Sunday, April 28, 2024
spot_img
HomeNationalदेशभक्ति, आस्था और धर्म की जीत

देशभक्ति, आस्था और धर्म की जीत

Hindi and Urdu Newspaper India
वक़ार रिज़वी 
9415018288

इलेक्शन भी एक साइंस है एक मैनेजमेंट है और इसी का उदाहरण पेश किया मोदी जी और अमित शाह की टीम ने, उन्होंने बताया कि अपनी शक्तियों और अपने अधिकार का कैसे उपयोग किया जाता है, जनता के दिल को कैसे छुआ जाता है, जनता से अपने दिल की बात कैसे की जाती है और अपनी बात जनता के दिल में कैसे उतारी जाती है, उन्होंने बताया कि कौन सी बात युवा वर्ग से करनी चाहिये और कौन सी बात महिलाओं से, कौन सी बात किसानों से करनी चाहिये और कौन सी बात व्यापारियों से, उन्होंने यह भी बताया कि पंजाब में क्या कहना और राजस्थान में क्या, बंगाल में ममता के ख़िलाफ़ क्या करना है और कर्नाटक में क्या मुददे उठाने हैं उन्होंने देशभक्ति और धर्म की आस्था में पूरे देश को ऐसा सराबोर किया कि हर कोई उनके आगे नतमस्तक हो गया और सभी जातीय समीकरण ढेर।  ऐसा नहीं पिछले 5 साल में जनता के लिये कोई काम नहीं हुआ, उज्जवला, शौचालय, आयुष्यमान, प्रधानमंत्री आवास योजना, किसानों के खाते में दो-दो हज़ार रूपये जैसी तमाम योजनायें आयीं और इससे सभी धर्म के लोग बिना किसी भेद भाव के लाभाविंन्त भी हुये जिससे यह तय था कि जिसने भी इन योजनाओं का लाभ उठाया है वह किसी भी धर्म का हो, वोट तो मोदी जी को ही देगा लेकिन मोदी जी और उनके चुनाव गुरू अमित शाह बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि अगर विकास पर कोई चुनाव जीता जाता तो अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आंडवाणी की जोड़ी इंडिया शाइिनिंग का नारा देने के बाद कभी न हारती। लोग इलाज अपना एम्स, संजय गांधी मेडिकल इंस्टिीटयूट और राम मनोहर लोहिया में कराते लेकिन कहते पिछले 50 सालों में कुछ नहीं हुआ। इसलिये उन्होंने इसे अच्छी तरह से समझा कि इलेक्शन केवल एक इलेक्शन नहीं बल्कि एक साइंस है एक मैनेजमेंट है और इसी के तहत उन्होंने एक चुनाव समाप्त होते ही दूसरे चुनाव की तैयारी बूथ लेवल पर उसी दिन से शुरू कर दी जिसे दिन पहला चुनाव समाप्त हुआ। उत्तर प्रदेश में जब गठबंधन हुआ और यह तय हो गया कि जातीय समीकरण के तहत भाजपा लगभग अपनी 60 सीटें हार जायेगी तो उन्होंनें जातीय महत्व को समाप्त करने के लिये देशभक्ति, आस्था और धर्म का सहारा लिया और अपनी पूरी इलेक्शन कम्पेन इसी के इर्द गिर्द कर दिया। चैनलों से कह दिया गया कि जब 24 घंटे पहले प्रचार बंद हो जाये तब भी चैनल से मोदी जी की तस्वीर हटनी नहीं चाहिये, पुराने रिकार्डडेड राजनीतिक और ग़ैर राजनैतिक इन्टरव्यू इतनी बार दिखाये जायें कि देश की जनता को मोदी जी के 60 वर्ष पूरे एक पाठक्रम की तरह याद हो जायें फिर यही नहीं जब चुनाव के सभी चरण समाप्त हो गये और मोदी जी गृफ़ाओं में एकान्तवास के लिये चले तो भी कैमरो को साथ लेकर चले जिससे कोई भी भक्त किसी भी क्षण उनके दर्शन से महरूम न रहे। यह बुरी बात नहीं, यह एक मैनेजमेंट का हिस्सा जो विपक्ष नहीं कर पाया। इसके अलावा मोदी जी और अमित शाह ने सबसे पहले सबसे बड़ा काम यह किया कि अपने व्यक्तित्व को पाट्री से बड़ा बना दिया अब कांगे्रस का मुक़ाबला भाजपा से नहीं था बल्कि मोदी जी से था और उनके सामने नेशनल लेवल पर थे राहुल गांधी जिन्हें मीडिया ने उनके कहीं आस पास भी ठहरने नहीं दिया इसीलिये जब उन्होंने चैकीदार चोर कहा तो यह नारा उनके विपरीत गया और जब ऐसा हुआ तो सब के सब उनके सामने बहुत बौने दिखने लगे और चुनाव में अपनी वजूद के लिये ही संघर्ष करने पर मजबूर हो गये, ममता बनर्जी ने संघर्ष किया तो अमित शाह ने अपने रोड शो में रमायण के सारे किरदार धार्मिक वेशभूषा में न केवल उतार दिये बल्कि जय श्रीराम को एक मुददा बना दिया। इस तरह उन्होंने जातीय समीकरण को समाप्त करने के लिये यादवों को बताया कि तुम पहले हिन्दु हो और फिर यादव, पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों को समझाया कि पहले तुम हिन्दु हो फिर कोई और, इसी को समझाने के लिये उन्होंने गोडसे की सर्मथक, मालेगांव ब्लास्ट में आतंकवादी घटना के आरोप में 8 साल जेल काट चुकी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से उतार दिया और मीडिया ने उसे नेशनल लेवल पर प्रोजेक्ट किया जिसका उन्हें ख़ूब फ़ायदा मिला। जो हिन्दुत्व के झांसे में नहीं आया उसे देशभक्ति पर वोट देने के लिये मजबूर कर दिया, उन्होंने ही बताया कि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ ही देशभक्ति है चीन नार्थइस्ट जो चाहे करे लेकिन उसके ख़िलाफ़ देश भक्ति की कोई आवश्यकता नहीं। उन्होंने पिछले पांच सालों में एक ऐसा वातावरण पैदा कर दिया जिससे लगा कि यह कोई मुस्लिम विरोधी सरकार है जबकि न उर्दू कौंसिल का बजट कम किया न उर्दू अकादमी का और न हज पर जाने वालों के लिये किसी सहूलत में कोई कमी की बल्कि मदरसों के आधुकिकरण इस उददेश्य से करने को कहा कि मुसलमानों के एक हाथ में क़ुरान हो और एक हाथ में लैपटाप, अपनी पत्नी को देश के लिये त्याग दिया लेकिन तीन तलाक़ में मुस्लिम औरतों के ज़ख़्मों पर मरहम रखा, ऐसे में उनको मालूम था कि मुस्लिम वोट भी मिलना ही है लेकिन हिन्दु और मुस्लिम में एक ऐसी दरार पैदा कर दी कि अगर वोटों का विभाजन हो तो 80 और 20 प्रतिशत का हो। गोया कि चुनाव जीतने के जितने भी तंत्र हो सकते थे उन सब का इस्तेमाल बख़ूबी किया और किया भी जाना चाहिये क्योंकि जंग और मोहब्बत में सब जायज़ है और यही मैनेजमेंट हैं और यही चुनाव जीतने का गुरूमंत्र भी। दूसरी तरफ़ कांग्रेस सिर्फ़ विलाप कर रही थी तोप के मुक़ाबले में जंग, लाठी के सहारे लड़ रही थी, दूसरों को जोड़ना तो दूर अपनो को साथ नहीं रख पा रही थी, इतने स्लो मोशन में थी कि नामांकन से एक दिन पहले अपने प्रत्याशी घोषित कर रही थी, प्रिंयका गांधी के लड़ने पर आख़िरी दिन तक संसपेंस था और राहुल गांधी कह रहे थे कि कुछ संसपेस अच्छे होते हैं अब यह जो नतीजे आये हैं यह संसपेंस उनके लिये कितना अच्छे हैं यह तो वह ही बता सकते हैं। 2024 में अगर मोदी जी से मुक़ाबला करना है तो अच्छा है कि तुरन्त शादी कर लें और फिर 2024 में त्याग कर दें जिससे कम से कम एक चीज़ में तो उनके बराबर हो जायगें। अब समय आ गया कि डा. अम्मार रिज़वी जैसे पुराने कांग्रेसियों की बहुत दिन से कही जा रही कम से कम एक बात तो मान लेनी चाहिये कि मुसलमानों को सभी पार्टियों में खुलकर होना चाहिये ऐसा होने से मुस्लिम तृष्टिकरण पर जहां रोक लगेगी वहीं कोई भी पार्टी कभी मुस्लिमों को नज़रअंदाज़ चाह कर भी नहीं कर सकेगी।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img

Most Popular