न मानी कभी हार, न पीछे मुड़कर देखा, कांग्रेस के खिलाफ राजनीति, पहले निर्दलीय, फिर जनता दल–

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अवधनामा संवाददाता

सुलतानपुर। भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी व पूर्व केंद्रीय मंत्री “सांसद”मेनका संजय गांधी लगातार अपने कामों को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं।चाहे अपने संसदीय क्षेत्र में जनता से सीधा संवाद हो, या फिर पूरे देश में मेनका गांधी के द्वारा चलाए जा रहे जानवरों के प्रति प्रेम व पर्यावरण के प्रति लगाव,दोनों विषयों पर उनके द्वारा लिए गए फैसले हमेशा चर्चा में रहे है।ऐसे में लगातार दूसरी बार सुल्तानपुर जनपद से वह चुनावी मैदान में है।1 अप्रैल से लगातार वह चुनावी कैंपेनिंग में लगी हुई है।वे जनता से सीधा संवाद करते हुए अपनी जीत का आशीर्वाद मांग रही है।देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा करवाए गए जनपद में कार्यों को गिनाते हुए एवं अपने स्वयं के द्वारा जिले में किए गए कार्यों की चर्चा लगातार जनसंवाद के माध्यम से जन-जन तक पहुंचा रही है। मेनका गांधी का राजनीतिक सफर बड़ा संघर्षपूर्ण रहा है। मेनका गांधी की सबसे खास बात ये है कि उन्होंने बीते 3 दशक से कोई चुनाव नहीं हारा है।वह पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की बहू और दिवंगत कांग्रेस नेता संजय गांधी की पत्नी हैं।उन्हें जानवरों से काफी लगाव है और वह उनके अधिकारों के लिए हमेशा लड़ती रहती हैं।उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं।मेनका गांधी को बीजेपी के सीनियर नेताओं में से एक माना जाता है।पति संजय गांधी के निधन के बाद उनके अपनी सास इंदिरा गांधी से बहुत मधुर संबंध नहीं रहे,इसलिए वह कांग्रेस से अलग हो गईं।बाद में उन्होंने राष्ट्रीय संजय विचार मंच बनाया।इस मंच ने शुरुआत में युवाओं की जागरुकता और रोजगार के मुद्दे को उठाया।आंध्र प्रदेश में हुए चुनावों में इस मंच ने 5 में से 4 सीटें जीती थीं।मेनका गांधी ने एक किताब ‘द कम्पलीट बुक ऑफ मुस्लिम एण्ड पारसी नेम्स’ को भी पब्लिश किया है। क्योंकि उनके पति संजय गांधी का पारसी धर्म में बहुत विश्वास था।बाद में उन्होंने ‘द बुक ऑफ हिंदू नेम्स’ पब्लिश की।
कहां से शुरू हुआ मेनका गांधी का सफर–
मेनका गांधी का जन्म 26 अगस्त 1956 को नई दिल्ली में एक सिख परिवार में हुआ था।उनके पिता सेना में अधिकारी थे। उनकी पढ़ाई सेंट लॉरेन्स स्कूल और लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वूमेन से हुई।उन्होंने जेएनयू दिल्ली से जर्मन भाषा की भी पढ़ाई की।एक कॉकटेल पार्टी के दौरान उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई और फिर दोनों ने शादी करने का फैसला किया।मेनका, संजय के साथ चुनाव कैंपेनिंग में जाया करती थीं और उनकी खूब मदद करती थीं।उस दौर में संजय गांधी बहुत प्रभावशाली नेता थे और उनका अपनी मां और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के फैसलों में सीधा दखल रहता था।इसी बीच मेनका गांधी ने सूर्या नाम से एक मैगजीन की शुरुआत की थी।जिसने 1977 के चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद इसके प्रमोशन का जिम्मा उठाया था।1980 में उनके और संजय गांधी के एक बेटा हुआ,जिसका नाम दादा फिरोज के नाम पर रखा गया।बाद में इंदिरा ने इस नाम के आगे वरुण जोड़ दिया। मेनका जब 23 साल की थीं और वरुण केवल 3 महीने के थे, तभी संजय गांधी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हो गया।1984 के लोकसभा चुनावों में मेनका ने मजबूत दावेदारी पेश की,लेकिन राजीव गांधी के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में वह निर्दलीय खड़ी हुई थीं।1988 में उन्होंने वी पी सिंह का जनता दल ज्वाइन किया और इसकी महासचिव बनीं।1989 में मेनका ने पहली बार पीलीभीत से चुनाव जीता और पर्यावरण राज्यमंत्री बनीं। 1996 में वह दोबारा पीलीभीत से सांसद चुनी गईं।तब से लेकर अब तक वह कोई चुनाव नहीं हारी हैं।1998-99 में वह राज्यमंत्री (सोशल जस्टिस और इमपावरमेंट-स्वतंत्र प्रभार) रहीं।2001 में भी उन्हें राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया। 2001 से 2014 तक उन्होंने कई कमेटियों की जिम्मेदारी संभाली।2014 में उन्हें केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री बनाया गया। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने उनकी सीट बदली, और वह पीलीभीत की जगह सुल्तानपुर से चुनाव लड़कर करीब 14 हजार मतों से जीत दर्ज की ।वहीं 2024 लोकसभा चुनाव में फिर से एक बार बड़ी जद्दोजहद के बाद भारतीय जनता पार्टी ने मेनका गांधी को टिकट दिया है और वे सुल्तानपुर से ही चुनावी मैदान में हैं।वे एक अप्रैल से लगातार चुनाव प्रचार में लगी हुई है।मेनका जानवरों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली कार्यकर्ता हैं, इसके लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय तौर पर कई पुरस्कार मिले हैं। 1992 में उन्होंने पीपल फॉर एनीमल नाम से एक संगठन भी शुरू किया जो भारत में जानवरों के हितों के लिए काम करने वाला सबसे बड़ा संगठन है।

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