अवधनामा ब्यूरो
लखनऊ. उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर में किशोर बोर्ड को बलात्कार की सजा तय करने में 19 साल लग गए. इतने साल बाद जब बलात्कारी छत्तीस साल का हो चुका है तब उसे तीन साल की सजा और पांच हज़ार रुपये का जुर्माना भरने को कहा गया है.
ग्रेटर नोयडा के दादरी थाने में साल 2002 की 28 जून को बलात्कार का मुकदमा दर्ज हुआ था. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने साढ़े 17 साल के आरोपित को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. तीन महीने बाद वह ज़मानत पर जेल से रिहा हो गया और उसने किसी अन्य लड़की से शादी भी कर ली. मुकदमा बदस्तूर चलता रहा.
दादरी पुलिस के पास पीड़िता के परिवार ने जो रिपोर्ट लिखाई थी उसमें बताया था कि उनकी बेटी पांच महीने की गर्भवती है. उनकी गर्भवती बेटी ने इस किशोर का नाम बताया है. पीड़िता का कहना है कि जब वह घर पर अकेली थी तब उसने घर में घुसकर उसके साथ बलात्कार किया था.
आरोपित शादी के बाद अपने परिवार के साथ रह रहा था. मुकदमे की तारीख पर वह अदालत जाता था. किशोर न्याय बोर्ड को यही तय करने में पांच साल लग गए कि बलात्कार के समय वह किशोर था या नहीं. बाद में यह मामला जिला सत्र न्यायालय में ट्रांसफर हो गया.
साल 2012 में गौतमबुद्धनगर में किशोर न्याय बोर्ड गठित हुआ तो इस मुक़दमे के क्षेत्राधिकार का मामला सामने आया. इस मामले को इस कोर्ट में ट्रांसफर किया गया.
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किशोर न्याय बोर्ड के प्रधान मजिस्ट्रेट वीरेश चन्द्र और अनिल बघेल ने आरोपित को बलात्कार मामले में दोषी ठहराया. अभियुक्त को तीन साल की सजा और पांच हज़ार जुर्माना भरने को कहा गया है. जुर्माना न भरने पर सजा एक महीना और बढ़ जायेगी. सजा में हुई देरी के मुद्दे पर अदालत का कहना है कि कभी गवाह नहीं आते, कभी पुलिस अधिकारी अदालत नहीं पहुँचते. कई तारीखों पर जज छुट्टी पर होती हैं. इस वजह से सजा में देर हो जाती है.