तामिलनाडु के श्रमिक

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एस. एन. वर्मा

तामिलनाडु में विभिन्न राज्यों के लगभग दस लाख श्रमिक जीविका उपार्जन करते है। इन्हीं श्रमिकों के बदौलत तामिलनाडु इन्डस्ट्रियल पावर हाउस बना हुआ है। तामिलनाडु क्या पूरे भारत में एक दूसरे राज्यों से आये श्रमिक भारतीय अर्थव्यवस्था के स्तम्भ है। तामिलनाडु में मैन्युफैक्चरिग उद्योग प्रमुखता से है। इसकी वजह यह है कि विनिमार्ण उद्योग के लिये श्रमिक सस्ते में मिल जाते है। अन्य राज्यों से आये श्रमिकों की बहुलता की वजह से और वहां के स्थानीय श्रमिक मिलकर अच्छा खासा श्रम बाजार तैयार कर देते है जिसका लाभ उद्योगपति सस्ता श्रम पाकर उनका लाभ उठा अपना उद्योग बढ़ाते है। उद्योग किसी राज्य में विकसित हो लाभ तो पूरे भारत को मिलता है। श्रमिक तो श्रमिक होते है भाईचारे के साथ सब मिलजुलकर रहते है।
अब राजनैतिक पार्टिंयां अपने पार्टी विस्तार के लिये बहुत ही निम्न और अमानवीय तरीके के अपनाते है। किसी को अपनी पार्टी के पक्ष में करना है तो वाकपटुता के साथ-साथ वक्ता की कर्मशीलता भी काम करती है। जो एक व्यस्था की तरह होती है। नेता का व्यक्तित्व उसका इतिहास काम करता है। पर आज कल के पार्टी प्रसार करने वालो में यह सब नहीं है वे सरल रास्ते अपनाते है, आफवाह फैलाकर आपस में एक दूसरे को लड़ाकर आप से वैमनस्य फैलाकर लोगों को बांटते है। फिर उन्हें उनका हितैषी बताकर अपनी पार्टी की ओर खीचते है। आजकल चूकि सोशल मीडिया चल निकला है इसलिये फेक न्यूज फेक दृश्य दिखा कर लोगो को उत्तेजित कर अपने पक्ष में खीचते है।
तामिलनाडु में यही हुआ है। वहां दिखाया गया कि भीड़ हिन्दी बोलने वालो की पीट रही है। इसका असर इतना खराब पड़ा कि चूकि बिहार से ज्यादा श्रमिक तामिलनाडु में गये है उनके परिवार वालो ने बिहार के मुख्यमंत्री पर इतना दबाव बनाया कि उन्हें पुलिस टीम तामिलनाडु भेजनी पड़ी। पता चला विडियो फेक है भाषण फेक है, ज्यों तस्वीर दिखाई गई वह कही सेे उठाकर जोड़ तोड़ कर एडिट करके दिखाई गई है।
बात यहां तक बिगड़ी की चेन्नै सरकार ने भाजपा के तामिलनाडु चीफ को बुक करा दिया। उन पर आरोप लगाया वैमनस्यता फैलाने का हिंसा भड़काने का एक गु्रप के सामने उत्तर भारतियों पर तामिलनाडु सरकार द्वारा मिथ्या आरोप लगाने का इस तरह की राजनीति देश के कहा लेकर जायेगी।
नार्थ के लोग साउथ में कार्य करने के हालात बहेतर होने की वजह से जाते है। त्रिपुरा टेक्सटाईल और होजरी का हब इन्हीं प्रवासी श्रमिको की वजह से बना हुआ है। अब श्रमिको का राज्यवार बटवारा, उन्हें बाहरी करार देना सारा आर्थिक ताना बाना ध्वस्त कर देगा। यह राज्य और देश दोनो के लिये अक्षम्य होगा। सभी को सीमित दृष्टि कोण से हटकर देश और जनता के परिप्रेक्ष में सोचना और करना होगा।
चेन्ने सरकार से उम्मीद है वह इसे दबाने के लिये दुश्मनी वाला रवैया नही अपनाये। देश में कुछ पार्टियांे ने स्थानीय कार्यक्रम अपना कर कुछ स्पेस बनाया है पर वह स्पेस अब खिसक रहा है। शिवसेना जवलन्त उदाहरण है। भाजपा का कैनवास बहुत बड़ा है। उसकी पार्टी को पावर विभाजन तामिलनाडु में नही पैदा करना चाहिये। भाजपा जेडीयू, डीएमके तीनों की सम्मिलित जिम्मेदारी बनती है राज्य का ताना बाना बिगड़ने नहीं दे। कोई गुत्थी पैदा होती है तो राज्य के मुखिया आपस में बात चीत कर उसका निराकरण करें।
पार्टी हेड की अपने राज्यस्तर के व स्थानीय नेताओं को निर्देशित करना चाहिये कि उनके कर्ता वैमन्स्यता वाला तथा बंटवारे वाला राजनीति न करे। पार्टी सदस्यता बढ़ाने पर पार्टी की पहुच मतदाताओं तक पहुंचाने के लिये इस तरह के हथकन्डे नहीं अपनाये जैसे तामिलनाडु में हुआ है। सभी को मिल कर पहले वाला वातारण लाना होगा। अभी तामिलनाडु के उद्योगपति डर रहे है कि जो श्रमिक डर कर अपने राज्यों की ओर कूच कर रहे है खासतौर से बिहार के श्रमिक वे डर से वापस न लौटे तो उनका उद्योग चौपट हो जायेगा। तामिलनाडु सरकार अश्स्त करे श्रमिको को वे निडर होकर वापस आये। बिहार सरकार खबरो के गलत होने के बारे में अश्स्त करें। अगर वे श्रमिक वापस नहीं गये तो बिहार सरकार के लिये भी एक समस्या बन जायेगे।

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