Thursday, October 2, 2025
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सेवा समर्पण संस्थान, ललितपुर ने मनाया रक्षा सूत्र कार्यक्रम

ललितपुर। वनवासी कल्याण आश्रम से सम्बृद्ध, सेवा समर्पण संस्थान, ललितपुर की जिला समिति एवं ललितपुर नगर इकाई द्वारा रक्षाबंधन का पर्व “रक्षा सूत्र” के रूप में बड़ी धूमधाम से पनारी एवं खिरिया खुर्द गांव के सहरिया बस्ती में मनाया गया। कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत मां भारती, माँ शबरी और बिरसा मुंडा जी के चित्र पर मयार्पण, दीप प्रज्वलन एवं वंदना से की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता इंजीनियर हाकिम सिंह (जिला अध्यक्ष, सेवा समर्पण संस्थान) जी ने की। उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन के पर्व का महत्व भारतीय जनमानस में प्राचीन काल से है। ध्यातव्य है कि पुरातन भारतीय परंपरा के अनुसार समाज का शिक्षक वर्ग ‘रक्षा सूत्र के सहारे देश की महान ज्ञान परंपरा की रक्षा का संकल्प शेष समाज से कराता था। अभी भी हम देखते हैं कि किसी भी अनुष्ठान के बाद ‘रक्षा सूत्र के माध्यम से उपस्थित सभी लोगों को रक्षा का संकल्प कराया जाता है। इस सबके मूल अध्ययन में यही ध्यान में आता है कि लोग शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार समाज की रक्षा का संकल्प लेते हैं।

श्रीमान सुबोध गोस्वामी (मंत्रीनगर समिति, सेवा समर्पण संस्थान) जी ने बताया कि संघ के संस्थापक परमपूज्य डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने हिन्दू समाज में ‘समरसता स्थापित करने के उद्देश्य से इस उत्सव को मनाने का निर्णय उन्होंने इस संकल्प के साथ किया कि समस्त हिन्दू समाज मिलकर समस्त हिन्दू समाज का रक्षक बने। घासीराम जी (अध्यक्ष कानपुर बुन्देलखण्ड क्षेत्र) ने बताया कि रक्षाबंधन वैसे तो हिन्दू समाज के परिवारों में बहिनों द्वारा भाइयों को रक्षा सूत्र बांधना, यह इस पर्व का स्थायी स्वरूप था। संघ के उत्सवों के कारण इसका अर्थ विस्तार हुआ। सीमित अर्थों में न होकर व्यापक अर्थों में समाज का प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक वर्ग की रक्षा का संकल्प लेने लगा। समाज का एक भी अंग अपने आपको अलग-थलग या असुरक्षित अनुभव न करने पाये – यह भाव जाग्रत करना संघ का उद्देश्य है।

डॉक्टर जगवीर सिंह (नगर अध्यक्ष सेवा समर्पण संस्थान ललितपुर) ने अपने वक्तव्य में कहा कि महाविकट लंबे पराधीनता काल के दौरान समाज का प्रत्येक वर्ग ही संकट में था। सभी को अपने अस्तित्व की सुरक्षा एवं प्राण रक्षा की चिंता थी। इस कारण समज के छोटे-छोटे वर्गों ने अपने चारों ओर बड़ी दीवारें बना लीं। समाज का प्रत्येक वर्ग अपने को अलग रखने में ही सुरक्षा का अनुभव कर रहा था। इसका लाभ तो हुआ, किंतु भिन्न-भिन्न वर्गों में दूरियां बढ़तीं गईं। हिन्दू समाज में ही किन्हीं भी कारणों से आया दूरी का भाव बढ़ता चला गया। कहीं-कहीं लोग एक दूसरे को स्पर्श करने से भी भयभीत थे। कुछ लोग, कुछ लोगों की परछाईं से भी डरने लगे। जातियों के भेद गहरे हो गये। भाषा और प्रांत की विविधताओं में कहीं-कहीं सामञ्जस्य के स्थान पर विद्वेष का रूप प्रकट होने लगा। यह विखण्डन का काल था। ऐसा लगता था कि हिन्दू समाज अनगिनत टुकड़ों में बंट जायेगा। सामञ्जस्य एवं समरसता के सूत्र और कम होते गये। विदेशी शक्तियों ने बजाय इसके कि इसको कम किया जाये, आग में घी डालने का काम किया।

जाति, धर्म, भाषा, धनसंपत्ति, शिक्षा या सामाजिक ऊंचनीच का भेद अर्थहीन है। रक्षाबंधन का सूत्र इन सारी विविधताओं और भेदों के ऊपर एक अभेद की सृष्टि करता है। इन विविधताओं के बावजूद एक सामरस्य का स्थापन करता है। इस नन्हें से सूत्र से क्षणभर में स्वयंसेवक परस्पर आत्मीय भाव से बंध जाते हैं। परम्परा का भेद और कुरीतियों का कलुष कट जाता है। समाज में प्रेम और एक दूसरे के प्रति समर्पण का भाव गहराई तक सृजित होता है। इसके साथ ही सुख-दुःख में खड़े रहने, समानता-समरसता को सशक्त करने, संस्कारयुक्त, समरस व समतामूलक समाज का वचन लेती हैं। ये किसी भी ‘आदर्श समाज के लक्षण हैं जिसके निर्माण में संघ अनवरत रत है। ‘रक्षाबंधन उत्सव इसी दिशा में एक सोपान स्वरुप है जो ‘विश्वगुरु भारत’ का मार्ग प्रशस्त करेगा। अंत में डॉ जगवीर सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम में पनारी गांव में 45 और खारिया खुर्द गांव में 90 के करीब भाई बहिन उपस्थित रहे। सभी ने कार्यक्रम के अंत में एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधे और प्रसाद वितरण किया।

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