2047 का भारत

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एस. एन. वर्मा

हम 2047 के भारत की कल्पना अभी से करने लगे है। तब भारत की आजादी के 100 साल पूरा होगा। अभी तो अमृत काल चल रहा है। सरकार नई योजनायें और उनकी उपलब्धियां बता रही है। भारत दुनियां की तीसरी सबसे बडी आर्थिक शक्ति बनने की ओर उन्मुख है। सीना खुशी और गर्व से फूल जाता है। 2047 तक हम कैसे भारत की उम्मीद कर रहे है। अभी से बहस शुरू हो गई है। सुनकर बहुत अच्छा लगता है।
जी-20 की समाप्ती पर यह आशा व्यक्त की गई थी कि 2047 तक देश पूरी तरह विकसित हो जायेगा और अर्थव्यवस्था के मामले में तीसरी सबसे बड़ी शक्ति बन कर उभरेगा। पर तीसरी बड़ी शक्ति का मकसद तभी है जब सम्पन्नता आम और खास में बराबरी से वितरित रहे। अगर सम्पन्नता कुछ पूजीपतियों के हाथों में ही केन्द्रित रहेगी तो आम आदमी को उससे क्या मिलेगा। प्रजातन्त्र में तो हर चीज प्रत्येक नागरिक तक पहुंचे तभी प्रजातन्त्र सफल माना जायेगा। सिर्फ जनता द्वारा चुनी गई सरकार बन जाने पर तो शास्त्रीय प्रजातन्त्र रहेगा।
उस समय आम आदमी की मूलभूत जरूरते आखिरी आदमी तक उपलब्ध रहेगी आशय बुनियादी जरूरतों से है। देश के लिये सर्वोपरी वरीयता स्वास्थ्य की होनी चाहिये। अगर नागरिक स्वस्थ रहेगे तो मुल्क के विकास में पूरे मनोयोग से अपना अंशदान कर सकेगे। उस समय तक सरकार हर नागरिकों को चिकित्सा और औषधियों को मुफ्त उपलब्धता कराये उसी के अनुसार हर नागरिक के लिये आसान उपलब्धता बनी रहेगी। अभी तो विशेष आयु वर्ग के लिये यह उपलब्धता है। उसमें भी प्रासेस को लेकर लोगो में असन्तोष है। आम नागरिक के लिये भोजन अहम समस्या है। क्या तब तक हर आदमी के पास इतने संसाधन हो जायेगे कि दो जून का भोजन अपने परिवार के लिये वह आसानी से जुटा लेगा। अभी तो मुफ्त अनाज विरतण की व्यवस्था बड़े पैमाने पर चल रही है। चुनाव के परिप्रेक्ष में सरकार अपनी सफलताओं में गिना रही है। निश्चय ही इससे लोगो में सरकारी पार्टी को मत देने की प्रवृत्ति बढ़ेगी। क्योंकि मतदाता समझता है कि संसाधन तो सरकारी पार्टी के पास है विपक्ष के पास तो केवल वादे है। पर अच्छे समाज के लिये यह आदर्श स्थिति नहीं है कि बड़ा तबका भोजन के लिये सरकारी दान पर आश्रित रहे।
स्वास्थ्य और भोजन के बाद रोजगार का नम्बर आता है। क्या उस समय तक सभी के लिये रोजगार उपलब्ध हो सकेगा। फिर रोजगार पाने में शिक्षा का महत्व सभी जानते है। अभी तो शिक्षा बहुत मंहगी है खासकर तकनीकी शिक्षा आम आदमी के वश में नहीं है कि वह मन चाही उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके। सिर्फ साक्षर होने से काम नहीं चलने वाला है। विशिष्ट ज्ञान का युग है। जो इस तरह से शिक्षित है बेरोजगारी के बावजूद मल्टी नेशनल कम्पनियों में उच्च वेतन मान पर कार्यरत है। सरकारी नौकरियां तो सीमित होती है।
वर्तमान सरकार इस ओर प्रयासरत है इसमें शक नही है। क्योंकि उसने खाद्य का अधिकार, शिक्षा का अधिकार सूचना का अधिकार जैसे कानून बना रक्खे है। पर इन अधिकारों का उपयोग कुछ लोग कर पा रहे है। पर लक्ष अच्छा है इसकी पहुंच आम आदमी तक होनी चाहिये। पर क्या 2047 तक उपरोक्त बातें जन सामान्य तक पहुंच जायेगी।
स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करे तो शहरी इलाकों में 10,000 जन संख्या पर एक डाक्टर उपलब्ध है। देहातो की हालत तो और सोचनीय है। स्वस्थ्य सुविधा के नाम पर झोला छाप डाक्टर ही गांवो में उपलब्ध हो जो उपचार के नाम पर लूट मचा कर नकली दवाइयां देकर लोगो को और बीमार बना रहे है, मार भी रहे है। कई शहरों में मोहल्ला क्लीनिक खोले गये है। पर एक तो बहुत कम दूसरे प्रभावी नहीं है।
एक अध्ययन में बताया गया है 2047 तक भारत की आबादी 60 प्रतिशत शहरो में रहेगी। उस समय देश की कुल आबादी 165-170 करोड़ हो जायेगी। यानी 100 करोड़ शहरी आबादी होगी। शहरों का विकास जिस तरह मनमाने ढंग से हो रहा है क्या उससे उस समय की शहरी आबादी को न्यूनतम आम सुविधायें जैसे आवास, स्वच्छ, हवा, स्वच्छ पानी आदि उपलब्ध कराया जा सकेगा। यहां इस समय कार्पोरेट व्यवस्था चल रही है। कही किसान भी तो इस व्यवस्था में न आ जाये। हर चीज मंहगी होती जा रही है। भारत पर कर्ज मार्च 2023 में 624.3 अरब डालर था पर जून में 629.1 अरब डालर हो गया। भारत का व्यापार घाटा भी बढ़ता जा रहा है। 2047 तक इन समस्याओं से निजाद पाना जरूरी होगा यदि सही माने में आजादी के 100 साल आजादी का जश्न मनाना है। सरकारो की महती जिम्मेदारी बनती है।

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