Tuesday, October 28, 2025
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शिक्षकों का शोषण या प्रशासनिक विफलता? सरकार और अधिकारी अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ सकते: मौलाना मंसूर आलम असरी

टीचर्स एसोसिएशन मदारिसे अरबिया, उत्तर प्रदेश के सचिव मौलाना मंसूर आलम असरी ने सरकार और उसके अधिकारियों पर मनमाने आदेशों के ज़रिए मदरसा शिक्षकों तथा कर्मचारियों का जीवन गंभीर संकट में डालने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि लगातार जारी हो रहे फरमानों से न केवल शिक्षकों का शोषण हो रहा है, बल्कि उन्हें घोर अन्याय का सामना करने के लिए भी मजबूर किया जा रहा है।

मौलाना असरी ने मऊनाथ भंजन स्थित जामिया आलिया अरबिया के 11 शिक्षकों का उदाहरण देते हुए कहा, “यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो शिक्षक 1995 से पूरी निष्ठा के साथ शिक्षण कार्य कर रहे हैं और नियमित रूप से सरकारी खजाने से वेतन प्राप्त कर रहे थे, वे आज अचानक एक अन्यायपूर्ण विभागीय आदेश का शिकार हो गए हैं।”

उन्होंने बताया कि पूर्व जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, मऊ की एक रिपोर्ट के आधार पर मई 2025 से इन शिक्षकों का वेतन रोक दिया गया है। इतना ही नहीं, उन्हें 1995 से अब तक के वेतन की वसूली का नोटिस भी थमा दिया गया है। मौलाना असरी ने इस कार्रवाई को न केवल अनुचित, बल्कि न्याय और मानवता के सिद्धांतों के भी विरुद्ध बताया।

मौलाना मंसूर आलम असरी ने सवाल उठाया, “इन शिक्षकों ने पूरी ईमानदारी से अपनी सेवाएं दी हैं। यदि नियुक्ति प्रक्रिया में कोई खामी थी, तो इसके लिए वे अधिकारी ज़िम्मेदार हैं जिन्होंने वेतन भुगतान को मंज़ूरी दी। 30 साल बाद शिक्षकों को दंडित करना कहाँ का न्याय है? शिक्षकों को बलि का बकरा बनाना किस इंसाफ़ का तकाज़ा है? वसूली शिक्षकों से नहीं, बल्कि उन अधिकारियों से होनी चाहिए जो इसके लिए ज़िम्मेदार हैं।”

उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के ‘स्टेट ऑफ पंजाब एवं अन्य बनाम रफीक मसीह (सीए संख्या 11527/2014)’ और ‘जोगेश्वर साहू बनाम डिस्ट्रिक्ट जज, कटक (2025)’ मामलों का हवाला देते हुए कहा कि न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी कर्मचारी ने स्वेच्छा से अधिक भुगतान नहीं लिया है और अपनी सेवाएं पूरी ईमानदारी से दी हैं, तो वर्षों बाद उससे वसूली नहीं की जा सकती। मौलाना असरी ने इसे अमानवीय और न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ़ करार दिया।

उन्होंने आगे कहा कि हर एक शिक्षक को एक करोड़ पच्चीस लाख रुपये से अधिक की वसूली का नोटिस भेजा गया है, जिसके कारण वे और उनके परिवार गंभीर मानसिक पीड़ा एवं आर्थिक संकट से गुज़र रहे हैं। यह उस शिक्षक समुदाय का अपमान है, जो पहले से ही सीमित संसाधनों में समाज की सेवा करता आ रहा है।

मौलाना असरी ने पीड़ित शिक्षकों से इस दमनकारी वसूली आदेश के खिलाफ़ माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद की शरण लेने की अपील की है। उन्होंने विश्वास जताया कि न्यायपालिका इस अन्याय पर निश्चित रूप से संज्ञान लेगी।

अंत में, उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि मदरसा शिक्षकों को संदेह की दृष्टि से देखना बंद किया जाए और अफ़सरशाही की बेलगाम कार्यशैली पर तत्काल अंकुश लगाया जाए। उन्होंने कहा, “एक शिक्षक को इस प्रकार प्रताड़ित करना केवल एक व्यक्ति का अपमान नहीं, बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था का तिरस्कार है, जो समाज में ज्ञान और नैतिकता की लौ जलाए रखती है।”

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