हे काव्य दीप साहित्य दीप सकल सृष्टि ज्योर्तिमय कर दे ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय काव्य गोष्ठी

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 लखनऊ 29 अक्टूबर 2020। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अग्रणी रचना संसार के तत्वाधान में आज ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय काव्य गोष्ठी का आयोजन आचार्य इंदु प्रकाश और डॉ स्मिता मिश्रा की अध्यक्षता और मोनिका शर्मा के संचालन में किया गया।
 राहुल देव के मुख्य आतिथ्य और मानवी के मां वीणा वादिनी अभिनंदन के साथ आरंभ हुई काव्य गोष्ठी में डॉ कृष्णा आर्य ने कहा “महलां की राणी सीता जंगल मैं चाली आंख्यां सै बहणे लाग्या नीर, राम सुण प्रियतम मेरे”। विजयेन्द्र मोहन की बानगी थी जब जब जन्म लेती है बेटी खुशियां साथ लाती है।
 डॉ सविता स्याल की पंक्तियाँ थी “औरत कभी अपने से मुलाकात करो जानो अपने अस्तित्व को”। मनीष माना ने कहा “है मां तो है उजालों का सवेरा है मां तो है सुंदर सा सवेरा”। वीणा अग्रवाल ने सुनाया ” जिसने समझ ही ना अपने साथ का मन उसको हर वक्त होती है मन में घुटन”। पवन द्विवेदी जी(जर्मनी) की पंक्तियाँ थी “हांँ हांँ एक परिंदा हूं मैं जमीन पर जितना था आसमान पर उतना ही जिंदा हूं मैं”।
मन को मोह लेने वाली इस प्रस्तुति के उपरान्त श्वेता आनंद (लंदन) ने कहा “हलचल है मन में उमड़ता विचारों का सैलाब”। इन्द्र देव यदु की बानगी थी
“अभी तेरे देश में बापू मांस मदिरा बेच रहे बापू की जयंती पर सबके सारे व्यापार बंद रहे”। दीप शुक्ल (कनाडा) की पँक्तियाँ थी “मैं त्रिलोक विजय की गाथा परम तपस्वी धुर ज्ञान ज्ञानी देव, असुर, गंधर्व, नाग, किन्नर सब करते रखवाली”।
डॉ अनीता शर्मा (चीन) ने कहा किसी ने पूछा कौन सा इत्र लगाती हो?”। डॉ साधना जोशी (कनाडा) ने सुनाया हे काव्य दीप साहित्य दीप सकल सृष्टि ज्योर्तिमय कर दे। सुरेखा शर्मा ने कहा ” मां” खुशियों में बहुत साथ दे जाएंगे दुख में बस मां के हाथ ही रह जाएंगे। काव्य गोष्ठी में इसके अलावा मोनिका शर्मा, प्रीति मिश्रा, कनल प्रवीण शंकर त्रिपाठी, ओम प्रकाश श्रीवास्तव, संध्या दीक्षित, डॉ पल्लवी मिश्रा और विवेक बरसैया ने अपनी-अपनी कविता की पंक्तियों से श्रोताओं को देर तक अपने आकर्षण के जाल में बांधे रखा। प्रीति मिश्रा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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