मध्यप्रदेश के लगभग डेढ़ हजार अनाथ, परित्यक्त-बेसहारा बच्चों पर महिला बाल विकास के आला अफसरों का दिल पत्थर की तरह कठोर बना हुआ है। इन बच्चों के लालन-पालन में लगी संस्थाओं को सालभर से अनुदान नहीं दिया गया है। यहां देखने में आ रहा है कि मिशनरीज संस्थाओं को छोड़कर अधिकतर गंभीर आर्थिक संकट में फंस चुकी हैं।
उल्लेखनीय है कि महिला बाल विकास के अधीन मप्र में 67 बाल देखरेख संस्थाएं संचालित हैं जिनमें करीब डेढ़ हजार ऐसे बच्चे निवासरत हैं, जिनके परिवार में कोई नहीं है या जो किशोर न्याय अधिनियम की परिभाषा में सीएनसीपी श्रेणी में आते हैं। संस्थाओं को इस साल का अनुदान जारी नहीं किया गया है जबकि वित्तीय बर्ष 2023-24 को समाप्त हुई लगभग तीन महीने हो रहे हैं। प्रदेश में 44 बाल गृह,26 शिशु गृह एवं 17 खुला आश्रय गृह संचालित हैं। विभाग ने आचार संहिता में 7 नवीन संस्थाओं को भी मंजूरी दी है।
भारत सरकार से मार्च में मिला बजट
केंद्र की ‘मिशन वात्सल्य योजना’ के तहत जिन संस्थाओं को बजट मिलता है, उन्हें केंद्र सरकार द्वारा 60 फीसदी एवं राज्य सरकार 40 फीसदी अंशदान दिया जाता है। इस संबंध में मध्य प्रदेश के कोटे का बजट मार्च के अंतिम सप्ताह में ही केंद्र सरकार ने जारी कर दिया गया, लेकिन महिला बाल विकास के अफसर तीन महीने से बजट को लटकाए हुए हैं। कभी लोकसभा चुनाव के नाम पर तो कभी कलेक्टरों से अनुशंसा के नाम पर इन संस्थाओं का बजट रोका गया।
सबसे ज्यादा छोटी संस्थाओं की हालत खराब
प्रदेश में भोपाल, इंदौर, खंडवा, इटारसी, जबलपुर, दमोह, सागर में मिशनरी संस्थाओं द्वारा भी बाल गृह चलाये जाते हैं। इन संस्थाओं को एफसीआरए के अलावा मिशनरीज औऱ यूनिसेफ जैसे संस्थाओं से बड़ी राशि चंदे के रूप में मिलती है, इसलिए इन संस्थाओं को आर्थिक रूप से कोई दिक्कत नहीं आती और यह सरकारी सहायता या योजना अनुरूप आर्थिक राशि समय पर नहीं मिलने के बाद भी अपनी संस्थाओं को चलाने में इन्हें कोई अर्थ के नजरिए से कोई दिक्कत नहीं आती, इसके साथ ही इनके हिडन एजेंडे में कन्वर्जन भी शामिल रहता है, जिसके चलते इन्हें मोटी रकम समय-समय पर दान के रूप में मिलती रहती है, लेकिन छोटी संस्थाओं के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। यही कारण है कि बालकों के पक्ष में सेवा कर रही छोटी संस्थाएं कहीं न कहीं शासकीय राशि पर निर्भर करती है, जब यह राशि लम्बे समय तक रोक दी जाती है, तब स्थिति यहां तक पहुंच जाती है कि इन्हें अपने सहयोगियों को समय पर वेतन देना भी मुश्किल हो जाता है। अभी ऐसी संस्थाएं अपने यहां साल भर से स्टाफ को पूरा वेतन भी नहीं दे पा रही हैं। वहीं, इन्हें बच्चों के लिए मानक सुविधाएं उपलब्ध कराने में भी अड़चन आ रही है। कुछ संस्थाओं के पास राशन, बिजली, पानी के बिल अदा करने के हालात भी नहीं है।
असंवेदनशीलता की निशानी: कानूनगो
राष्ट्रीय बाल आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने भी इस स्थिति पर असंतोष व्यक्त करते हुए हाल ही में भोपाल में आयोजित समन्वय बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि संस्थाओं के बजट को अनावश्यक लालफीताशाही का शिकार बनाना घोर असंवेदनशीलता का मामला है। कानूनगो का कहना है कि अब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसे संज्ञान में लिया है। आशा है मध्यप्रदेश के डेढ़ हजार बच्चों के हक में अनुदान जल्द ही जारी किया जायेगा।
वहीं, इस संबंध में मप्र राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा एवं ओंकार सिंह का कहना है कि स्वयंसेवी संस्थाएं वैसे तो समाज के बल पर ही कार्य करती हुई देखी जाती हैं, किंतु योजनाओं पर जब वे कार्य करती हैं और कोई प्रोजेक्ट बनाकर अथवा शासन की स्वीकृत योजनाओं पर सरकार के सहयोग से कार्य करती हैं, तब निश्चित ही वे उस संबंधित प्रोजेक्ट व योजना पर कुछ हद तक या बहुत हद तक शासन की आर्थिक राशि पर निर्भर रहती हैं, ऐसे में यह जरूरी है कि उन्हें यह राशि सही समय पर मिलती रहनी चाहिए। इनका कहना है कि एनसीपीसीआर के अध्यक्ष कानूनगो इस संबंध में मप्र सरकार के संज्ञान में इस विषय को पहले ही लेकर आ चुके हैं, फिर भी जहां किसी भी स्वयंसेवी संस्थान को इस बारे में राज्य बाल आयोग से कोई अपेक्षा है तो वह बता सकते हैं, उनकी यथासंभव मदद करेंगे।
पूर्व मंत्री उषा ठाकुर ने कहा
इस संबंध में पूर्व संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने कहा है कि इंदौर की सभी संस्थाओं ने पिछले दिनों कलेक्टर इंदौर से मिलकर इस समस्या को उठाया था। इसके अलावा मेरे द्वारा भी संचालनालय के आला अफसरों से बच्चों के हित में बजट जारी करने के लिए कहा गया है, लेकिन अभी तक अधिकारियों ने अनुदान जारी नहीं की है। मैं उम्मीद कर रही हूं कि उक्त राशि सभी संस्थाओं को अतिशीघ्र जारी की जाएगी।