगाने संबंधी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का निर्णय लिया। योगी सरकार के इस फैसले को सूबे में अहम पदों प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभाकर रिटायर हो चुके कई नौकरशाहों ने उचित माना है।

रूद्र प्रताप सिंह सिंह ऐसे ही रिटायर आईएएस हैं जिन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखा पत्र सोशल मीडिया पर जारी किया है। इस पत्र में उन्होंने लिखा है कि मेरा यह मानना है कि उच्च न्यायालय का अधिकार एवं दायित्व यह नहीं है कि राज्य सरकार अथवा केंद्र सरकार को यह स्पष्ट आदेश दें कि किस प्रकार शासन चलाना है। सरकार के पास बहुत सारी समस्याएं और तथ्य होते हैं उन्हें अपने राज्य के, अपने देश के सारी जनता की समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए शासन चलाने हेतु निर्णय लेना पड़ता है, विशेष करके गरीबों और असहाय लोगों को प्राथमिकता पर रखना होता है।

पूर्व डीजीपी जीवीद अहमद भी यह मानते हैं कि न्यायालय को आदेश पारित करते हुए बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए। सूबे के एक पूर्व मुख्य सचिव सहित कई अन्य रिटायर को चुके प्रशासनिक अफसर कहते हैं कि पूर्ण लॉकडाउन करना, सबको घरों में बंद रहने की हिदायत देना, बाजार बंद करवाना, ट्रेनें न चलाना, सड़कें खाली करवाना कोरोना संक्रमण को रोकने के अब सफल उपाय साबित नहीं हो सकते हैं। जिंदगी बचाने की जंग में रोजी रोटी बचाने के उपाय करते हुए सबको साथ लेकर सतर्क रहते हुए ही कोरोना से बचाव किया जा सकेगा।

इन प्रशासनिक अफसरों का यह भी कहना है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 17 लाख से ज्यादा लोग ऐसे थे, जिनके पास घर ही नहीं था। यकीनन यह संख्या पहले से कुछ बढ़ी ही होगी। देश की कुल श्रम शक्ति का करीब 95 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र में सक्रिय है, जिसके पास कहने को घर जरूर है लेकिन घर में हफ्ते-दस दिन बंद रहना उनमें बहुतों का जीना मुश्किल बना सकता है। ऐसे में यूपी सरकार का सूबे के कमजोर तबकों के हक में खड़े होकर लखनऊ सहित पांच शहरों में 26 अप्रैल तक पूर्ण लॉकडाउन ना करना उचित ही कहा जाएगा।

जीवन और आजीविका के बीच में एक संतुलन रखना आवश्यक है, उसी संतुलन के मद्देनज़र उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए हैं, जैसे प्रत्येक शहर में रात्रिकालीन कर्फ्यू, इसके साथ साथ साप्ताहिक बंदी के लिए शनिवार रात्रि से लेकर सोमवार प्रातः काल तक बंदी। इसके साथ ही इस बंदी के दौरान सरकार पूरे प्रदेश में सफाई, सैनेटाइज़ेशन कार्यो की व्यवस्था की है, जिसके कार्य पूरे प्रदेश में निष्पादित होते हैं।

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प्रदेश सरकार आम जन जीवन के हित के लिए जितनी भी उचित व्यवस्थाएं होंगी वह कर रही है, ताकि जीवन भी चले और जीविका भी चले। इसी क्रम में योगी सरकार दिल्ली और महाराष्ट्र में लॉकडाउन लगने के कारण इन क्षेत्रों से लौट रहे प्रवासी श्रमिकों के भी घर तक पहुँचने की मुफ़्त में व्यवस्था कर रही है, और इन प्रवासी श्रमिकों का भी देखभाल भी करने के बारे में संकल्पित भी है। सरकार का दावा है कि प्रवासी श्रमिको के स्वास्थ्य और इनके खाने की व्यवस्था प्रदेश सरकार करेगी।

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