अम्बेडकरनगर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) ने स्वास्थ्य विभाग की कमान संभालते ही जनता को उम्मीद थी कि सरकारी अस्पताल “ICU से वार्ड” में शिफ्ट हो जाएंगे। लेकिन हकीकत में सिस्टम अभी भी वेंटिलेटर पर सांस ले रहा है, और मरीजों का भरोसा “पोस्टमार्टम टेबल” पर पड़ा है। सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का अकाल है, तो प्राइवेट सेंटर्स पर CMO साहब का “सील का इंजेक्शन” तैयार है। यहां मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, तो टेस्ट किट का वही हाल है, जैसे महीने के आखिर में मोबाइल डाटा गायब हो जाता है। डॉक्टर कम, “जांच डांसर” ज्यादा मिलते हैं, जिनका बीपी मापने का स्टाइल “पेटेंटेड डांसिंग स्टेप्स” वाला है।
मरीज अस्पताल में लाइन में ऐसे खड़े रहते हैं, मानो सलमान खान की फिल्म का फर्स्ट डे-फर्स्ट शो देखने आए हों। लेकिन इलाज? वो तो “इंतजार के बाद की स्क्रिप्ट” है।उधर, CMO साहब ने प्राइवेट क्लीनिक, पैथोलॉजी और डायग्नोस्टिक सेंटर्स की नींद उड़ा दी है। नियम-कानून ऐसे थोपे जा रहे हैं, जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अम्बेडकर नगर में हेडक्वार्टर खोल लिया हो। शर्तें साफ हैं: डॉक्टर बैठाओ, लाइसेंस रिन्यू कराओ, और डेढ़ लाख की फीस जमा करो।
नहीं तो सेंटर पर लगेगा “सील का इंजेक्शन”! संचालकों का कहना है कि ये रकम मरीजों की जेब से ही वसूली जाएगी। यानी, CMO काटे संचालक को, संचालक काटे मरीज को – एकदम “कटिंग-चेन सिस्टम”!मरीजों की पुकार है कि सुधार की उम्मीद में आए थे, लेकिन CMO साहब ने उनके भरोसे का “पोस्टमार्टम” कर दिया। अस्पताल इलाज कम, मरीजों के विश्वास को “ICU में एडमिट” ज्यादा कर रहे हैं।
वहीं, जब एक पत्रकार ने CMO साहब से पूछा कि कितने सेंटर्स का रजिस्ट्रेशन हुआ, तो जवाब मिला, “ऑफिस में आ जाइए। और जब पत्रकार ने अपना परिचय दिया, तो तपाक से सुनने को मिला, “बहुत लोग पत्रकार-पत्रकार बताते हैं!” सवाल उठता है कि CMO साहब को जनता और पत्रकारों से इतनी “एलर्जी” क्यों? शायद “ऊपरी कमाई की नाड़ी” दबने का डर हो! स्वास्थ्य सिस्टम “वेंटिलेटर” पर है, मरीजों का भरोसा “ICU” में, और CMO साहब का “मेडिकल मैजिक शो” पूरे शबाब पर। लेकिन असली जादू – यानी सुधार – अभी दूर की कौड़ी है। जनता पूछ रही है, “इलाज कब होगा, साहब?” *अधिक जानकारी के लिए हमारे संवाददाता से संपर्क करें, बशर्ते CMO साहब “पत्रकार-एलर्जी” का इलाज करा लें।