
हमारी यह तो जुर्रत नहीं कि हम ऐसे कलामात अपनी ज़बान पर लायें कि जनाब की सियासी दुआ या बददुआ के अब कोई मायने नहीं रहे या अब उसमें कोई असर नहीं रहा, इसे महज़ इत्ते$फाक के सिवा और कुछ नहीं कहा जा सकता है कि एक इमामबाड़े में बहुत बड़े पैमाने पर जब बददुआ का प्रोग्राम किया गया तो जिसके खि़ला$फ बददुआ की गयी थी उसे हिन्दुस्तान की शहनशाही मिल गयी फिर एक दरगाह में कारपोरेटर जैसे अदना ओहदे के लिये इस्तेख़ारा देखकर तायीद की गयी तो उसकी ज़मानत ज़ब्त हो गयी इस बार इमामबाड़े और दरगाह दोनो को दरकिनार करके पांच सितारा के समकक्ष होटल में दुआ की गयी तो बेचारे राजनाथ सिंह जी के पास जो गृह मंत्रालय था वह भी चला गया। ज्ञातव्य रहे कि एक आकलन के अनुसार प्रधानमंत्री के ओहदे के बाद जो सबसे अहम ओहदा समझा जाता है वह गृह मंत्रालय होता है, यह न सिफऱ् सबसे बड़ा मंत्रालय है बल्कि सबसे अहम मंत्रालय भी है। अब जनाब के लोग भी यह कह रहे हैं कि अच्छा तो यही था कि जब राजनाथ सिंह जी जनाब के घर पर गये थे और उन्होंने कहा था कि हम चाहते हैं कि अच्छे लोग संसद में पहुंचे और हम हर अच्छे लोगों के साथ हैं और राजनाथ सिंह की तर$फ इशारा करते हुये कहा कि इनके अच्छे होने में कोई शक नहीं, उनकी यह गुफ्तुगू न सि$र्फ बलीग़ और आलिमाना थी बल्कि उनके शयाने शान भी, लेकिन अपने इर्द गिर्द रहने वालें सिफ ऱ अफ़ राद के कहने पर पहले इसकी तरदीद की फि र होटल में दुआ? बाक़ी सब तो नग़द रहे, बेचारे राजनाथ सिंह के हाथ से गृह मंत्रालय निकल गया।शपथग्रहण समारोह में भी मोदी जी के बाद की कुर्सी पर राजनाथ सिंह जी का बैठना बड़ा आश्चर्यजनक था क्योंकि लगभग हर एक को उम्मीद थी कि नम्बर दो का कहे जाना वाला गृहमंत्रालय अमित शाह को ही मिलेगा क्योंकि इसी मंत्रालय के अधीन सीधे वह सारे मंत्रालय आते है जिनकी शक्तियों और अधिकारों को प्रयोग अमित शाह जी से बेहतर शायद कोई और न कर सके लेकिन नम्बर दो की कुर्सी पर राजनाथ सिंह के बैठे होने से लगा कि शायद मार्ग दर्शक मंडल अभी उनसे दूर है लेकिन गृह मंत्रालय लेकर अमित शाह जी को दिया जाना इसबात का साफ ़ संकेत है कि गृह मंत्रालय में जो काम अमित शाह कर सकते हैं वह शायद राजनाथ सिंह जी न कर पाते, वैसे भी अमित शाह जी कई वर्ष गुजरात में गृह राज्य मंत्री रहे हैं उन्हें इसका पूरा ज्ञान ही नहीं बल्कि दक्षता है और उनके संगठन की क्षमता तो हम लोग देख ही चुके हैं।