दुनियां में जितने मज़हब है उसमें इस्लाम को यह इंफ़िरादियत हासिल है कि इल्म जितना जितना बढ़ता जायेगा इस्लाम पर यक़ीन बढ़ता जायेगा साइंस जितनी जितनी तरक़्क़ी करती गयी और हम अपनी हठधर्मी छोड़ साइंसी इल्म को जितना अपनाते गये हमारी परेशानियां ख़ुद ब ख़ुद ख़त्म होती गयीं। इसकी ताज़ी मिसाल ईद का चांद है, हम सब जानते हैं कुछ साल पहले तक हम सब ने ईद तीन तीन दिन मनायी है वरना यह तो आम बात थी कि रात दो बजे एलान हो गया कि ईद का चांद हो गया, दिन में रोज़ा रखे हुये एलान हो गया कि आज ईद है आप लोग रोज़ा तोड़ दें, ईद की नमाज़ कल होगी, लेकिन डा. कल्बे सादिक़ साहब ने इस मसले को हमेशा हमेशा के लिये ख़त्म कर दिया जिससे ईद पिछले कई सालों से बहुत पहले से तय मुययना दिन और तारीख़ को होने लगी। हालांकि पिछले 10 सालों से अवधनामा के कैलेंडर में भी 9 महीने पहले छपी तारीख़ जो ईद की दर्शायी गयी ईद उसी तारीख़ को ही हुई लेकिन इसे आप महज़ इत्तेफ़ाक़ भी कह सकते हैं यह कभी ग़लत भी हो सकती है क्योंकि यह किसी साइंसी इल्म की बुनियाद पर नहीं होती मगर डा. कल्बे सादिक़ साहब की रमज़ान से पहले रमज़ान और ईद का एलान एक साइंसी इल्म के आधार पर होता है जिसका ग़लत होना शायद मुमकिन नहीं और जब से इस इल्म का इस्तेमाल हो रहा है अभी तक कभी कोई ग़लती भी नहीं हुई है। इसलिये अब इसकी ज़रूरत है कि पुरानी रिवायतों को छोड़कर नई तहक़ीक़ो से फ़ैज़याब होना चाहिये जिससे इस्लाम किसी दुशवारी का मज़हब नहीं बल्कि हर दुश्वारी को दूर करने का मज़हब कहलाये।
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