अवधनामा संवाददाता
रमजान में खैरात, जकात, सदका व गरीब, मजलूमों की मदद करने से बेहद सवाब मिलता है
कुशीनगर। रमजान उल मुबारक का पहला अशरा गुजरने के बाद दूसरा अशरा जो कि अपने गुनाहों से मगफिरत का शुरू हो गया है। इसके साथ ही नमाज और तरावी अदा करने के लिए मस्जिदों में रोजेदारों की भीड़ में काफी इजाफा हो रहा है। माहे रमजान का महीना मोमिनो के लिए अल्लाह की बात का खास महीना है।
ये बातें मदरसा इस्लामिया अहले सुन्नत बदलपट्टी के हाफिज व मौलाना जियाउल मुस्तफा अजीजी ने कही। उन्होंने बताया कि दस रमजान का पहला अशरा रविवार को खत्म हो गया। दूसरा अशरा सोमवार से शुरू हो गया है। जिस रोजोदार की इबादत में अगर कोई कमी पहले अशरे में रह गई हो तो वह दूसरे अशरे में उसे पूरा कर सकता है। इस अशरे में रोजोदार शिद्दत के साथ इबादत व तिलावत करें और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगे। बेशक अल्लाह अपने बंदों के गुनाहों को माफ करता है और उनकी मुश्किलों को दूर करता है। इसलिए अशरा ए मगफिरत के एक एक पल कद्र करें अल्लाह से अपने हर छोटे-बड़े गुनाहों की तौबा मांगे। माहे रमजान में हर तरह की इबादतों का यूं तो खास मर्तबा है, लेकिन रमजान में खैरात, जकात, सदका करने के साथ ही गरीब, मजलूमों की मदद करना बेहद सवाब का काम है। रमजानूल मुबारक रूह को पाक करके अल्लाह के बेहद करीब जाने का मौका देता है। इंसान को अपनी जिंदगी सही राह पर लाने का पैगाम देता है, और अल्लाह की नेमतों के साथ ही उसकी इबादत का जरिया है। रोज एक ऐसी इबादत है जिससे रोजेदार के अंदर इंसानियत का जज्बा पैदा होता है। रोजेदार जब रोजे की हालत में पूरे दिन भूखा प्यासा रहकर अल्लाह की इबादत में मशगूल रहा है। भूख प्यास की तड़प के बीच जबान से रूह तक पहुंचने वाली खुदा की वही इबादत हर मोमिन को उसका खास बना देती है। रमजान खुद को हर बुराई से बचाकर अल्लाह के नजदीक ले जाने की यह सख्त कवायद हर मुसलमान के लिए खुद को पाक साफ करने का बेहतरीन मौका है।