एस्सिलोर ने लॉन्च किया स्टेलेस्ट™ लेंस

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कोलकाता : प्रेस्क्रिप्शन लेंस सेक्टर में दुनिया भर में अग्रणी एस्सिलोर ने भारत में एस्सिलोर® स्टेलेस्ट™ लेंस लॉन्च किया है, ताकि बच्चों में मायोपिया की प्रगति का मुकाबला किया जा सके और भविष्य के लिए उनकी दृष्टि को सुरक्षित रखा जा सके.

एस्सिलोर® स्टेलेस्ट™ लेंस को “H.A.L.T” (हाईली एस्फेरिकल लेंसलेट टार्गेट) नामक एक विशेष तकनीक के साथ डिज़ाइन किया गया है, जिसे एस्सिलोर की R&D टीमों द्वारा तैयार किया गया. एच.ए.एल.टी. प्रौद्योगिकी में 11 रिंगों पर फैले 1021 एस्फेरिकल लेंसलेट्स का एक समूह शामिल है, बल्कि मायोपिया प्रगति को धीमा करता है. प्रौद्योगिकी 30 से अधिक वर्षों के अकादमिक अध्ययन, उत्पाद डिजाइन, कठोर शोध की परिणति है टॉप रिसर्च इंस्टीटूट्स और मायोपिया विशेषज्ञों के सहयोग से प्रयास से पूरा हुआ है ।

इस संबंध में श्री नरसिम्हन नारायणन, कंट्री हेड, एस्सिलॉरलक्सोट्टिका ने कहा, एस्सिलोर® स्टेलेस्ट™ लेंस का लॉन्च आंखों की देखभाल करने वाले पेशेवरों के लिए काफी मददगार साबित होगा. एस्सिलोर® स्टेलेस्ट™ लेंस बच्चों में मायोपिया की प्रगति से लड़ने में मदद करने के लिए एक नई क्रांति प्रदान करेगा. क्योंकि स्टेलेस्ट लेंस के प्रयोग से माओपिया की प्रगति बाधित होती है. मायोपिया प्रबंधन में 30 से अधिक वर्षों के अनुसंधान और विकास अनुभव के साथ, हम सबसे अच्छा समाधान प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसके लिए बच्चों में मायोपिया की प्रगति को रोकने और धीमा करने के महत्व के बारे में नवाचार और जागरूकता की आवश्यकता है. ये लेंस एक साक्ष्य-आधारित स्पेक्टेकल लेंस समाधान प्रदान करते हैं – हम जानते हैं कि यह समाधान लंबे समय से प्रतीक्षित है और हमें विश्वास है कि एस्सिलोर® स्टेलेस्ट™ लेंस भारतीय बाजार में गेम चेंजर साबित होगा.”

हाल के एक अध्ययन में, यह देखा गया कि 5 -15 वर्ष के आयु वर्ग में मायोपिया का प्रसार 1999 में 4.4% से बढ़कर 2019*(1) में 21.9% हो गया है, और जो अब लगभग 25% (1A) देखा गया है. कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप बच्चे कम घंटे बाहर और अधिक समय (लगभग 6 -7 घंटे) घर के अंदर बिताते हैं – इन कारकों का हमारे बच्चों की दृष्टि पर प्रभाव पड़ा है. देश भर में नेत्र रोग विशेषज्ञ और नेत्र देखभाल पेशेवरों ने परीक्षण में पाया है कि मायोपिया के लक्षण लगातार बच्चों में बढ़ रहे हैं और इससे ग्रसित होने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है. अध्ययनों से पता चलता है कि मायोपिया का कोई भी स्तर ओकुलर स्थितियों के जोखिम को बढ़ा सकता है, मायोपिक प्रगति का प्रबंधन करने में विफलता, मायोपिक मैकुलोपैथी, रेटिनल डिटैचमेंट, ओपन एंगल ग्लूकोमा और विजुअल इम्पेयरमेंट जैसी नेत्र संबंधी स्थितियों के बढ़ते जोखिम के कारण बच्चे की उत्पादकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है.

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