यह दहशतगर्द भी एकबार फिर सिर्फ मुसलमान न निकले-वक़ार रिज़वी

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वक़ार रिज़वी……….
या अल्लाह! यह दहशतगर्द ही हो, पहले की तरह जांच के बाद इसबार भी सिर्फ मुसलमान ही न निकले? वह इसलिये कि दहशतगर्दो के खिलाफ इससे पहले भी कई बार कार्रवाई हो चुकी है और जिस दिन कोई ऐसी घटना घटी उसे तमाम अखबारों में सरे वर्क जगह मिली और चैनलों ने अपनी सारी अहम खबरें रोक कर इस आतंकवादी घटना को लाइव दिखाया जाना सबसे ज़रूरी समझा, लेकिन इनमें से न जाने कितने आतंकवाद के आरोप में पकड़े गये आरोपियों पर कोई भी आरोप सिद्ध न हो सका सिवाये इसके कि वह मुसलमान थे।  अदालत ने उन्हें बइज़्ज़त बरी कर दिया और जब बरी कर दिया तो किसी मीडिया हाउस ने इस खबर को इस काबिल भी नहीं समझा कि वह इसे कहीं छोटी सी भी जगह दे सकता। इसके विपरीत अभी मध्यप्रदेश में धुव्र सक्सेना, मनीष गांधी, मोहित अग्रवाल, बलराम पटेल, बृजेश पटेल, राजीव पटेल, कुश पंडित, जितेन्द्र ठाकुर, रितेश खुल्लर, जितेन्द्र सिंह यादव और त्रिलोक सिंह को मध्यप्रदेश के एंटी टेरर स्कॉड ने पकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी के लिए काम करने के आरोप में पकड़ा, तो न  मीडिया में तूफान मचा, न किसी ने एक-दूसरे को ललकारा और न प्रिन्ट मीडिया की हेडलाइन बनी, इसलिये आम जनता भी इसके बारे में कुछ न जान सकी। कहते हैं वह सिर्फ इसलिये क्योंकि इनमें से न कोई जे.एन.यू. का था और न ही कोई मुसलमान था। इसबार भी अल्लाह करे ऐसा ही हो, इसबार मारा गया व्यक्ति अंतकवादी ही हो। क्योंकि आतंकवादी का कोई अपना धर्म नहीं होता फिर न वह मुसलमान है और न हिन्दु वह तो बस आतंकवादी ही होता है और हर कोई उसके साथ किये एनकाउंटर के पक्ष में ही खड़ा दिखायी देगा।
आजकल चैनलों पर पूर्व डी.जी.पी. श्री विक्रम सिंह सहित कई बुद्धिजीवी और पत्रकार गायत्री प्रजापति की गिरफ़्तारी को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस को कठघरे में खड़ा किये हुये थे कि पुलिस अभी तक उनको गिरफ़्तार क्यों न कर सकी? अपनी साख पर उठ रहे सवालों का करारा जवाब देते हुये प्रदेश पुलिस ने दिखा दिया कि वह अपने कर्तव्यों के निर्वाहन में कितना सक्षम है। इस अवसर पर पुलिस की जितनी भी पीठ थपथपायी जाये कम है। पूरी ए.टी.एस. फोर्स के साथ सभी स्थानीय पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने बड़ी मुस्तैदी के साथ एक अकेले आतंकवादी को कई घंटे की मुठभेड़ के बाद मार गिराया और एक बड़ी आतंकवादी घटना होने से रोक दिया। इसबार कोई जांच का भी सवाल नहीं है कि वह बाद में आतंकवादी नहीं केवल मुसलमान निकले, क्योंकि वह मर चुका है, जहां जि़न्दों के इन्वेस्टीगेशन में सालों लगते हों वहां मर जाने वाले का इन्वेस्टीगेशन कब होगा, यह सोचने की भी ज़रूरत नहीं,।
अब इसे महज़ इत्तेफाक के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता कि अन्तिम चरण की सीटों के मतदान से ठीक पहले यह घटना घटी और इस अन्तिम चरण में वोटों के ध्रुवीकरण के लिये की गई कोशिशों में यह घटना भी उसी का एक हिस्सा बन गयी ? यह तो घटना है, और घटना तो कभी भी घट सकती है अब यह कहना बेमाने है ? कि वोटो के ध्रुवीकरण के सभी तरी$के अपनाने के बाद इस आखिरी हथकंडें को न अपनाने का मलाल कोई अपने दिल में रखना नहीं चाहता था। इसी के मद्देनज़र एक अकेला अज्ञात आतंकवादी एक मुस्लिम इला$के के एक अकेले घर में आया और उसने अपने को कैद कर लिया और फिर वह पुलिस जो गायत्री प्रजापति की कई दिन से तलाश न कर पायी, उसमें अचानक दूरदर्शिता और फुर्ती आयी और बड़ी मुस्तैदी के साथ एक अकेले आतंकवादी को जो किसी को अन्दर न किडनैप किये था और न उससे उस समय किसी को कोई खतरा था, उसको मार गिराया। पुलिस की इस कामयाबी के बाद बस अब यही दुआ है कि वह आतंकवादी ही हो नाकि सिर्फ मुसलमान, तो हम सब अपनी पुलिस पर न सिर्फ फख्र करेंगें बल्कि उसे अपना मुहाफ़िज़ भी उसे समझने की कोशिश करेंगें और यह दुआ करेंगें कि ऐसे ही कामयाबी वह और भी तमाम मोहाज़ पर हासिल करें।
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