सरकारी अस्पताल में मरीजों को नही दी रही हैं बैडशीट

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अवधनामा संवाददाता हिफजुर्रहमान 

मौदहा-हमीरपुर। मौदहा का सरकारी अस्पताल सदैव सुर्खियों में रहता है कभी कमीशन की दवाओं को लेकर तो कभी डाक्टरों के समय से ओ पी डी में न पहुंचनें जैसी चर्चाएं आम सी बात हो गयी हैं। अस्पताल में साफ-सफाई का हाल यह है कि जगह जगह गन्दगी के अम्बार लगे है। सरकार जहां साफ-सफाई पर जोर देती है वहीं  मौदहा सामुदायिक स्वास्थ्य में सरकार की मन्शा के विपरीत जगह जगह गन्दगी  के नजारे  देखनें को मिलते है और तो और मरीजों के वार्डों में इतनी गन्दगी देखनें को मिलती है जिस को देख कर  ऐसा लगता है जैसे कि रोज झाड़ू ही न लगाया जाता हो।जब कि अस्पताल में हर वक्त साफ-सफाई का जबरदस्त इन्तिजाम रहना चाहिए क्योंकि अस्पताल में तरह-तरह के रोगी आतें है। वार्डो में रखे डस्टबीन गन्दगी से भरे पड़े हैं फर्श में पानी फैला पड़ा। जैसे कोई सफाई कर्मियों को कुछ कहनें सुनने वाला ही न हो। अस्पताल की सारी व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरुस्त रखना अधीक्षक की जिम्मेदारी है। लेकिन अस्पताल की व्यवस्थाओं को देख कर लगता है जैसे अधीक्षक हमीरपुर की कोई सुन ही न रहा हो। मरीजों ने बताया कि उन्हें बैडशीट नही दी जाती है बिना बैड शीट के मरीजों को लेटना पड़ता है।मरीजों की शिकायत है कि यदि कोई अस्पताल कर्माचारियों के जानने वाला मरीज है तो उस को सारी सुविधाएं दी जाती हैं।उस को बैडशीट कम्बल सब मिलता है। पिछली रात उल्टी व दश्त के दो मरीजों को  इमरजेंसी के सामने स्थित वार्ड में भर्ती किया गया दोनों मरीजों को बिना बैडशीट के खस्ताहाल हाल पलंगों में गन्दगी के बीच लिटाया गया। तीमार दारों नें जब कहा कि बैड शीट दीजिये तो ड्यूटी में तैनात कर्मचारियों नें हीला हवाला कर  बात को टालनें की कोशिश की लेकिन तीमार दार बैडशीट को लेकर हड गये तो कर्मचारियों नें जवाब दिया कि चादर धुलनें गयी हैं सुबह मिलेंगी अस्पताल कर्मचारी के इस जवाब से तो लगता है कि अस्पताल में एक बैड के लिए एक ही बैडशीट होगी वही जब  गन्दी होजाती होगी तो उसी को धुल कर फिर बिछाया जाता होगा।चन्द रोज पहले ही उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक नें लखनऊ के के जी ऐम यू कालेज का आऔचक निरीक्षण कर टूटे-फूटे सामानों को हटा कर नये सामानों की व्यवस्था के आदेश दिये थे लेकिन मौदहा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में फटे-चिथे पलंगों से ही काम चलाया जा रहा है। देखना यह होगा कि मौदहा अस्पताल की व्यवस्थाओं में कब और कितना बदलाव होता है।
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