भारतीय क्रिकेट टीम ने इंग्लैंड में हार न मानने वाला जज्बा दिखाया और यही कारण था कि वह हार के मुहाने से लौटकर सीरीज ड्रॉ कराने में सफल रही। हालांकि इस दौरे पर कई सवाल टीम के सामने आए फिर चाहे वह वर्कलोड मैनेजमेंट का रहा हो या फिर सही संयोजन तलाशने का।
शुभमन गिल की अगुआई वाली युवा भारतीय टीम ने ओवल टेस्ट जीतकर इंग्लैंड के विरुद्ध पांच मैचों की सीरीज 2-2 से ड्रॉ कराकर भले ही जश्न मनाया हो, लेकिन यह सीरीज गौतम गंभीर की टीम एक अहम कमजोरी भी उजागर कर गई। इस पूरी सीरीज में भारतीय टीम परफेक्ट टीम संयोजन को लेकर जूझती दिखी।
ऑलराउंडरों पर अधिक निर्भरता को लेकर कई दिग्गजों ने गंभीर की रणनीति पर सवाल उठाए और विशेषज्ञ गेंदबाजों को नहीं खिलाने पर उनकी आलोचना भी की। वॉशिंगटन सुंदर और रवींद्र जडेजा ने मैनचेस्टर में अपनी बल्लेबाजी से टेस्ट मैच ड्रॉ कराकर असंभव को संभव करके दिखाया, लेकिन गेंदबाजी की बात करें तो दोनों ही स्पिनर के रूप में प्रभावित नहीं कर पाए।
किए कई प्रयोग
पूरी सीरीज के दौरान भारतीय टीम ने संयोजन को लेकर कई प्रयोग किए, लेकिन एक भी संयोजन ऐसा नहीं था जिसे लगातार दूसरे मैच में बनाए रखा गया हो। सेना देशों (दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया) की तेज व स्विंग करती पिचों पर बल्लेबाजी को गहराई देने के लिए ऑलराउंडरों पर ज्यादा भरोसा दिखाया गया, लेकिन गेंदबाजी को लेकर टीम को सोच स्पष्ट नहीं रही। इससे संकेत मिलता है कि भारत को विदेशी दौरों के लिए एक अधिक प्रभावशाली तेज गेंदबाजी ऑलराउंडर या अतिरिक्त विशेषज्ञ गेंदबाज की जरूरत है क्योंकि विशेषज्ञ गेंदबाज आपको टेस्ट मैच में 20 विकेट लेकर देते हैं।
भारत को अब अपनी अगली टेस्ट सीरीज घर पर अक्टूबर में वेस्टइंडीज और नवंबर-दिसंबर दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध खेलनी है, जिसमें संयोजन को लेकर प्रयोग की संभावना बनी रहेगी। लेकिन अगर टीम को विदेशों में सीरीज जीतनी है, तो उसे अब जल्द ही स्थायी और परिस्थितियों के अनुकूल संयोजन तय करना होगा। जसप्रीत बुमराह जैसे खिलाड़ियों का कार्यभार प्रबंधन और ऑलराउंडरों की भूमिका पर पुनर्विचार अब जरूरी हो गया है।
अंत तक नहीं मानी हार
बहरहाल, यहां इस युवा भारतीय टीम के जज्बे की प्रशंसा करनी होगी। भारतीय टीम की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि उसने किसी भी मैच में अंत तक हार नहीं मानी और दो मैच में शानदार वापसी की। इससे टीम के जज्बे का पता चलता है। इस सीरीज में यह भी साबित हो गया कि भारतीय टीम का भविष्य सुरक्षित हाथों में है। युवा कप्तान शुभमन गिल ने सीरीज में चार शतक की मदद से सर्वाधिक 754 रन बनाकर आगे बढ़कर नेतृत्व किया, जिससे अन्य खिलाड़ियों को भी अच्छा प्रदर्शन करने की प्रेरणा मिली।
अपने करियर की शुरुआत सलामी बल्लेबाज के रूप में करने वाले गिल ने बल्लेबाजी क्रम में महत्वपूर्ण चौथे नंबर पर खुद को स्थापित करके भारत की कई चिंताओं को भी दूर कर दिया। तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज सीरीज के नायक बनकर उभरे। वह दोनों टीमों की ओर से सभी पांच टेस्ट मैचों में खेलने वाले एकमात्र तेज गेंदबाज थे। उन्होंने ओवल में सीरीज का अंतिम विकेट लिया और 23 विकेट लेकर सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज बने।
कार्यभार प्रबंधन के कारण दो टेस्ट मैचों में जसप्रीत बुमराह के नहीं खेलने का सिराज ने पूरा फायदा उठाया। बुमराह की फिटनेस पर सवाल बने रहेंगे और लंबे प्रारूप में उनका भविष्य भी अनिश्चित है, लेकिन भरोसा है कि सिराज नए तेज गेंदबाजों को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। प्रसिद्ध कृष्णा और आकाश दीप ने उनका अच्छा साथ दिया।
केएल राहुल ने दिखाया दम
केएल राहुल ने इंग्लैंड की मुश्किल परिस्थितियों में अपने कौशल और प्रतिभा का शानदार नमूना पेश किया। गिल और जडेजा के अलावा वह सीरीज में दो शतकों सहित 500 से अधिक रन बनाने वाले अन्य भारतीय बल्लेबाज थे। ऋषभ पंत के साहसिक प्रदर्शन ने सीरीज को अधिक रोचक बना दिया। पंत मैनचेस्टर में पहली पारी में महत्वपूर्ण रन जोड़ने के लिए पैर में फ्रैक्चर के बावजूद बल्लेबाजी करने उतरे और बल्लेबाजी कर दिखाया कि यह टीम हार मानने वालों में से नहीं है।
रवींद्र जडेजा ने अपने अनुभव का पूरा इस्तेमाल करके इस सीरीज को अपने लिए यादगार बना दिया। इस 36 वर्ष के खिलाड़ी ने सीरीज में 516 रन बनाए जिसमें एक शतक और पांच अर्धशतक शामिल हैं।