एस.एन.वर्मा
मोदी की राजनीति और कूटनीति इतनी दूरदर्शी होती है कि मुंह से बरबस वाह वाह निकल पड़ता है। महिला बिल के माध्यम से जो निशाना साधा है विपक्ष हतभ्रम है। वह कोई सारभूत टिप्पणी नहीं कर पा रहा है। जुमलेबाजी, चुनाव देख कर बिल लाया गया है, 2029 तक निर्वाचन क्षेत्र का पुनरिक्षण नहीं पायेगा इस तरह की बयानबाजी विपक्ष की ओर से हो रहा है। कांग्रेस पूर्वमंत्री और कानून विद कपिल सिब्बल ने तो यहां तक कहा है कि मोदी लोकसभा में एलान करें की 2029 में अगर निर्वाचन क्षेत्र का पुनरीक्षण नहीं हुआ तो कुर्सी छोड़ देगे।
मोदी जी ने महिला बिल की माध्यम से महिलाओं में तो अपनी ग्रहयता बढ़ाई है जिसका फायदा 2024 के चुनाव में तो मिलगा ही 2029 के लिये भी अपनी जीत का मील का पत्थर रक्ख दिया है। संविधान में प्रावधान है कि हर जनगणना के साथ निर्वाचन क्षेत्रों का पुनरीक्षण हो क्योंकि आबादी घटती कम और बढ़ती ज्यादा है। जनगणना हर 10 साल में होनी चाहिये पर इधर जनगणना नहीं हुई है। पिछले 50 सालो से निर्वाचन क्षेत्रों का पुनरीक्षण भी नहीं हुआ है। दक्षिण की पार्टियां अपने हितो को देख कर उलझी हुई है। निर्वाचन क्षेत्रों का निधारण जन संख्या के आधार पर होता है। कुछ ऐसा टेªन्ड है कि उत्तर की आबादी बढ़ती जाती है दक्षिण की आबादी तुलनात्मक दृष्टि से कम होती जाती है। दक्षिण राज्यों में शिक्षा का स्तर में उत्तरी राज्यो से बेहतर है। जनसंख्या पर इसका भी असर पड़ता है। तो अगर 2029 में निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण होगा तो उत्तर भारत में निर्वाचन क्षेत्र का क्षेत्र सिकुड़ेगा जिसके फलस्वरूप सीटों की संख्या बढ़ेगी। दक्षिण भारत में क्योंकि जनसंख्या घटेगी तो निर्वाचन क्षेत्र का क्षेत्र बढ़ेगा पर सीटो की संख्या कम होगी। इसलिये दक्षिण भारत के नेता चिन्तित है कि उनके प्रतिनिधियों की संख्या और सीटो की संख्या पहले से ही कम है यहां और कम हो जायेगी। उत्तर भारत में जनसंख्या की वजह से निर्वाचित क्षेत्र भी ज्यादा है तो लाजिमी है कि उनके प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ेगी। दक्षिण भारत में भाजपा की पैठ कम है पर उत्तर भारत तो भाजपा का आधार है यह सीटो की संख्या बढ़ेगी तो भाजपा के प्रतिनिधियों की संख्या भी बढ़ेगी। मोदी का निशाना इन्ही बातों को लेकर सटीक बैठ रहा है विपक्ष इसीलिये परेशान है। इसकी काट उनके समझ में नहीं आ रही है। कांग्रेस जो मुख्य विपक्ष की भूमिका निभा रहा है चुनावदर चुनाव उसकी उपस्थिति घटती जा रही है। कांग्रेस राहुल गांधी के मोदी के समक्ष खड़ा करने में लगी है पर अनुभव उम्र, वाकपटुता, दूरदर्शिता, राजनीति कूटनीति में कही भी उनके समक्ष ठहरते नहीं दिखते है। कहते है पैदल यात्रा से उनकी लोकप्रियता बढ़ी है अगर बढ़ी भी है तो इतनी नहीं बढ़ी है कि भाजपा को टक्कर दे सकें। इसके अलावा कांग्रेस को सहारा विपक्षी दलों की एकता की एकता का है जो दिख नहीं रहा है। क्योेंकि पहले तो केन्द्रीय भूमिका के लिये दो लोग और आगे आना चाहते है वो भी नितिश कुमार ने अपने पत्ते नहीं खोले है पर आकांक्षा पाले हुये है। केसीआर ऐसे नेताओं में आगे है और मुखर भी है। नितीश हांलाकि कह रहे है हम आकांक्षी नहीं है पर अन्दर-अन्दर लालसा पाले हुये है। किसी क्षेत्र में महात्वाकांक्षा बुरी चीज नहीं होती है पर पांव जमीन पर ही होना चाहिये सिर्फ आसमान देखते रहने से काम नहीं बनता हैं। महत्वाकांक्षी जोकर लगने लगात है। विपक्ष में शरद पवार सबसे कद्दावर अनुभवी और बु़द्धीमान नेता है, हालाकि उनकी पार्टी बट गई है पर उनका रूतबा कायम है। ममता बनर्जी का अलग राग है वह चाहती है कांग्रेस उनके साथ मिलकर चुनाव लड़े। हालाकि ममता भी कद्दावर होशियार और जुझारू नेता है पर भतीजे के मोह में भटक गई लगती है।
राहुल गांधी के बयान कुछ ठीक ठाक आ रहे है पर उनकी मौलिक सोच नहीं लगती है। उनके पीछे जो कुछ कांग्रेसी है खासकर जैराम रमेश वह राहुल का कायाकल्प करने में कबसे जुटे है। मेरा तो मानना विपक्ष अगर उनको अपना नेता ही मानले तो उनकी बड़ी कामयाबी है। खैर सब समय बतलायेगा।
फिलहाल मोदी की गणित उनके पक्ष में जाती दिख रही है 2024 में तो आने को अश्वस्त है 2029 को भी अपनी गोद में लपेटे हुये है। असली निर्णायक तो मतदाता होता है। वक्त पर वही बतायेगा कौन सिकन्दर है। इस समय राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्थितियां मोदी के अनुकूल दिख रही है। दो साल के दुनियां के सर्वप्रिय नेताओं में सबसे ऊपर चल रहे है। उनका आत्मविश्वास उफान पर है। नतीजे के लिये वक्त का इन्तजार करें।