Wednesday, May 1, 2024
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विपक्षी एकता के किंग मेकर साबित हो रहे अखिलेश

विपक्षी एकता के किंग मेकर साबित हो रहे अखिलेश कैराना और नूरपुर से और मज़बूत हुई गठबंधन की नींव

सय्यद काज़िम रज़ा शकील

आज आये उपचुनाव के नतीजों से भाजपा को ज़बरदस्त झटका लगना स्वाभाविक है लेकिन जिस तरह विपक्ष की एकता और सफलता में अखिलेश यादव का किरदार सामने आया आया है उससे अखिलेश यादव विपक्ष के किंग मेकर के रूप में उभर कर सामने आये है२०१७ में भाजपा के सामने बनाने असफलता और भाजपा के बढ़ते प्रभाव सिर्फ अखिलेश यादव ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विपक्ष भविष्य की राजनीती को लेकर चिंतित था उत्तरप्रदेश में उपचुनाव से अखिलेश यादव ने विपक्षी एकता को मज़बूत करना शुरू कर दिया जिसके अच्छे परिणाम भी आये। आज के परिणाम से जिस तरह भाजपा के फायर ब्रांड प्रवक्ता की टीम के चेहरे से यह साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि 2019 भाजपा काफी दबाव और चिंता में है और कैराना व नूरपुर से विपक्ष की एकता का महागठबंधन की नींव आज और मज़बूत हो गयी जो विपक्ष के लिए अच्छे संकेत है लेकिन इसमें कांग्रेस और बसपा की मायावती के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं क्योंकि विपक्ष की उत्तरप्रदेश में विपक्ष की एकता का केंद्र अखिलेश यादव बनते जा रहे हैं और कांग्रेस मात्र एक खामोश समर्थक की भूमिका में है।


वैसे तो मोदी की लहर 2015 में ही डोलने लगी थी लेकिन राज्यों में छोटे दलों के साथ का सहारा पा कर सरकार बनाने में सफलता मिल रही जो धीरे धीरे खत्म होती नज़र आने लगी मात्र 49 दलों के साथ मोदी देश में कांग्रेस मुक्त अभियान को सफल बनाने में लगे थे लेकिन उनकी ख्याति का स्तर कम होता जा रहा था .
अगर देखा जाए तो उत्तरप्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव विपक्षी एकता के किंग मेकर की भूमिका में उभरे हैं विधान सभा चुनाव में जिस तरह सपा के साथ कांग्रेस के गठबंधन को जनता ने नकारा और बसपा को सबक सिखाया उससे सबक़ लेते हुए उपचुनाव में मायावती ने घोर विरोधी अखिलेश यादव के साथ अघोषित गठबंधन किया जबकि इंद्रजीत सरोज समेत कई नेताओं ने कुछ समय पहले ही सपा में शामिल होते हुए बसपा प्रमुख मायावती पर निशाना साधा था जिससे यह समझा जा रहा था कि अखिलेश और माया का साथ आना मुमकिन नहीं लेकिन मोदी -शाह की जोड़ी के विरोध ने इन लोगों को एक कर दिया और गोरखपुर व फूलपुर की जीत ने इनके रिश्ते और मज़बूत कर दिये इस रिश्ते को राजयसभा और विधानपरिषद चुनाव में सपा ने देकर और मज़बूत कर दिया। फिर पश्चिमी उत्तरप्रदेश में अजीत सिंह अपने बेटे जयंत सिंह के भविष्य को लकर चिंतित थे ऐसे में अखिलेश यादव ने इनको सहारा दिया और कैराना लोकसभा उपचुनाव में अपने प्रत्याशी को रालोद प्रत्याशी के तौर उतारा इससे जयंत चौधरी को पश्चिमी उत्तरप्रदेश में संजीवनी मिली और उनकी राजनीती में युवा चेहरे के तौर पर स्थापित करने मदद मिली।
अगर गौर किया जाए तो उत्तरप्रदेश ने जिस तरह देश में विपक्षी एकता की ताक़त का संदेश दिया उसमे विपक्षी एकता के किंग मेकर के तौर पर अखिलेश यादव स्थापित हो रहे हैं जिस तरह मायावती औररालोद कांग्रेस को जनता नकार चुकी थी उससे इन लोगों का चिंतित होना लाज़मी था और हताश से नज़र आने लगे थे लेकिन युवा शक्ति का एहसास करते हुए अखिलेश यादव ने सभी को एक साथ लाने का काम शुरू किया और एक साथ जोड़ा बल्कि नेक नयी नींव डाली की प्रत्याशी किसी पार्टी का और टिकट किसी पार्टी का इससे एक दूसरे के धुर विरोधी साथ आते चले गए और मायावती जैसी लीडर को भी अखिलेश यादव का लोहा मानना पड़ा इस तरह अखिलेश यादव विपक्षी एकता के किंग मेकर के तौर पर स्थापित होते दिख रहे जो 2019 में इतिहास रचने को तैययर नज़र आने लगी

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