अपराधी सिर्फ अपराधी होता है

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एस.एन.वर्मा

अपराधी होना एक मनोविकार होता है। अपराधी का न कोई धर्म होता है न जाति होती है न कोई लिंग होता है। अपराधी सिर्फ अपराधी होता है। जब से आफताब और श्रद्धा का केस सामने आया है तब से हो रही हत्यायों के लेकर खूब चर्चा हो रही है। अभी कोर्ट का फैसला आने को है पर लोग अपनी अपनी सोच के अनुसार खुद ही फैसला सुना रहे है। यूएनए के महासचिव गुटेरेस ने कहा है हर 11 मिनट में एक महिला या लड़की उसके जीवन साथी या परिवार के सदस्य द्वारा मार दिये जाते है। इसका इतना और जुड़ना चाहिये कि इनकी हत्याओं में निकटतम रिश्वेदार और दोस्त अपना जौहर दिखाते है।
हत्या के अपराध या तो जमीन जायदाद को लेकर या आपसी रिश्तों को लेकर होते है। एक तरफा मोहब्बत में नाकाम होने पर ईर्षा वश भी हत्यायें होती है। कभी धर्म को लेकर भी नासमझ हत्यायें कर बैठते है। पर ज्यादा हत्यायें जीवन साथी के साथ आपसी रिश्तों में तनाव आने की वजह से होती है। हर एक की सहन शक्ति समान नहीं होती है। जो तनाव नहीं झेल पाते है, काफी संवेदनशील होते है वे साथी से छुटकारा पाने के लिये हत्या कर देते है या करवा देते है।
आफताब और श्रद्धा के कान्ड ने लोगों का ध्यान बुरी तरह खीचा है। लोग अपने अपने अनुसार इसकी व्याख्या कर रहे है। आफताब और श्रद्धा का प्यार डेटिंग एप के जारिये हुआ था दोनो लिवइन में रह रहे थे। इसलिये लोग इस सम्बन्ध में सारी बुराईयों की जड़ डेटिग एप, लिवइन, मोबाइल सम्पर्क के सभी आधुनिक टेकनालाजी को बता रहे है। साथ ही ओटीटी द्वारा आ रही फिल्मों को, टीवी शो को जिसमें सेक्स मारधाड़, नारी अंग का बेमतलब बेहूदा और उत्तेजक प्रदर्शन आदि पर भी दोष मढ़ा जा रहा है। चूकि श्रद्धा हिन्दू थी और आफताब मुसलमान इसलिये लव जिहाद को भी इसमें शामिल किया जा रहा है। पर रेप और इस तरह के अनैतिक सम्बन्ध, नाकाम प्रेम की ईषा के लेकर पहले भी हत्याये होती रही है। पर न तो सूचना टेकनालाजी इतनी विकसित थी साक्षारता इतनी ज्यादा थी इसलिये इनका प्रचार नही हो पाता था। हां चीजे इतनी बढ़ गयी है कि ये सब बेकाबू होती जा रही है।
अभी स्कूली बच्चों पर एक सर्वे हुआ है जिसमें उनके बस्तों की तलाशी ली गयी। उनको बस्तों में तमाम आपत्तिजनक चीजे मिले जैसे नशीले पदार्थ, पोर्न तस्वीरे, परिवार निरोधक सामान और दवायें, फोन में अपत्तिजनक बाते और तस्वीरे। हर तरह की प्रगति प्राकृतिक निमय है इसे कोई रोक नहीं सकता। जरूरत है जागृति लाकर स्वमं प्रशिक्षित होने की। एक ही चीज तलवार की दोंधारी धार बन जाती है। इसमें एनजीओ समाज सुधारको शिक्षाविदों और मनोवैज्ञानिक की अहम भूमिका बनती है। वही रास्ता सुझायेगे। जहर को आत्महत्या के लिये भी इस्तेमाल में लाया जाता है और जीवन बचाने के लिये भी प्रयोग में लाया जाता है। सही दृष्टिकोण पैदा करने की जरूरत है। इसका ये मालब नही की सारी टेकनालाजी, रहन सहन मनोरजन और फैशन को बन्द कर दिया जाय। तब तो हम आदिम युग में चले जायेगे जहां हिंसा भूख और सेक्स के अलावा कुछ नही था।
समाज तो गतिशील रहेगा ही इसे रोका नही जा सकता हत्यायें पुरूष नही करते है, महिलायें भी करती है। पर सभी हत्याओं की जड़ एक ही है आपसी रिश्तों में तनाव। इस तनाव को बढ़ाने में पड़ोसी रिश्तेदार दोस्त, सामाजिक ठेकेदार, धर्म के झूठे अलम्बदार मदद करते है। कोई बेरूखी दिखाकर कोई, लताड़, बताकर, तो कोई पापी बताकर तो कोई वेशरम बताकर। जब कि सही दृष्टिकोण और रचनात्मक अप्रोच लेकर ऐसे जोड़ों को सहानुभूति पूर्वक समझाने और अपनापन दिखाने की जरूरत होती है। उनको अपने विश्वास में ले वे आपकी सहानुभूति को महूसूस करे अपनी समस्याओं को साफ साफ बताये और अपने अनुभव के आधार पर उन्हें समझायें अगर आपसी कोई गलतफहमी हो उसे दूर कराये। समझाये जीवन में झझटे आती रहती है, उनसे भाग कर नहीं बचा जा सकता उनका हल निकालकर आगे बढ़ने में ही समझदारी है। अपना मन वे अपनी हाबी में लगाये। अगर दूसरे की हावी को बढावा दे। जीवन सामंजरच ही ममझदारी हो उनसे खुले दिल से सहानुभूति पूर्वक विमर्श किया जाये तो गाठे सुलझ जायेगी और वे नार्मल जीवन व्यतीत करने लगगे। पर यदि समस्य इतनी जटिल हो कि सुलझा न पा रही हो तोबेहतर होगा प्रसन्नता पूर्वक अलग हो जाये अलग होने से पहले मनोवैज्ञानिक से परामर्श अवश्य कर लें। तनाव और शान्ति के लिये यदि हत्या के जायगी तब तो वे और तनाव और अशान्ति फंस जायेगे। क्योंकि पुलिस पकड़ेगी तरह तरह की यातनायें दें ये जुर्म कबूल करवायेगी कोई उन्हें मृत्यु दन्ड या आजीवन कारावास देगा। यह जिन्दगी तनावग्र्रस्त जिन्दगी से भी गयी मुजरी हो जायेगी। हो सकता है सजा और कैद से परीशान हो आप आत्महत्या करले। ऐसी हत्या का क्या फायदा जब जिससे मुक्त होने के लिये हत्या की जाती है। फिर उसी तनाव में आदमी फंस जाये। ब्रेन वाशिंक से इस तरह के भाव पैदा किये जा सकते है।
इसमें सरकार भी अहम रोल पैदा कर सकती है। लोगो के लिये ऐसे अवसर सरकारी गैरसकारी क्षेत्र में पैदा कर दे कि लोग रचनात्मक कामो में लग जाये खुराफातों की ओर दिमाग जाये ही नही। आर्थिक सम्पन्नता कम से कम इस स्तर की हो कि खाना, कपड़ा, मकान, नौकरी सबके पास हो धूसखोरी और भ्रष्टाचार से मुक्त हो भाई भतीजा वाद से मुक्त हों। न्यायप्रणाली मजबूत ओर त्वरित हो। दोषी को अविलम्ब निष्पक्ष सजा मिले। जिससे समाज अपनी को हर तरह से सुरक्षित महसूस करे।

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