मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू दिल्ली में हैं और छह महीने के भीतर उनकी यह दूसरी भारत यात्रा है। जून में वह प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे शपथग्रहण समारोह में आए थे। लेकिन ताजा यात्रा का उदेश्य दूसरा है। इस बार मुइज्जू बड़ी उम्मीद और याचना के साथ आए हैं। वह भारत से अपने देश के आर्थिक संकट से निबटने के लिए मदद मांगने आए हैं। यह वही मुइज्जू हैं जो राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए भारत के खिलाफ अभियान लेकर मैदान में उतरे थे। मालदीव की रक्षा के लिए वहाँ ठहरे भारतीय सैनिकों को अपने देश से निकाल बाहर करने की जिद ठान कर मुइज्जू ने संबंधों में गांठ डाल दी थी।
चीन को खुश करने के लिए मुइज्जू और उनके कुछ मंत्री प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपशब्द बोल रहे थे। अब वही मुइज्जू उम्मीद कर रहे हैं कि भारत उनको करोड़ों डॉलर के बेलआउट पैकेज दे दे, क्योंकि चीन अपनी आदत के अनुसार मुइज्जू को भी ठेंगा दिखा चुका है। चीन अपने कथित दोस्तों को भी भारी सूद पर पैसा देता है और स्थिति यह है कि मालदीव कर्ज की वर्तमान देनदारी को भी देने की स्थिति में नहीं है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि मालदीव डिफ़ॉल्ट की कगार पर पहुँच गया है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 440 मिलियन डॉलर (£334 मिलियन) रह गया है। यानी आने वाले दिनों में मालदीव जरूरी आयात के भुगतान के लिए भी संघर्ष करेगा।
मुइज्जू ने दिल्ली रवाना होने से पहले बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत, मालदीव की वित्तीय स्थिति से पूरी तरह वाकिफ है और उन्हें उम्मीद है कि उनके बोझ को कम करने के लिए नई दिल्ली बेहतर विकल्प और समाधान देने को तैयार होगा। नई दिल्ली के प्रति मुइज्जू का यह लहजा बताता है कि अपने चुनाव अभियान के दौरान जो रुख उन्होंने भारत के प्रति दिखाया था, उससे उनको अब शर्मिंदगी महसूस हो रही है। “भारत को बाहर करो” की उनकी पुरानी नीति अब जरूरत पड़ते ही बदल गई है। इसीलिए अब वह अफसोस के साथ कह रहे हैं कि किसी भी मतभेद को खुले संवाद और आपसी समझ के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है।
मुइज्जू के भारत के प्रति बदले सुर के पीछे असली वजह है मालदीव का आर्थिक संकट। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने मालदीव की क्रेडिट रेटिंग घटा दी है और डिफ़ॉल्ट जोखिम बढ़ने की ओर इशारा भी किया है। अब मुइज्जू के सामने दो ही विकल्प हैं- या तो वह डिफ़ॉल्ट से बचने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) कार्यक्रम में जाए या फिर किसी दोस्त मुल्क से बेल आउट पैकेज के लिए निवेदन करें। मूडीज के अनुसार मालदीव को 2025 में लगभग $600 मिलियन और 2026 में $1 बिलियन से अधिक की रकम ऋण के पुनर्भुगतान और ब्याज सेवा के लिए चाहिए। मुइज्जू सरकार के लिए इस संकट से उबरने के लिए धन जुटाना आसान नहीं है। तभी तो मुइज्जू दिल्ली की यात्रा पर आए हैं। चूंकि भारत ने पहले भी मालदीव को विभिन्न बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं के लिए 1.4 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता की पेशकश की थी इसलिए मुइज्जू को उम्मीद भारत से ही है।
उल्लेखनीय है कि नवंबर 2023 में मुइज्जू जब सत्ता में आए थे तो कुछ ही समय में मालदीव और भारत के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए थे और उसके एकमात्र जिम्मेदार खुद मुइज्जू थे। पदभार संभालने के तुरंत बाद उन्होंने भारत के बजाय तुर्की और चीन से दोस्ती को ज्यादा अहमियत दी थी। वह उन दोनों देशों की यात्रा पर गए। उन्होंने भारत का अपमान करने का रास्ता चुना। यही नहीं, मालदीव के तीन अधिकारियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में व्यक्तिगत अपमानजनक टिप्पणी की। मुइज्जू ने भारत द्वारा दिए गए दो बचाव और टोही हेलीकॉप्टरों और एक डोर्नियर विमान के रखरखाव व संचालन के लिए वहां तैनात लगभग 80 सैनिकों को वापस बुलाने का अल्टीमेटम भी भारत को दिया। दूसरी तरफ भारत ने संबंधों की मर्यादा रखते हुए विमान को संचालित करने के लिए सैनिकों की जगह भारतीय नागरिक तकनीकी कर्मचारियों को रखने पर सहमति जताते हुए मालदीव के साथ नए समझौते पर सहमति भी दे दी।
भारत को नीचा दिखाने के लिए मुइज्जू ने भारत के साथ हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण समझौते को रिन्यू करने से मना कर दिया और चीनी अनुसंधान जहाज, जियांग यांग होंग 3 को बंदरगाह पर आने की अनुमति दे दी। चीनी जहाज के मालदीव बंदरगाह पर आने से नया तनाव पैदा हुआ। मुइज्जू के इन फैसलों के पीछे सिर्फ यह सोच थी कि मालदीव में दिल्ली के प्रभाव को कम किया जाए और प्रतिद्वंद्वी चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने पर जोर दिया जाए। बावजूद इसके भारत सरकार ने संयम से काम लिया, लेकिन भारतीय नागरिकों ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई। मालदीव के इस वैमनस्य भाव का जवाब देते हुए भारतीय पर्यटकों ने एक तरह से मालदीव का बहिष्कार कर दिया। मालदीव जाने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई और उनकी पर्यटन की कमाई एकदम से आधी हो गई।
मालदीव को बीजिंग के करीब लाने के मुइज्जू के प्रयासों के बावजूद चीन से वित्तीय सहायता मालदीव को नहीं मिल रही। हालांकि चीन ने यह इशारा किया है कि वह अपने ऋण भुगतान को कुछ समय के लिए आगे बढ़ा देगा, लेकिन मालदीव को बीजिंग कोई बेल आउट पैकेज देगा, इसकी कोई चर्चा अभी नहीं है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का यह बयान कि चीन हमेशा की तरह अपनी क्षमता के अनुसार मालदीव के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए समर्थन और सहायता प्रदान करेगा, केवल दिखावा ही लग रहा है।
इस समय मालदीव के अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है। 1,000 से अधिक द्वीप गायब होने की स्थिति में हैं। विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की है कि जैसे-जैसे जलवायु गर्म होता जाएगा, बर्फ की परत पिघलेगी और महासागरों का जलस्तर बढ़ेगा तो मालदीव के बहुत सारे द्वीपों का अस्तित्व नहीं बचेगा। ऐसे में कोई बचाव या पुनर्स्थापन की आशा भी मालदीव भारत से ही करेगा।