तालिबान सरकार के इस फैसले की अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही निंदा
काबुल। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से हालात प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं। देश एक तरफ आर्थिक मार झेल रहा है। वहीं दूसरी ओर अफगान के लोग ढेरों मानवीय संकट से जूझ रहे हैं। ऐसे में, अफगानिस्तान में गंभीर मानवाधिकारों की स्थिति के बीच तालिबान सरकार ने बहुत कुछ उलट-पलट कर दिया है। देश में चारों ओर अशांति फैली हुई है और तालिबान ने अफगानिस्तान में मानवाधिकार संस्थानों पर ताला लगा दिया है।
तालिबान के सत्ता में आने के करीब दस महीने पूरे होने को आए, लेकिन देश में अभी भी सबकुछ तितर-बितर हुआ पड़ा है। आज तक लड़कियों की शिक्षा को लेकर तालिबान का रवैया सही नहीं है। अफगानिस्तान में लड़कियां अब भी खौफ में जी रही हैं, बिना पुरुषों के साथ के वो बाहर आ-जा नहीं सकती हैं। इसके अलावा, देश की मीडिया से की भी स्वतंत्रता छिन्न-भिन्न हो गई है। ऐसे स्थिति में तालिबान का देश में मानवाधिकार आयोग को भंग करना एक बड़ी चिंता का विषय है।
अधिकार कार्यकर्ताओं ने की फैसले की निंदा
तालिबान सरकार के इस फैसले की अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा निंदा की जा रही है। कार्यकर्ताओं ने कहा कि तालिबान द्वारा मानवाधिकार संस्थानों को समाप्त करना सही नहीं है, न्याय की मांग करने के लिए इन जगहों का होना बहुत महत्वपूर्ण था। ह्यूमन राइट्स वाच (HRW) में एसोसिएट महिला अधिकार निदेशक और पूर्व वरिष्ठ अफगानिस्तान शोधकर्ता हीथर बर्र ने कहा, ‘आइए एक ऐसे अफगानिस्तान को याद करने के लिए कुछ समय निकालें, जिसमें मानवाधिकार आयोग था। यह सही नहीं था, ये संस्थान कभी प्रत्यक्ष नहीं था। लेकिन यह कहीं जाने, मदद मांगने और न्याय मांगने के लिए बहुत मायने रखता है।’ उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के वैश्विक गठबंधन में अप्रैल में 120 सदस्य देश थे, लेकिन उन्हें अब अफगानिस्तान से हटने की आवश्यकता होगी।
वहीं पिछले हफ्ते, G7 के विदेश मंत्रियों ने अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की स्थिति पर कहा था, ‘हम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के G7 विदेश मंत्री, और यूरोपीय संघ के उच्च प्रतिनिधि अपना सबसे मजबूत विरोध व्यक्त करते हैं और अधिकारों पर लगाए गए बढ़ते प्रतिबंधों पर खेद व्यक्त करते हैं।’