भारत सरकार द्वारा जनरल कोर्ट मार्शल द्वरा दी गयी सजा निरस्त करते हुए मेजर को तीन महीने के अन्दर सेना के समस्त लाभ देने का दिया आदेश.

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BRIJENDRA BAHADUR MAURYA–
सेना कोर्ट ए.ऍफ़.टी. ने अहम फैसला सुनाते हुए रक्षा-मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जनरल कोर्ट मार्शल द्वरा दी गयी सजा निरस्त करते हुए मेजर को तीन महीने के अन्दर सेना के समस्त लाभ देने का दिया आदेश.

सेना कोर्ट का निर्णय ऐतिहासिक: जनरल सेक्रेटरी ए.ऍफ़.टी.बार.

सेना कोर्ट ए.ऍफ़.टी. ने मेजर विनोद कुमार बनाम भारत सरकार एवं अन्य के मामले में माननीय न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और माननीय एयर मार्शल अनिल चोपड़ा की खंड-पीठ ने सुनाया अहम फैसला, प्रकरण यह था कि मेरठ कैंट निवासी मेजर विनोद कुमार सेना की ए.एस.सी. कोर में तैनात था जिसने अपनी दक्षता से सेना की अनेक परीक्षाओं को ‘ए’ ग्रेड में उत्तीर्ण किया था, उसकी कार्य-क्षमता और दक्षता को देखते हुए उसे बूचरी अधिकारी के साथ ही अन्य कार्यों की जिम्मेदारी सौपी गयी थी और मेजर एच.एस. मुल्तानी मेजर विनोद कुमार का ऑफिसर कमांडिंग था. वाकया 12/13.07.1996 का है जब मेजर नरेंद्र सिंह जो सेना के जानवरों का अधिकारी ने बिना किसी अग्रिम-सूचना के औचक-निरिक्षण बूचरी का करने आए जिनका विवाद मेजर एच.एस. मुल्तानी से हो गया और उन्होंने गुस्से में आकर  मेजर नरेंद्र सिंह 25 जानवरों के मांस को यह कहकर रिजेक्ट कर दिया कि उसमें पानी डाला गया है, उसके बाद दोनों ने इस मामले को स्टेशन हेडक्वार्टर ग्वालियर स्थित एडम कमांडर के सामने रिपोर्ट किया अंतत यह तय हुआ हुआ कि मामला तय हो गया है और उस पर अब कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी लेकिन, मेजर नरेंद्र सिंह ने मामले को 20 जुलाई 1996 को सेना मुख्यालय मध्य-कमान सहित अन्य सेना के अधिकारयों को लिखित शिकायत भेजी कि जानवरों के मांस में पानी मिला पाया गया. सेना मुख्यालय स्टेशन हेड क्वार्टर ग्वालियर ने 17 अगस्त 1996 को सेना की कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी बैठा दी जो 23 अगस्त 1996 को बैठी और 24 अगस्त 1996 को छः गवाह उपस्थित हुए और उनके बयान दर्ज किए गए और और फिर जनरल कोर्ट मार्शल के द्वारा याची को सीवियर रिप्रिमांड और तीन साल प्रमोशन पर रोंक लगाने की सजा सुना दी गयी जिसके खिलाफ याची ने सेना के नियम के तहत रिविजन की याचना करते हुए सजा कम करने को सेना के उच्च-अधिकारियों से कहा लेकिंग उसकी याचना को अस्वीकार करते हुए सजा को बढ़ा दी गयो उच्च-न्यायालय, जबलपुर में रिट याचिका संख्या- 5952/2005 (सर्विस) दायर की जो वर्ष 2010 में सेना कोर्ट ए.ऍफ़.टी. को स्थानांतरित कर दी गयी और टी.ए.नं.947/2010, के रूप में दर्ज हुई और सुनवाई प्रारम्भ हुई.

      माननीय न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और माननीय एयर मार्शल अनिल चोपड़ा की खंड-पीठ ने मामले के सुनवाई के दौरान भारत सरकार से पूंछा की आर्मी रुल 180 पर सुप्रीम-कोर्ट ने कर्नल पृथी पाल सिंह बेदी बनाम भारत सरकार (1982) 3 SCC P.140 में व्यवस्था दी है की इस नियम का अनुपालन यदि नहीं किया गया है हो सेना द्वारा की गयी सभी कार्यवाही निरस्त कर दी जाएगी इसके बावजूद सेना और रक्षा-मंत्रालय ने नियमो का उल्लघन किया जो किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं हो सकता और भारत सरकार ने तो इस मामले में खुद की गलतियों को छुपाने के लिए इस नियम का घोर उल्लंघन किया है जब पहली कोर्ट-आफ-इन्क्वायरी में गलत तरीका अपनाया गया था और वह स्वीकार नहीं था तो दूसरी कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी के नाम पर उसी गलती को सही साबित करने का प्रयास भारत सरकार ने क्यों किया, सरकार इसका जवाब नहीं दे पाई और जब खण्ड-पीठ ने भारत सरकार रक्षा-मंत्रालय से पूंछा की 1996 में की गयी शिकायत पर सन 2000 में जनरल कोर्ट मार्शल क्या बैठाया जा सकता है तो सरकार ने जो तर्क दिया उसको माननीय न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और माननीय एयर मार्शल अनिल चोपड़ा की खंड-पीठ ने सिरे से ख़ारिज कर दिया और पूंछा की अभियुक्त आपसे गवाहों की मांग करता रहा और उसे गवाह बगैर उपलब्ध कराए ही सजा सुनाना क्या भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार दी जा सकती है, सेना की कार्यवाही एक फौजदारी कोर्ट की कार्यवाही के रूप में कानून में स्वीकार की गयी है और वहा पर की जाने वाली कोई भी कार्यवाही न तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम का अतिक्रमण कर सकती है और न  ही सिविल प्रोसीजर कोड की धाराओं और इस मामले में तो मनमानी तरीके से कार्यवाही करके अभियुक्त को सजा सुनाई गयी है, भारत सरकार रक्षा-मंत्रालय ने तर्क दिया की मामला चूँकि सेना द्वरा खाद्य-सामग्री के रूप में प्रयोग में लाये जाने वाले मॉस का था जिसमे अभियुक्त पानी मिलाने केलिए जिम्मेदार है क्योंकि ऐसे कृत्यों से सैनिको में किसी बीमारी के फैलने के आशंका हो सकती है लेकिन, माननीय न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और माननीय एयर मार्शल अनिल चोपड़ा की खंड-पीठ ने भारत सरकार रक्षा-मंत्रालय की दलीलों को सिरे से ख़ारिज कर दिया और जनरल कोर्टी मार्शल द्वारा सुनाई गयी सजा और रिवीजन आदेश द्वारा अभियुक्त को सुनाई गयी सजा को ख़ारिज करते हुए भारत सरकार रक्षा-मंत्रालय को आदेशित किया की तीन महीने के अन्दर याची को सभी सेना की नौकरी के लाभ प्रदान किए जाय. ए.ऍफ़. टी. बार के जनरल सेक्रेटरी विजय कुमार पाण्डेय ने पत्रकारों को बताया की निर्णय सेना के कई नियमों में बदलाव लाने वाला है और इसका लाभ अन्य पीड़ित सैनिकों को मिलेंगा, निर्णय ऐतिहासिक और सेना के नियमों और कानूनों को बदलती सामाजिक परिस्थितयों में परिभाषित करने वाला है और भविष्य में इसका लाभ अन्य लोगों को भी मिलने वाला है.

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