Thursday, May 2, 2024
spot_img
HomeArticleसंप्रभु फलस्तीन राष्ट्र बनने में बाधाएं एवं संभावनाएं

संप्रभु फलस्तीन राष्ट्र बनने में बाधाएं एवं संभावनाएं

सुनील कुमार यादव(किडीहरापुर, बलिया)

लगभग दोमाह से जारी इजरायलहमासयुद्ध का अंत क्या होगा? इस प्रश्न का उत्तर इजरायल गाजा फलस्तीन समेत पूरा विश्व जाननेकी कोशिश कर रहा है। किसी भी संघर्ष का अंत संधि एवं समझौते से ही होता है। मध्य पूर्व में शांति और युद्ध का फैसला करनाअबअरबऔर इजरायल का काम नहीं रहा बल्कि अब यह महाशक्तियों का काम बन गया है। लेकिन समझौते की राह में ढेर सारी बाधाएंहैं जिसकी जड़ इतिहास में दबी पड़ी है क्या इसराइल और फिलिस्तीन कभी भी शांति से एक दूसरे के पड़ोसी के रूप में रह सकेंगे? क्या इसराइल फलस्तीन कोकभी एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में स्वीकार करेगा? इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने और समझने के लिए यहूदी एवं फलस्तीन इतिहास को भी थोड़ाजानना एवं समझना पड़ेगा। प्रथम विश्व युद्ध के बाद ऑटोमन साम्राज्य के पतन के बाद फलस्तीन ब्रिटेन के संरक्षण में आया। ऑटोमन साम्राज्य को बोलचाल की भाषा में तुर्की साम्राज्य भी कहा जाता है। ऑटोमन साम्राज्य 14वीं सदी से 20वीं सदी तक दक्षिण पूर्व यूरोप, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका को नियंत्रित करता था। प्रथम विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य ने जर्मनी का पक्ष लिया। युद्ध क्षेत्र संधियोंने आटो मनसाम्राज्य को भंग कर दिया। उससमय फलस्तीन में रहने वालों में यहूदी अल्पसंख्यक थेऔरअरब बहुसंख्यक थे। नाजी होलोक्लास्टसे त्रस्त होकर के द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फलस्तीन में यहूदी आकर के बसने लगे।यहूदियों की संख्या फलस्तीन में बढ़ी तोअरबों से उनका टकराव प्रारंभ हो गया। भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित पश्चिम एशियाकायहभूभाग लगभग 4000 वर्षों का इतिहास समेटे हुए हैं जो इजील,हिब्रू क्रुसेडर, ममलुक, तुर्क,अरबव अंग्रेजों के अधीन 1948 ई तक रहा। 1948 ईस्वी में यह भूभाग संयुक्त राष्ट्र के महासभा द्वारा वोटिंग कराकरफलस्तीनऔर इसराइल राज्यों में बांट दिया गया और यहूदियों के लिए इसराइल नमक देश बना दिया गया फिर क्या था? पांचअरब देशों ने इसराइल पर हमला कर दिया। 1949 में अरब इजरायल युद्ध खत्म हुआ और इस युद्ध में इजरायल ने फिलिस्तीन के 80 प्रतिशत भू भागपर कब्जा कर लिया। फलस्तीन की 80% आबादी शरणार्थी के रूप मेंजॉर्डन,लेबनान और अरब देशों में संयुक्त राष्ट्र संघ के सहयोग से शरणार्थी कैपोमें बसाई गई। इसराइल पश्चिमी राष्ट्रों की सहायता से एक विशाल शस्त्रागारव सैनिक कैंपमें बदल गया। लेकिन कोई स्थाई संधि ना हो सकी ताकि आगे संघर्ष ना हो। 1967 ईस्वी में इजरायल ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक पर अधिकार जमा लिया। इजरायल जेरूसलम को अपनी राजधानी मानता है और फलस्तीनपूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी मानता है। वर्तमान परिस्थितिया इतनी पेचीदीहो गई है कि एक संप्रभ स्वतंत्र फलस्तीन राष्ट्र बनने की राह में ढेर सारी बढ़ाएं विद्यमान है।
पहली समस्या:1967 ईस्वी में इजरायल ने जिन क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया क्या उन सभी क्षेत्रों को इजरायल फलस्तीनको वापस करेगा संभवत सभी क्षेत्रों को इसराइल वापस नहीं करेगा और बिना सभी क्षेत्रों की वापसी के फलस्तीनी नेता कोई समझौता करने के लिए तैयार नहीं होंगे। दूसरी समस्या: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अब तक इसराइल ने वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम में कई इजरायली बस्तियां एवमबसावटें विकसित कर लिया है।इन लगभग 300 बस्तियों में 7 लाख से ऊपर इसराइलियों का निवास है! संयुक्त राष्ट्र संघ के कानून के अनुसार यह सभी इजरायली बस्तियां गैरकानूनीl हैं इन बसावटों के रहते हुए इसराइल तथा फलस्तीनकभीभी एक साथ संप्रभु राष्ट्र के रूप में नहीं रह सकेंगे। इसराइल जिस तरह से अपनी बस्तियां एवं बसावटों का विस्तार कर रहा है उससे तो नहीं लगता कि कभी उसे स्वतंत्र एवं संप्रभु फलस्तीन राष्ट्र स्वीकार होगा। फलस्तीन स्वयं को संप्रभू राष्ट्र घोषित करने के लिए इन इजरायल बस्तियों को उजाड़ने की कोशिश करेगा और इसके लिए इजरायल और हमास के नेतृत्व मेंपुनः संघर्ष शुरू होगा। तीसरी समस्या : इजरायली सरकार के कई नेताओं का इरादा है कि वेस्ट बैंक इजरायल के कब्जे में रहना चाहिए।इन परिस्थितियों में क्या कोई ऐसा फार्मूला निकल पाएगा जो इसराइल एवं हमास दोनों को मान्य हो। चौथी समस्या : जॉर्डन नदी की लंबाई केवल 150 मील है जो सीरिया,लेबनान, इसराइल एवं जॉर्डन देश से होकर बहती है इसके जल बंटवारे को लेकर अरब इजरायल में विवाद बना हुआ है। जॉर्डन नदी काजल इस क्षेत्र का जीवन है क्योंकि यहां की जलवायु आमतौर पर गर्म एवं शुष्क है।
इसके अतिरिक्त दोनों पक्षों के बीच हिंसक घटनाओं के कारण भी संधि समझौते दूर-दूर तक नजर नहीं आते। अभी हाल ही के 7 अक्टूबर के हमासद्वारा हमले में इजरायल के 1200 लोग मारे गए, असंख्य जख्मी हुए, 200 बंदी बना लिए गए। इजरायल के जवाबी हमले में गाजामें अब तक लगभग 15000 लोग मारे गए। ऐसी नाजुक स्थिति में एक संप्रभु फलस्तीन राष्ट्र को क्या इसराइल मान्यता देगा?यह एक यक्ष प्रश्न है। 1987 में हमास प्रकाश में आया और उसके बाद से फिलिस्तीन राष्ट्रीय आंदोलन दो भागों में बंट गया। विभाजन के कारण फतहके समर्थन वाला यासर अराफात का फलस्तानी लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन कमजोर पड़ गया और तब से हमास ने गांजा पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया और वेस्ट बैंक पर राजनीतिक गुट फतह का अधिकार है। क्या एक संप्रभुफलस्तीन राष्ट्र बनाने में दोनों पक्ष हमास एवं फतह एक साथ कभी आ पाएंगे? अमेरिका और अरब देशों की भूमिकाएं भी संप्रभु फलस्तीन के मार्ग में बाधाएखड़ा करती हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने जेरूसलम को तब इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दे दी किंतु तीनों धर्म के पवित्र स्थल जेरूसलम को पश्चिम में इसराइल तथा पूर्व में फिलीस्तीन के लिए ग्रीन लाइन द्वारा बांटा गया है। शुरू में अरब देशों ने इसराइल फलस्तीन के बीचस्थाई संधि तथा समाधान न होने तक इजरायल के साथ राजनीतिक संबंध न बनाने की घोषणा की थी। लेकिन हाल के वर्षों में मोरक्को, सऊदी अरब, बहरीन आदि देश इजराइल से राजनीतिक संबंध बनाने की दिशा में अग्रसरहैं। ऐसे में क्या येअरब देश संप्रभू फलस्तीन राष्ट्र की वकालत करेंगे? यह प्रश्न विचरण यह है।इसराइल को भी यह मानना चाहिए कि इसराइल पश्चिम एशिया की धरती का देश है।पश्चिमी साम्राज्यवाद का अंग बनकर पश्चिम एशिया में उसकी उपस्थिति सदैव अवांछनीय ही बनी रहेगी ।फिलिस्तीनियों को बसाने के लिए, उन्हें पृथक संप्रभु राज्य का दर्जा दिलाने के लिए इसराइल को भी अपना दायित्व निभाना होगा। अन्यथा निर्वासित फलस्तीनी हमास बनाकर इसराइल को कभी चैन से बैठने नहीं देंगे।पारिस्थिति वशइसराइल अब एक सच्चाई बन गया है और अरब राष्ट्रों को अबइसेमजबूरी में नहीं बल्कि सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए।मध्य पूर्व समस्या ने विश्व राजनीति मेंमजहबकीऐसी भूमिका को उभारा है कि भारत चाहते हुए भी इसराइल को लंबे समय से राजनीतिक मान्यता देने में असमंजस की स्थिति में है।
इसराइल एवं हमास दोनों के लिए स्वतंत्रता एवं संप्रभुता का एकमात्र रास्ता सह अस्तित्व ही है।ऐसा कहा जाता है कि युद्ध तब समाप्त होते हैं जब दोनों पक्ष या निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि लड़ने से उन्हें और कुछ हासिल नहीं होगा इस तर्क के अनुसार तो इजराइल फिलिस्तीन को बहुत पहले ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता सहअस्तित्व पर सहमत हो जाना चाहिए था। बार-बार कोशिश भी हुई लेकिन धार्मिक जुनून और वृथा स्वाभिमान की शिकायतों के महासागर में शांति व्यवस्था हमेशा डूबगई। इस समय गाजा में बंदूक के गरज रही है, आसमान से मौतें बरस रही है।लेकिन क्या इस बार गरजती बंदूके कोई समाधान ढूंढ पाएंगी? प्रत्येक पक्ष द्वारा किया गया हर विस्फोट समाधान एवं शांत नहीं ला सकता बल्कि अगली प्रतिक्रिया में और अधिक रक्तपातहीलाएगा।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img

Most Popular