तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर  37 साल पहले से मिलने लगे थे तबाही के संकेत

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देहरादून: ( Dehradun ) ऋषिगंगा  (Rishi ganga) नदी से जो जलप्रलय निकली, उसके संकेत करीब 37 साल पहले से मिलने लगे थे। भूविज्ञानी (वर्तमान में यूसैक निदेशक) डॉ. एमपीएस बिष्ट व (Dr. MPS Bisht) वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने अपने एक शोध में स्पष्ट कर दिया था ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र के आठ से अधिक ग्लेशियर (Glacier ) सामान्य से अधिक रफ्तार से पिघल रहे हैं। जाहिर है इनसे अधिक जलप्रवाह होगा और एवलॉन्च (Avalanche ) की घटनाएं (हिमखंड टूटना) भी अधिक होंगी। इतना ही नहीं, इन ग्लेशियरों (Glaciers)  के पानी का दबाव भी अकेले ऋषिगंगा पर पड़ता है, जो आगे जाकर धौलीगंगा, विष्णुगंगा, अलकनंदा, भागीरथी (गंगा) के पानी को प्रभावित करता है।

ताजा घटनाक्रम के मुताबिक इसी बात की आशंका जताई गई है कि ऋषिगंगा ऋषिगंगा  (Rishi ganga) कैचमेंट क्षेत्र के ग्लेशियर (Glacier ) से निकले एवलॉन्च से ऋषिगंगा नदी के पानी का बहाव कहीं पर थमा, उससे झील बनी और फिर अचानक झील टूटकर जलप्रलय का कारण बन गई। यदि समय रहते विज्ञानियों (Scientists ) के इन संकेतों पर अमल किया जाता तो इन नदियों पर जो बांध बने या बन रहे हैं, उनकी सुरक्षा व मानव क्षति को रोकने के लिए समय रहते भरसक प्रयास संभव हो पाते।

उत्तराखंड (Uttarakhand ) अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट (Dr. MPS Bisht) के मुताबिक यह पूरा क्षेत्र यूनेस्को (UNESCO ) संरक्षित नंदा देवी बायोस्फियर रिजर्व (Nanda Devi Biosphere Reserve ) तहत आता है और यहां कई 6500 मीटर से ऊंची खड़ी चोटियां हैं। इन पर जो ग्लेशियर (Glacier) हैं, उनके एवलॉन्च भी खड़ी चोटी होने के चलते अधिक मारक साबित होते हैं। लिहाजा, ग्लेशियरों (Glaciers)   की स्थिति को लेकर वर्ष 1970 से वर्ष 2017 तक अध्ययन किया था। अध्ययन में पता चला कि यहां के आठ ग्लेशियर (Glacier)  37 साल में 26 वर्ग किलोमीटर (किमी) पीछे खिसके हैं। अध्ययन सेटेलाइट चित्रों के अलावा फील्ड सर्वे में भी किया गया। पता चला कि ग्लेशियर (Glacier)  प्रतिवर्ष पांच से लेकर 30 मीटर तक की दर से पीछे खिसक रहे हैं। इन ग्लेशियरों (Glaciers)  का जितना आकार है, उसका 10 फीसद भाग अब तक पिघल चुका है।

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