अवधनामा संवाददाता
अयोध्या। जिलाधिकारी ने बताया कि भारतीय मौसम विभाग के अनुसार जब किसी जगह का स्थानीय तापमान लगातार तीन दिनों तक वहाँ के सामान्य तापमान से 03 डिग्री से0 या उससे अधिक रहें तो उसे लू या हीट वेव कहते हैं। जब वातावरणीय तापमान 37 डिग्री से0 तक रहता है तो मानव शरीर पर उसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, पर जैसे ही तापमान 37 डिग्री से0 से ऊपर बढ़ता है तो हमारा शरीर वातावरणीय गर्मी को शोषित कर शरीर के तापमान को प्रभावित करने लगता है। गर्मी में सबसे बड़ी समस्या होती है लू लगना। गर्मी में उच्च तापमान में ज्यादा देर तक रहने से या गर्म हवा के झोंकों के सम्पर्क में आने पर लू लगने की प्रबल सम्भावना होती है।उन्होंने बताया कि गर्मी में शरीर के द्रव्य, सूखने लगते हैं, शरीर में पानी, नमक की कमी होने पर, शराब की लत, हृदय रोग, पुरानी बीमारी, मोटापा, पार्किंसंस रोग, अधिक उम्र, अनियंत्रित मधुमेह के मरीजों तथा डाययूरेटिक, एंटीस्टिामिनिक, मानसिक रोग की कुछ औषधियां लेने वाले मरीजों को लू लगने का खतरा अधिक रहता है। लू लगने पर परिलक्षित होने वाले लक्षण जैसे-त्वचा का गर्म, लाल, शुष्क होना, पसीना न आना, पल्स तेज होना, उल्टे श्वास गति में तेजी, सिरदर्द, मिचली, थकान और कमजोरी का होना या चक्कर आना तथा मूत्र न होना अथवा इसमें कमी होना है। उच्च तापमान से शरीर के आंतरिक अंगों, विषेश रूप से मस्तिष्क को नुकसान पहुँचता है तथा इससे शरीर में उच्च रक्तचाप उत्पन्न हो जाता है। मनुष्य के हृदय के कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न होता है। जो लोग एक या दो घंटे से अधिक समय तक 40.6 डिग्री से0/105 डिग्री एफ० या अधिक तापमान अथवा गर्म हवा में रहते हैं, तो उनके मस्तिष्क में क्षति होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है।जिलाधिकारी ने लू (हीट वेव) से बचने के उपायों यथा-‘क्या करें और क्या ना करें’ की जानकारी देते हुए बताया कि अधिक से अधिक पानी पियें, यदि प्यास न लगी हो, तो भी पानी पियें ताकि शरीर में पानी की कमी से होने वाली बीमारियों से बचा जा सके। हल्के रंग के पसीना शोषित करने वाले हल्के वस्त्र पहनें। धूप में गमछा, चश्मा, छाता, टोपी व पैरों में चप्पल का उपयोग अवश्य करें। खुले में कार्य करने की स्थिति में सिर, चेहरा, हाथ-पैरों को गीले कपड़े से ढँके रहें तथा छाते का प्रयोग करें। लू से प्रभावित व्यक्ति को छाये में लिटाकर सूती गीले कपड़े से पोछंे अथवा नहलायें तथा चिकित्सक से सम्पर्क करें। यात्रा करते समय पीने का पानी अवश्य साथ रखें। शराब, चाय, कॉफी जैसे पेय पदार्थों का इस्तेमाल न करें, यह शरीर को निर्जलित करते हैं। ओ०आर०एस० घोल या घर में बने हुये पेय पदार्थ जैसे लस्सी, चावल का पानी (माड़), नीबू-पानी, छाछ, कच्चे आम से बना पना आदि का उपयोग करें, जिससे कि शरीर में पानी की कमी न हो। अगर आपकी तबीयत ठीक न लगें, तो गर्मी से उत्पन्न हाने वाले विकारों, बीमारियों को पहचाने और किसी भी प्रकार की तकलीफ होने पर तुरन्त चिकित्सकीय परामर्श लें। अपने घर को ठण्डा रखें, पर्दे, दरवाजे आदि का उपयोग करें तथा शाम/रात के समय घर तथा कमरों को ठण्डा करने हेतु इसे खोल कर रखें ;अपनी सुरक्षा का विषेश ध्यान रखते हुए)। पंखे, गीले कपड़ों का उपयोग करें तथा आवश्यकतानुसार स्नान करें। कार्य स्थल पर ठण्डे पीने का पानी रखें और उसका नियमित उपयोग करते रहें। श्रमसाध्य कार्यों को ठण्डे समय में करने कराने का प्रयास करें। घर से बाहर होने की स्थिति में आराम करने की समयावधि व आवृत्ति को बढ़ायें तथा गर्भवती महिला कर्मियों तथा रोगग्रस्त कर्मियों का अतिरिक्त एवं विषेश ध्यान रखे।उन्होंने यह भी बताया कि धूप में खडें वाहनों में बच्चे एवं पालतू जानवरों को न छोड़ें। कड़ी धूप में जाने से बचें। आपात स्थिति से निपटने के लिए प्राथमिक उपचार की जानकारी रखें। गहरे रंग के भारी एवं तंग वस्त्र ना पहने इससे से बचें। जब गर्मी का तापमान ज्यादा हो तो श्रमसाध्य कार्य न करें। नशीले पदार्थ, शराब/अल्कोहल के सेवन से बचें। उच्च प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करने से बचें, बासी भोजन न करें ।