Wednesday, May 1, 2024
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HomeMuslim Worldबदलता है रंग आसमां कैसे कैसे

बदलता है रंग आसमां कैसे कैसे

वक़ार रिज़वी
डा. अम्मार रिज़वी जैसे एक आध नेताओं को अगर छोड़ दिया जाये जो अपनी पार्टी के लगभग 30 साल से सत्ता से बाहर होने के बावजूद कई बार दूसरी सत्ताधारी पार्टी के भागीदार होने के अवसर को ठुकरा कर अभी तक उस पार्टी में बने हुये हैं जिसका निकटतम भविष्य अभी भी पूर्ण अंधकार में है। जीवन में नेताओं का हृदय परिवर्तन एक आम बात हो गयी है। सत्ता से दूर न रहने वाले तमाम नेता सत्ता परिवर्तन के साथ ही अपना हृदय परिवर्तन करके सत्ताधारी पार्टी के साथ आ जाते हैं और ऐसे ही नहीं आ जाते हैं जब वह आते हैं तो उनके पूर्वज जो कल तक मुसलमान थे वह हिन्दु हो जाते हैं, वह मन्दिर में घंटा भी बजाने लगते हैं और आरती उतारने में भी किसी से पीछे नहीं रहना चाहते, यही नहीं सत्ता की क़ुरबत हासिल करने की चाह यहां तक ले आती है कि उन्हें मस्जिद की जगह मन्दिर बनवाना ज़्यादा फ़ायदे मंद लगता है, उन्हें मदरसे दहशतगर्द बनाने के इदारे लगने लगते हैं, हुसैनी टाइगर सत्ता परिवर्तन के साथ गौ रक्षक दल बन जाते हैं, सड़कों पर मुज़ाहरे करने वाले तमाम रहबर 8 मोहर्रम के जुलूस के रास्ते को भी ख़ामोशी से बदल लेते हैं, रमज़ान के आखिऱी जुमे को होने वाले एहतिजाज को ख़ामोशी से मस्जिद के अन्दर ही कर लेते हैं, अब न वक्फ़़ बोर्ड के चेयरमैन को हटाने के लिये कोई मुज़ाहरा न अब दिल्ली में शाहे मरदां की कोई फि़क्र।
ऐसे में अचानक सलमान ख़ुरशीद का बयान कि मेरे दामन पर मुसलमानों के ख़ून के धब्बे हैं कितनी अहमियत रखता है यह आप सब जानते हैं क्योंकि उन्होंने इसे समझने में इतनी देर लगा दी कि मुसलमान जब कहीं का नहीं रहा, जब तक वह सत्तानशीन रहे तब तक यह न समझ सके, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया रहे तब भी न समझ सके, समझ में आया तब जब ख़ुद या उनकी पार्टी चाहकर भी मुसलमानों के लिये कुछ कर नहीं सकती।
जीवित रहते हृदय परिवर्तन तो अब आम बात हो गयी है लेकिन कमाल है भाजपा का ! जो मरने के बाद भी हृदय परिवर्तन करवा रही है इसका सबसे ताज़ा उदाहरण हेमवती नंदन बहुगुणा हैं जिनका हृदय परिवर्तन उनकी सवीं बरसी पर हुआ, पहली बार उनपर विज्ञापन भी जारी हुआ, उनपर डाक टिकट भी जारी हुआ, वह अपने सौ साल पर फिर से ऐसे जि़न्दा हुये जैसे वह अपनी जि़न्दगी में कभी जि़न्दा होंगें। कांग्रेस अपने वर्तमान नेताओं को ही नहीं कांग्रेस तो अब अपने स्र्वगीय नेताओं को भी भाजपा में जाने से नहीं रोक पा रही है। सबसे पहले भाजपा ने सरदार पटेल पर क़ब्ज़ा किया फिर लाल बहादुर शास्त्री पर और कांग्रेस कहती रही कि वह तो हमारे थे फिर डा. भीमराव अम्बेडकर को भी ले लिया अब पर्वतीय वोट को हासिल करने के लिये हेमवती बहुगुणा को भी अपनी पार्टी में शामिल कर लिया और कांग्रेस मूकदर्शक बनी देख रही है। ऐसा न हो किसी दिन जवाहर लाल नेहरू, इंदिरागांधी और राजीवगंाधी पर भी डाक टिकट जारी करती यही पार्टी नजऱ आये और रायबरेली और अमेठी की सीट भी बचाना मुश्किल हो जाये। वजह साफ़ है कांग्रेस मुखिया के कऱीब रहने के लिये बस ”यस मैन” की ज़रूरत है जिसने अपना जनाधार बनाया वह पार्टी में नजऱ अंदाज़ किया जाने लगा। प्रोफ़ेसर रीता बहुगुणा जितने दिन प्रदेश की मुखिया रहीं उन्होंने कांग्रेस को हमेशा सुखिऱ्यों में रखा, वह अकेली थी जो हमेशा अवाम से राब्ते में रहीं उनके सुख दुख में शामिल रहीं, शायद यही बात आला कमान को हज़म नहीं हुई और उन्हें साईड लाईन कर दिया गया जिसका नतीजा यह हुआ वह भी पार्टी से गयीं और अब उनके स्र्वगीय पिता भी चले गये।
सत्ता की क़ुरबत हासिल करने वालों की एक लम्बी जमाअत है हर छोटा बड़ा अपने ज़मीर को गिरवी रख कर किसी भी क़ीमत पर सत्ता के कऱीब पहुंचने की होड़ में एक दूसरे को मात देने में लगा हुआ है। ग़ालिब ने क्या ख़ूब कहा था कि-
ज़मीने चमन गुल खिलाती है क्या क्या।
बदलता है रंग आसमां कैसे कैसे।।
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