अवधनामा संवाददाता
कानपुर :- रमाज़ान के रोज़े और तरावीह, ज़कात, सदक़ा, कुरआन की तिलावत के साथ ही अन्य इबादतों के दुरुस्त होने के लिये मसायल की जानकारी होना बेहद ज़रूरी है , क्योंकि मसायल की जानकारी के बग़ैर अल्लाह के लिये की गई हमारी इबादत का हक़ अदा नहीं हो सकता। जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष मौलाना अमीनुल हक़ अब्दुल्लाह क़ासमी ने अवाम से सवाल किया कि दुनिया के किसी भी काम को करने या कराने के लिये हम इसके तरीके और जानकार से सम्पर्क करते हैं तो फिर हम अपने दीन व ईमान के मामले में शरई मसायल जैसे अहम काम को नज़रअंदाज़ क्यों करते हैं ? इसलिये तमाम मुसलमानों को चाहिये कि शरई मसायल में अपना ज़ेहन व दिमाग़ ना लगायें बल्कि पुख्ता रहनुमाई के लिये विश्वसनीय उलमा से सम्पर्क करें। मौलाना ने आगे कहा कि तरावीह में कुरआन करीम का दौर सुनने का बराबर सवाब है लेकिन जिस तरावीह रमज़ान के चांद की तस्दीक पर शुरू किया है इसी तरह शव्वाल का चांद देख कर ही तरावीह पढ़ना बन्द करें। मौलाना ने अवाम को पैग़ाम देते हुए कहा कि मौजूदा वक़्त में सामान्यतः यह होता है कि लोग पांच या सात दिन की तरावीह पढ़ लेते हैं, इसमें भी आधे पढ़ते हैं और आधे पीछे बैठकर बेकार की बातों में व्यस्त रहते हैं, ऐसा करना शरअन नाजायज़ और हराम है और उसके साथ ही अपनी इबादतों और रमज़ान का मज़ाक उड़ाना है। ऐसा करने वाले पहली फुर्सत में अपने ईमान का जायज़ा लें। मौलाना अब्दुल्लाह क़ासमी ने फरमाया कि साफ और अच्छा पढ़ने वाले हाफिज़ों के पीछे ही पूरे महीने 20 रकअत तरावीह पढ़ें, इसमें भले ही समय थोड़ा ज़्यादा लगेगा, लेकिन इंशाअल्लाह आपको इसका पूरा सवाब और दिल को सुकून ज़रूर मिलेगा।