Tuesday, April 30, 2024
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क़ौम की मोहब्बत में घर को भी भुला बैठे कुछ न रखा सरमाया वह हुसैन वाले हैं

वक़ार रिज़वी
बेगम कल्बे सादिक़ साहब ने 23 अप्रैल को अवधनामा के आखिऱी सफ़े पर शाया अपनी एक नज़्म में जिस तरह से अपने ज़ज़्बात और अक़ीदत का इज़हार इस एकऱार के साथ किया कि न तो वह शायरा हैं और न अदीबा हैं बस यह उनके जज़्बात और अक़ीदत है जिसे वह आपके सामने पेश करना चाहती हैं यह सिफऱ् एक ज़ौजा की मोहब्बत और क़ुरबत के जज़्बात नहीं बल्कि हक़ीक़त पर मबनी हैं। उन्होनें तो कई साल 24 घंटे एक साथ बितायें हैं इसलिये उनसे बेहतर डा. कल्बे सादिक़ साहब को जानने का न तो किसी को हक़ है और न किसी और को इसका दावा ही करना चाहिये। उनकी उस नज़्म का एक शेर
क़ौम की मोहब्बत में घर को भी भुला बैठें
कुछ न रखा सरमाया वह हुसैन वाले हैं
”क़ौम की मोहब्बत में घर को भी भुला बैठे” यह कहने का हक़ सिफऱ् उनकी शरिके हयात को ही है और जो वह कहें उसे ही सौ फ़ीसद सही समझा जाना चाहिये लेकिन दूसरे मिसरे से तमाम अफरात शायद मुत्तफि़ क़ न हों, वह इसलिये जब इस नज़्म में इस बात का इकऱार बार बार कर लिया कि वह हुसैन वाले हैं तो हुसैन वाले की सिफ़ अत ही यह है कि वह अपने घर से ज़्यादा क़ौम को तरजीह दे। इमाम हुसैन ने भी सिफऱ् अपने नाना की उम्मत की इस्लाह के लिये अपने पूरे घर को क़ुरबान कर दिया, बज़ाहिर इमाम हुसैन ने कोई सरमाया अपने पास नहीं रखा लेकिन पूरी दुनियां में हर अज़ादार के घर में एक अज़ाख़ाना आपको ज़रूर मिलेगा, दुश्मन भी उनके नाम के आगे अपना सर ख़म कर देता है यही उनका सरमाया है।
ऐसा ही कुछ मंजऱ करबला में था जब करबला में यह ख़बर अवधनामा चैनल, अवधनामा अखबार के ऑनलाइन एडिसन और मुख़्तलिफ़ जऱाये से आम हुई तो हर एक के लब पर बस एक दुआ जो सबसे पहले आती थी कि मौला कल्बे सादिक़ साहब को शिफ़ दे दे कि अभी उनकी क़ौम को ज़रूरत है, यही उनका सरमाया है। कई बार सुना कि हजऱत अली ने फ़ रमाया कि ऐसे बनों कि जब तक दुनियां में रहो लोग मिलने के ख़्वाहिशमंद रहें और जब न रहो तो लोग तुम्हें याद करें, तुम्हारी ज़रूरत समझें। यह सुना तो कई बार लेकिन इसका मिसदाक़ अपनी मुख़्तसर वुसअते नजऱ होने की वजह से अभी तक देख न सका। हकीमे उम्मत मौलाना डा. कल्बे सादिक़ साहब की जिस वक़्त तबियत नासाज़ हुई हम भी करबला में थे, जिसने जिसने यह ख़बर सुनी उसने अपनी तमाम दुआओं पर कल्बे सादिक़ साहब की सेहत की दुआ को तौकिय़त दी, जहां डा. अब्बास रज़ा नैयर ने अपनी महफि़लों में निज़ामत के दौरान बार बार कल्बे सादिक़ साहब की सेहत की दुआ करायी वहीं जिसने जिसने सुना कि उनकी तबियत ज़्यादा खऱाब है उन सब ने रौज़े पर उनके सेहत की दुआ को अपनी तमाम दुआओं पर तरजही दी। ज़ाहिर है इसमें से कई ऐसे भी होंगें जो बरायेरास्त कभी मौलाना से न मिले होंगें, कई हम जैसे ऐसे भी होंगें जो ख़ुद ज़ाती तौर पर कभी फ़ैजय़ाब न हुयें हों लेकिन पूरी क़ौम को उनकी जददोजहद से फ़ैजय़ाब होते हुये देखा हो। यही उनका सरमाया है।
यूं तो इस दुनियां से सभी को जाना है लेकिन हकीमे उम्मत के लिये पूरी दुनियां में और ख़ुसूसन करबला में रौज़े को पकड़कर की गयी दुयायें यूं ही रायग़ां नहीं जायेगी, इन्शाअल्लाह वह बहुत जल्द पूरी तरह से सेहतयाब होकर घर वापस आयेंगें। उन्होंने बीमार होकर बता दिया कि उन्होंने अपनी क़ौम की इस्लाह और उसे अमल में लाने के लिये जो कुछ भी किया उसका एतराफ़ करने वालों की तादाद लातादाद है। सिफऱ् घर के लोग ही उनके लिये फि़क्रमंद नहीं बल्कि जो भी हक़परस्त है उनकी खि़दमतों को कभी फ ऱामोश नहीं कर पायेगें, इसलिये घर वालों से ज़्यादा नहीं तो उनसे कम भी नही उनकी सेहत को लेकर फि क्रमंद हैं और हर लम्हें उनकी सेहत के लिये दुआगो हैं।
9415018288
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