अकीदत के साथ पढ़ी गई ईद उल अजहा की नमाज, अमन-चैन की मांगी दुआ

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अवधनामा संवाददाता

एक दुसरे से गले मिलकर दी मुबारकबाद

कुशीनगर। मुस्लिम धर्मावलंबियों का त्याग और बलिदान का पवित्र त्योहार बकरीद गुरुवार को जिले भर में अकीदत के साथ शांति और सौहार्दपूर्ण माहौल में मनाया गया। इस अवसर पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने सुबह मस्जिदों एवं ईदगाह में जाकर नमाज अदा की और एक-दूसरे को गले लगाकर ईद-उल-अजहा की मुबारकबाद दी। इसके बाद कुर्बानी की रस्म पूरी की। इसके बाद दिन भर एक-दूसरे के घर पकवान पहुंचाने व खिलाने का सिलसिला चलता रहा। इस दौरान डीएम व एसपी ने ईदगाह व मस्जिदो का भ्रमण कर व्यवस्था का जायजा लिया। ईदगाह व मस्जिदो में तकरीर कर इस्लाम व कुर्बानी का महत्व बताया गया। इसके बाद परम्परागत कुर्बानी की रस्म पूरी की गई।

पडरौना क्षेत्र के जमालपुर स्थित मस्जिद फैजाने औलिया, मस्जिद सह मदरसा फैजुल उलूम जमालपुर, मस्जिद दरगाह शरीफ हजरत बूढ़न शाह, जंगल शाहपुर, ईदगाह नोनियापट्टी पडरौना में पडरौना के कठकुइयां मोड़ स्थित ईदगाह हजरत गुप्ती शहीद शाह (र.अ.) पहली और 6:45 बजे दूसरी जमात की नमाज अदा की गई। इसी तरह छावनी में कुबेरस्थान मार्ग स्थित ईदगाह में सुबह 7:00 बजे, खिरिया टोला के ईदगाह में 7:00 बजे, गुदरी बाजार की मस्जिद में 7:00 बजे, जामा मस्जिद लक्ष्मीपुर में 7:00 बजे, नौका टोला के ईदगाह में 7:30 बजे, मटियरवा के ईदगाह में 7:30 बजे और बसहिया बड़ई के ईदगाह में 7:30 बजे बकरीद की नमाज अदा की गई। बच्चे, बूढ़े और नौजवानों ने पंक्तिबद्ध होकर नमाज अदा की और एक-दूसरे से गले मिलकर बकरीद की मुबारकबाद दी। ईदगाहों में मेला जैसा नजारा रहा। घर आकर लोगों ने अपनी मन्नतों के अनुसार बकरों की कुर्बानी दी। उसके बाद एक-दूसरे को दावतें देने का दौर शुरू हो गया, जो देर शाम तक जारी रहा। इसी तरह पडरौना नगर के आस-पास के इलाकों समेत ग्रामीण क्षेत्रों में भी मुल्क और अवाम की सलामती के लिए दुआ के साथ बकरीद परंपरागत ढंग से मनाई गई।

इस लिए मनाया जाता है कुर्बानी

बता दें कि ईद-उल-अजहा हर वर्ष हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे इस्माइल को कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गये और अपने बेटे को कुर्बानी देने के लिए एक पहाड़ पर ले गए। वहां कुर्बानी की तैयारी में लगे तभी अल्लाह ने करिश्मा दिखाया और एक डुम्बा आ गया जिसका हजरत इब्राहिम ने कुर्बानी दिया। तभी से यह ईद-उल-अजहा कुर्बानी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

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