एक घंटा भी अहलेबैत के फज़ायल बयान करना मोहाल है?

0
353
(7 मोहर्रम) कर्बला इंसानसाज़ी की दर्सगाह
Waqar Rizvi
एक घंटा भी अहलेबैत के $फज़ायल बयान करना मोहाल है?
अहलेबैत के फ ज़़ायल इतने हैं कि समन्दर का सारा पानी रौशनाई बन जाये और सभी पेड़ों की लकड़ी क़लम तो भी अहलेबैत के फज़़ायल नहीं लिखे जा सकते। यह कहने वाले तमाम ज़ाकिर जब मिम्बर पर जाते हैं तो एक घंटा भी अहलेबैत के फज़़ायल बयान नहीं कर पाते और इधर उधर की बातें करके अपना एक घंटा पूरा कर लेते हैं। इसकी दो ही वजह हो सकती हैं या तो अहलेबैत के फज़़ायल के सिलसिले में उनका यह दावा ग़लत है या वह जाहिले मुतलक़ हैं जो अहलेबैत के फज़़ायल से इतने आशना भी नहीं कि एक घंटा भी अपने बयान को उनके फज़़ायल पर मबनी रख सकें, इसीलिये शायद वह कभी एक आंख दबाते हैं और कभी दूसरी आंख, और फिर कहते हैं कि मैं कुछ कह गया, हालांकि उन्होंने क्या कहा यह वह ख़ुद भी नहीं जानते बस समझने वाले अपने अपने हिसाब से जो समझ सकते हैं बेचारे समझने की कोशिश करते हैं क्योंकि समझदार अ$फराद तो ऐसी तकऱीरों से दूर ही रहते हैं।
आज 7 मोहर्रम हैं आज न सिफऱ् इमाम हसन के शहज़ादे जनाबे क़ासिम की शहादत का जि़क्र होता है बल्कि आज के ही दिन से ख़ेमों में पानी के ख़त्म होने का भी जि़क्र होता है। जैसा कि मैं मुसलसल अपनी कमइल्मी के बावजूद आपकी खि़दमत में अजऱ् करने की कोशिश कर रहा हूं कि कर्बला हमारे लिये एक दर्सगाह है, यहां का कदम-कदम पर बोले गये एक -एक $िफके्र में हमारे लिये बहुत सी इबरतें पोशिदा हैं।
हजऱत क़ासिम का वह $िफक्रा कि ”मौत शहद से ज़्यादा शीरीं हैÓÓ मौत के ख़ौफ़ को ख़त्म कर देती है आप सुनते हैं जब इमाम हुसैन अ.स. ने इस 13 साल के बच्चे से एक मुक़ाम पर पूछा कि बेटा तुम्हारे नज़दीक मौत क्या मायने रखती है तो जनाबे क़ासिम ने बेसाख़्ता जवाब दिया कि ”शहद से ज़्यादा शीरींÓÓ यह करबला के मैदान में 13 साल के बच्चे के इस $िफक्रे ने मौत के डरावने म$फहूम को बदल दिया और इसे हजऱत क़ासिम ने साबित भी किया। जब हजऱते क़ासिम इमाम हुसैन के पास कई बार जंग की इजाज़त लेने आये लेकिन हर बार यह कहकर इमामे हुसैन ने मना कर दिया कि तुम तो हमारे भाई की निशानी हो। ऐसे में वह बेहद ग़मगीन अपने ख़ेमें में बैठे थे कि अचानक याद आया कि बाबा हसन ने दुनियां से जाते वक़्त मेरे बाज़ू पर एक ताबीज़ बांधा था और कहा था कि जब सबसे मुश्किल वक़्त आये तो इस ताबीज़ को खोल लेना। इस बच्चे के लिये सबसे मुश्किल वक़्त यह था कि उसे इजाज़त नहीं मिल रही है कि वह जंग में जाये और अपनी जान इस्लाम की बक़ा के लिये क़ुरबान कर दे, फ़ौरन ताबीज़ खोला देखा उसमें बाबा हसन की अपने भाई हुसैन से वसीयत थी कि देखों मैं तो कर्बला के मैदान में न हूंगा लेकिन मेरा फऱज़न्द क़ासिम मेरी नियाबत करेगा इसे जंग की इजाज़त दे देना। कर्बला के मैदान में 13 साल के बच्चे ने मौत का फ़लसफ़ा कुछ यूं समझा दिया कि कय़ामत तक इसकी दूसरी मिसाल ढूंढने पर भी न मिलेगी।
एक बात और दस्ते अदब बांधकर अपने तमाम ज़ाकिरीन से अजऱ् करनी है कि कर्बला नाम ही मसायब का है जिसे कर्बला से मारे$फत है उसे कर्बला पूरी बयान करने की ज़रूरत नहीं उसका तसव्वुर ही आंखों में आंसू लाने के लिये का$फी है ऐसे में अगर हजऱत क़ासिम की शादी का जि़क्र न भी हो तो भी कर्बला के मसायब कहीं से कम न होंगें क्योंकि बिना बहुत मोअतबर हवाले के किसी का अक़्द किसी के साथ करा देना रिश्तों की बेहुरमती है ऐसे में अगर शादी हुई और जि़क्र न हो तो कर्बला के मसायब पर कोई फ़ र्क नहीं पड़ता लेकिन अगर नहीं हुई तो बेवजह रिश्ते पामाल होंगें, वैसे तमाम ओलेमा हमसे बहुत बेहतर जानते हैं उनका फ़ै सला ही आखिऱी फ ़ैसला होना चाहिये।
किसी के लिये जि़न्दगी में सब से क़ीमती शह अगर कोई है तो वह पानी है इंसान हर शह के बिना रह सकता है लेकिन पानी के बिना नहीं। यज़ीद की फ ़ौज ने भी यही सोचा कि अगर पानी बंद कर दिया जाये तो इमाम हुसैन टूट जायेंगें लेकिन कर्बला ने कय़ामत तक हमें दर्स दे दिया कि मुश्किल से मुश्किल वक़्त में मक़सद अगर अज़ीम हो तो कोई मजबूर नहीं कर सकता बस इसके लिये कर्बला वालों से दर्स हासिल करने की जरूरत है।
Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here