ग़ैर सरकारी मोलवी अगर बेदार होते?

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वकार रिज़वी

सरकारी मोलवियों तो इस क़दर बेदार हैं कि सत्ता बाद में बदलती है वह गिरगिटान से भी पहले अपना रंग बदल लेते हैं इनकी अपनी मजबूरी भी है, यह वफ़ ादार हैं, उनके, जिनका वह नमक खाते हैं, इसलिये उनसे इसकी तवक़्कों, कि वह एहतिजाज करें, बेमाने है, और सि$र्फ सरकारी मोलवी ही क्यों? तमाम मुस्लिम आर्गनाईज़ेशन जो मुसनमानों की नुमाइंदगी का दावा करती है इसके नुमाइंदे न सिफऱ् सरकार के कऱीब अपने ज़ाती रसूख़ बढ़ाते हैं बल्कि अपनी माली हैसियत में भी दिन दूनी रात चौगनी तरक़्क़ी करते हैं, लेकिन लाखों मस्जिद के वह इमाम जिनके पीछे यह 20 करोड़ मुसलमान दिन में 5 बार नमाज़ पढ़ते हैं, अगर वह बेदार होते तो हर तरफ़ पुलिस जो मुसलमानों पर एकतर$फा ज़ुल्म कर रही है उसके मज़ालिम से मुसलमानों को बचा सकते थे। सि$र्फ मुजफ़्फ़ रनगर में 67 मुसलमानों की दुकाने सील कर दी गयीं, हज़ारों लोगों को पुलिस गिरफ़्तार कर चुकी है और अभी भी दिन रात दबिश जारी है, दबिश के नाम पर बेकसूर, लाचार मुसलमान औरतों की बेहुरमती हो रही है लेकिन हमारे सरकारी मोलवी नमक का हक़ अदा करने की वजह से और ग़ैर सरकारी मोलवी हजऱात बेदार न होने की वजह से ख़ामोश हैं वरन् मुसलमान इलाक़ो में यह आगजऩी, तोडफ़ोड़ हरगिज़ न होती। यक़ीनीतौर पर अभी भी कोई यह नहीं कह सकता कि यह मुसलमानों की नसमझी का नतीजा है या किसी की सोची समझी साजि़श? अगर हमारे ग़ैर सरकारी मोलवी बेदार होते तो ऐसा हरगिज़ नहीं होता, उन्हें एनआरसी और सीएए के बारे में सही तरीक़े से मालूम होना चाहिये था, उन्हें इसे अच्छी तरह से समझना चाहिये था, कि इसके पीछे अस्ल सियासत क्या है? इन तमाम ग़ैर सरकारी मोलवियों को क़ौमी हमदर्दी रखने वाले वकीलों से तबादलये ख्य़ाल करना चाहिये था फिर अपने शक को सरकारी अमले के सामने रखना चाहिये था और जब बात न बनती तो फिर उन हिन्दु भाईयों को अपने साथ लेना चाहिये था जो हमारी लड़ाई दिन रात लड़ते हैं और सबको एक साथ पूरे हिन्दुस्तान में जुमे के दिन अपनी अपनी मस्जिदों से निकल कर बहुत ही पुरअम्न तरीक़े से एक तयशुदा जगह पर एहतिजाज करना चाहिये था, और तब तक डटे रहना चाहिये था जब तक आपकी बात सुनी न जाती। तब शायद आपको रोकने का कोई बहाना नहीं होता और अगर तब कोई रोकता तो जो आपके साथ वह भी होते तो आपके साथ आज नहीं हैं क्योंकि पूरे देश में एक बेचैनी है, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई सब सड़कों पर हैं और देश में ही क्यों दुनियां के आलिम-ए-आफ़्ता मुल्क भी इससे अलग नहीं हैं, एहतिजाज तो लन्दन और मुम्बई जैसे शहर में भी हो रहा है और यक़ीनन होना भी चाहिये क्योंकि संविधान ने हम सभी देशवासियों को इसका हक़ दिया है, कि अगर हम किसी बात से सहमत नहीं हैं तो उसका विरोध करें, लेकिन शान्तिपूर्वक इस विरोध में आगजऩी और तोडफ़ोड़ की कोई जगह नहीं, किसी सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचना देश का नुकसान करना है वैसे भी हिंसा का साथी कोई नहीं, सरकारी क्षति देशद्रोह के समान है और देशद्रोही का साथ कभी कोई नहीं दे सकता। योगी जी ने बिल्कुल ठीक कहा कि सरकारी क्षति की जि़म्मेदारी $िफक्स की जायेगी और इसकी वसूली क्षति करने वाले की सम्पत्ति से की जायेगी, ऐसा ही होना चाहिये काश योगी जी आसाम के भी मुख्यमंत्री होते और वहां भी ऐसा ही किया जाता और काश योगी जी उस वक़्त भी होते जब 1984 में सिख दंगे हुये, 1992 में बाबरी मस्जिद के लिये रथ यात्रा या उसके शहीद होने के वक़्त जो सरकारी सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया फिर चाहे 2002 का गुजरात हो या समाजवादी पार्टी के समय का मुजफ़़्$फरनगर या फिर अभी जाट आंदोलन में जिसमें करोड़ों रूपये की राष्ट्रीय सम्पित्ति का नुकसान हुआ, लेकिन कोई बात नहीं जब से जागे तब से सवेरा। बस यह क़ानून मुसलमानों के लिये ही ना काम करे बल्कि सबके लिये हो तो ही देश हित में होगा वरन मुसलमान दुश्मनी के सिवा और क्या कहा जायेगा।

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