एस.एन.वर्मा
पाकिस्तान और भारत एक ही दिन आजाद हुये। दोनो मुल्को में लोकतन्त्र एक ही दिन बहाल हुआ। भारत का लोकतन्त्र दुनियां में मिसाल बना हुआ है। पाकिस्तान अलोकतन्त्र का मिसाल बना हुआ है। पाकिस्तान में पहले दस साल में सात प्रधानमंत्री बने। पहले दस साल के आखिरी छह साल में छह प्रधानमंत्री बने। इस उठापटक में जनता का विश्वास लोकतन्त्र में हटने लगा था। इसका फायदा उठा सेना प्रमुख अयूब खान ने 1959 के चुनाव के पहले राष्ट्रपति इसकन्दर मिजऱ्ा से मिलकर सैनिक शासन घोषित कर दिया। 1959 से 1969 तक सैन्य शासन चला।
अन्तरराष्ट्रीय दबाव की वजह से अयूब खान को हटना पड़ा। इसके बाद जुल्फिकार अली भुट्टो का दौर चार साल चला। 1993 से 1977 तक 1977 में सेना प्रमुख जियाउल हक ने भुट्टो को हटाकर सैन्य शासन लागू कर दिया। बाद में भुट्टो को फांसी दिलवा कर अपना शासन 1985 तक चलाया। 1988 के चुनाव में बेनजीर भुट्टो प्रधानमंत्री बनी। 1990 में फिर आम चुनाव हुआ नवाब शरीफ का दौर चला। 1999 में ही मुशरर्फ ने सैनिक शासन थोप दिया। 2002 के बाद युसुफ रज़ा गिलानी और नवाज शरीफ का शासन चला। 2017 में कोर्ट ने नवाज़ शरीफ के नियुक्ति को आयोग्य ठहरा दिया। तब 2018 में इमरान प्रधानमंत्री बने। यह है पाकिस्तान के तथाकथित लोकतन्त्र का अब तक का इतिहास।
अब आज की कहानी शुरू होती है। इमरान खान के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव डिप्टी स्पीकर ने संविधान के आर्टिकल 5 का हवाला देते हुये बिना मतदान के खारिज कर दिया। विपक्षी दल फैसला के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटकखटाया चीफ जस्टिस ने राजनितिक स्थिति का संज्ञान लेते हुये पिछले रविवार को सुनवाई की। कोर्ट ने रक्षा और गृह सचिव को कानून व्यवस्था बनाये रखने का निर्देश दिया। सरकार के सूचना मंत्री ने कहा डिप्टी स्पीकर का फैसला अन्तिम है इसे चुनौती नही दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट के बार अध्यक्ष ने कहा प्रधानमंत्री और डिप्टी स्पीकर की कारवाई संविधान के खिलाफ है संविधान के अनुच्छेद 66 की तहत उनपर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिये। इमरान खान ने कहा मैने कहा था घबराने की जरूरत नहीं है। हमारे खिलाफ विदेशी साजिश है। विपक्ष को समझ में नहीं आ रहा है कि क्या हुआ।
इमरान खान को प्रधानमंत्री बनाने में वहां के सेना प्रमुख और आइएसआई के उच्च अधिकारियों का हाथ रहा। आम चुनाव में इमरान के पक्ष बेमिसाल धांधली हुई और चुने प्रतिनिधियों पर दबाव डाल कर इमरान को प्रधानमंत्री बनवाया गया यहां तक की मतदाताओं को डरा धमका कर इमरान की पार्टी के पक्ष में वोट डलवाया गया। सेना सोच समझ कर इमरान को चुना और प्रशिक्षित किया। यहां तक की वास्तविक प्रधानमंत्री के रूप में सेना काम करती रही। इमरान ने कभी शिकायत नहीं की बल्कि खुश होकर सेना के हिदायतों का पालन करते रहे है।
पर इमरान के चापलूसों ने इमरान को भरोसा दिला दिया कि देश की वास्तविक पार्टी वही है। जनता उन्हें बेहद प्यार करती है। इमरान अपने मेन्टर जेनरल कमर जावेद बजवा से भिड़ गये उनके द्वारा प्रस्तावित आइएसआई चीफ के नाम को दरकिनार कर दिया। इमरान को 2018 के चुनाव में फैज हमीद ने अपने प्रयासों जीत दिलवाई। इमरान बिना सेना से राय लिये उन्हें सेना चीफ बनाना चाहते थे। सेना प्रमुख को नागवार गुजरा क्योंकि सेना प्रमुख ही वहां नाम तय करते है।
वहां सेना के निर्णय को ही लोकतन्त्र जामा पहना कर पेश किया जाता है। सेना के राय के बिना एक पत्ता नहीं हिलता। चुने राजनेता सेना के निर्णय के पक्ष में हाथ उठाने का काम करते है। हाथ नहीं उठा तो कुर्सी उठा ली जायेगी।
सेना ने पाकिस्तान के नागरिक नेता और नागरिक संस्थाओं में इतनी पैठ बन रक्खी है कि सेना प्रमुख की बात ही लोकतन्त्र के लिबस में पेश की जाती है। सेना ऐसे ही लोगों को चुनकर प्रधानमंत्री सहित प्रमुख पदों पर बैठाती है जो उनके ही मंशा को लोकतन्त्र के रूप में पेश करे। राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रिय मुद्दों पर सेना के मर्जी खिलाफ नागरिक और लोकतन्त्र प्रशासन नहीं जा सकता। सेना ने ऐसा जाल बिछा रक्खा है कि सैनिक विद्रोह की जरूरत ही नहीं होती।
इमरान भी सेना की मर्जी वाले कदम उठा रहे है जिसमें वे दोबारा प्रधानमंत्री बन सके। पाकिस्तान इस्लामिक राज्य पर जोर देता है और चलता भी उन्हीं राहो पर है। पश्चिमी सभ्यता से नफरत करता है पर पश्चिमी डालर से नहीं। मदद मांगने के लिये हाथ हमेशा फैला रहता है। क्योंकि पाकिस्तान ने लोकतन्त्र और अर्थतन्त्र दोनो बेहाल है। खुदा जाने कब तक बने रहेगे। जब तक उधारी के पैसे पर सेना ऐश करती रहेगी तब तक तो यह सब चलता रहेगा। इमरान जैसे को प्रधानमंत्री बनते रहेगे। अविश्वास प्रस्ताव पर कोर्ट में सुनवाई लम्बी खिचेगी। इसलिये पूर्व जस्टिस गुलज़ार को कार्यवाहक पीएम बनाया गया है। विपक्ष ने हिस्सा नहीं लिया।
पर इमरान इसे छक्का कहते है विपक्षी इसे नो बाल कह रहे है।