बगैर मारेफत हक़ हासिल होना नामुमकिन  – मौलाना हिलाल 

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Impossible to achieve without rights - Maulana Hilal

अवधनामा संवाददाता

जश्ने कायम में बरसे अकीदत के फूल

बाराबंकी। (Barabanki) इमाम के मानने वालों पर वाजिब है कि वह मारेफत के साथ अमल करें  हक़ आयेगा बातिल मिट जायेगा , बातिल को तो एक दिन मिटना ही है । यह बात नगर के बेलहरा हाऊस के निकट मरहूम बाक़र साहब के अज़ाखाने में जश्ने क़ायम की  महफ़िल को खिताब  करते हुए मौलाना हिलाल अब्बास ने कही।उन्होंने कहा कि बगैर मारेफत हक़ हासिल होना मुमकिन ही नहीं । जब इमाम आयेंगे दुनियां को अद्लो इंसाफ से ऐसे भर देंगे  जैसे ज़ुल्म जोर से भरी होगी । बादे महफिल मुल्क के लिए अम्नो अमान की दुआ के साथ कोरोना जैसी वबा से नजात के लिये और आखेरत बखैर के लिए दुआयें की गई।महफ़िल से पहले मुज़फफर इमाम ने नजरानए अक़ीदत पेश करते हुए पढ़ा – है यक़ीं मेरे दिल को वो ज़रूर आयेंगे,मिस्ले फातहे खैबर कुल जहां पे छायेंगे । हाजी सर वर अली करबलाई नेअपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा – ज़ुल्म दुनियां से सर वर यूं मिट जायेगा , जैसे था ही नहीं जब हुज़ूर  आयेंगे ।
आरिफ़ रज़ा जाफरी ने बेहतरीन कलाम पढ़ा – ऐ काश वख्त आए वो मेरी हयात में , तेरह रजब हो क़ाबा हो महदी हों साथ में ।शुजा हैदर ने पढ़ा – काश मैं महदीये दौरां का ज़माना देखूं , बारहवें हैदरे कर्रार  का चेहरा देखूं।मोहम्मद इमाम ने पढ़ा – इश्क़े इमामे वख्त में बीमार हो गया, जन्नत में एक घर मेरा तय्यार हो गया ।अद्नान रिज़वी ने पढ़ा – मौला ये मेरा काम है पहला कर दे ,तक़्दीर के चेहरे को रुपहला कर दे ।महफिल का आगाज़ तिलावते कलाम ए इलाही से शुजा हैदर ने किया।तिलावत के साथ साथ माना और तफ्सीर भी बयां की।बच्चों और नौजवानों के इल्म में इज़ाफे और हौसलाअफजाई के लिए  सवालो जवाब का सिलसिला भी चला जवाब देने वालों को तोहफ़े से नवाज़ा गया ।महफिल की बेहतरीन निज़ामत के फराएज़ मिर्ज़ा मोजिज़ हुसैन लखनवी ने अन्जाम दिये । बानिये महफिल ने सभी का शुक्रिया अदा किया ।
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