अवधनामा संवाददाता
बाराबंकी। सपा मुखिया अखिलेश यादव अब पसमांदा मुसलमानों की चिंता न करें तो ठीक है। पसमांदा मुस्लिम समाज को दरी बिछाने तक सीमित रखने वाले अखिलेश अपनी और अपने दलीय परिवार का ख्याल रखे क्योंकि उन सभी को उनकी जरूरत भी है। पसमांदा समाज अब जागरूक है और उसे अपनी फिक्र करनी आती है।
यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने अखिलेश यादव के उस बयान पर टिप्पणी की, जिसमे उन्होंने पसमांदा मुस्लिम समाज के प्रति झूंठी हमदर्दी जताई थी। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव को पसमांदा मुसलमान की याद तब क्यों नही आई जब यह समाज अपने वजूद और राजनीतिक हिस्सेदारी के लिए संघर्ष कर रहा था। कहने के बावजूद अखिलेश ने किसी पसमांदा चेहरे को राज्यसभा नही भेजा, न आयोग की सिफारिशों को आगे बढ़ाया, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट जहां की तहां रह गई जबकि उस रिपोर्ट में पसमांदा मुसलमान की स्थिति दलितों से भी बदतर बताई गई। पसमांदा मुसलमान अखिलेश यादव का बराबर साथ देता रहा और सरकार बनवाने में अहम भूमिका अदा की, इसके बावजूद अखिलेश यादव ने पसमांदा मुसलमान से सिर्फ दरी बिछवाने का काम लिया। न उसकी हिस्सेदारी तय की और न ही संगठन में जगह ही दी।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने कहा कि अब जबकि पसमांदा मुसलमान अपने पैरों पर खड़ा हो रहा, सही गलत समझने की क्षमता हासिल की है, राजनीतिक हिस्सेदारी के लिए तैयार है और दल के इशारे का इंतजार भर है, यही नही उसे अपना हमदर्द चुनने की पूरी आजादी है। जब एक सत्ताधारी दल पसमांदा समाज का जिक्र कर रहा, उसे अपनाने के लिए आगे आने की कोशिश की जा रही। तब अखिलेश यादव की हिमायत समझ से परे है, उन्हें हमदर्दी दिखाने बेवजह फिक्र करने की कोई जरूरत नही है। बेहतर है कि वह पसमांदा मुसलमान को उसके हाल पर छोड़कर अपनी पार्टी सम्भाले, अभी उन्हें 2024 का चुनाव भी देखना है।