
जो वक़्त के साथ चला वक़्त ने भी उसी का साथ दिया। कई महीनें पहले एक इन्टरव्यू में डा. अम्मार रिज़वी से पूछा गया कि भाजपा में मुसलमानों के लिये जो यह तल्ख़ी है, यह जो नफ़रत है, इसे कैसे दूर किया जा सकता है ? उन्होंने फ़ौरन मुस्कराते हुये कहा यह तो बहुत आसान है आप उनके क़रीब चले जाईये सारी तल्ख़ी सारी नफ़रतें अपने आप ख़त्म हो जायेंगीं। आज जब हम देखते हैं तो यह बिल्कुल हक़ीक़त पर मबनी है। शिया सुन्नी में भी जो तल्ख़ी है वह सिर्फ़ इस बिना पर कि वह एक दूसरे से दूर बहुत दूर हैं और जहां शिया सुन्नी एक दूसरे के क़रीब हैं वहां कोई तल्ख़ी नहीं कोई नफ़रत नहीं बल्कि एक दूसरे के लिये सीना सिपर हैं।23 तारीख़ को जो नतायज आये उसने आंखे खोल दीं उत्तर प्रदेश में गठबंधन सिर्फ़ वह ही सीटें जीत पाया जहां मुसलमानों का उसको एकतरफ़ा सपोर्ट मिला नहीं तो समाजवादी पार्टी अपने परिवार की भी सीटें नहीं बचा पायी, लेकिन इन्होंने मुसलमानों को दिया किया, मुज़फ़फर नगर को वह दिल दहला देने वाला हादसा, पी.सी.एस. जे. से उर्दू को पेपर किसने ख़त्म किया, किसने उर्दू को दूसरी ज़बान होने के बावजूद वह दर्जा नहीं दिया जो उसे दिया जाने चाहिये था। हमनें सबपर एतबार किया आंखे बंद कर बिना कुछ मांगें वोट दिया फिर सच्चर कमेटी की जो रिपोर्ट मुसलमानों के बारे में हैं उसकी भाजपा ज़िम्मेदार तो नहीं। अब अगर राजनाथ सिंह जैसे लोग कह रहे हैं कि हम चाहते हैं कि मुसलमानों के एक हाथ में अगर क़ुरआन हो और दूसरे हाथ में लैपटाप, तो क्यों न उनको भी एक मौक़ा दिया जाये और इस नफ़रत और तल्ख़ी को दूर करने के लिये डा. अम्मार रिज़वी के मशवरें पर भाजपा से क़रीब भी जाकर देखा जाये मगर इज़्ज़त और वक़ार के साथ अपनी अना और अपनी तहज़ीब अपने अक़ीदे को ताक़ पर रखकर नहीं।