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रामलीला में उतरा करवें का चांद
अहिल्या, चंद्रदेव और अंजनी को दिया गौतम ऋषि ने श्राप
राम ने तोड़ा दधिचि की हड्डियों से निर्मित शिव धनुष
लखनपुरी में परशुराम से भिड़े लक्ष्मण, चित्रकला प्रतियोगिता में बच्चों ने उकेरी मनमोहक कलाकृतियां
लखनऊ। राजधानी के बरहा, आलमबाग क्षेत्र में चल रहा 62 रामोत्सव महिला पुरुषों के साथ अब बच्चों को भी लुभा रहा है। श्री त्रिलोकेश्वरनाथ मंदिर परिसर में आकर्षक पण्डाल सजाया गया है जिसमें दोपहर में कृष्णलीला तथा रात में रामलीला का मंचन मथुरा से आई आदर्श रामलीला एवं रासलीला मंडल द्वारा किया जा रहा है। मंदिर के मैदान में विशालकाय झूले विभिन्न प्रकार की दुकानों के साथ सजे हैं। रविवार को सुबह मंदिर परिसर में चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें कक्षा एक से बारहवीं तक के सैकड़ों छात्र छात्राओं ने भाग लिया। प्रतियोगिता में विषय के रूप में प्रर्यावरण, धार्मिक, मेला और विज्ञान रखे गए थे और विजेताओं को दशहरा मेला के दौरान 15 अक्टूबर को मुख्य अतिथि द्वारा सम्मानित किया जाएगा।
कृष्णलीला के तीसरे दिन दोपहर को भक्तमाल के दो प्रहसन मंचित किए गए। सबसे पहले शैल देश के राजा विक्रम सिंह की वीरता और प्रभु श्रीकृष्ण की भक्ति से ओत-प्रोत कुदरत का इंसाफ खेला गया और इसके बाद सती नारी की विजय का मंचन हुआ। करवाचौथ का व्रत होने के बाद भी बड़ी संख्या में महिलाओं ने भक्तिरस का पान किया।
रामलीला के चौथे दिन करवाचौथ को देखते हुए की अहिल्या छल लीला का मंचन किया गया। मुनि विश्वामित्र राम लक्ष्मण को लेकर वन से गुजर रहे है और उनकी दृष्टि पत्थर बनी अहिल्या पर पड़ती है। विश्वामित्र गौतम ऋषि की कुटिया के दृश्य को अपनी शक्ति से साक्षात प्रकट करते है। चंद्रदेव मुर्गा बन कर बांग देते हैं और गौतम ऋषि सुबह हुई जान कर गंगा स्नान को निकल जाते हैं। तभी मौके का फायदा उठाते हुए इंद्रराज कुटिया में गौतम ऋषि का वेश धारण कर प्रवेश कर जाते हैं और बेटी अंजना भी उन्हें पहचान नहीं पाती है। उधर गंगा गौतम ऋषि को आगाह करती है कि अभी आधी रात है और उनके साथ किसी ने छल कपट किया है। क्रोधित गौतम वापस कुटिया आते हैं और चंद्रमा, इंद्र, अहिल्या और अंजनी को श्राप दे देते हैं। क्रोध शांत होने पर वरदान देते हुए कहते हैं कि चंद्र पर दाग होगा पर वह उसे परेशान नहीं करेगा, इंद्र का श्राप राम द्वारा शिव धनुष तोड़ने पर टूट जाएगा, अंजनी कौमार्यावस्था में जिस पुत्र को जन्म देंगी वह हनुमान बन कर राम सेवा करेगा और राम के पैर से छूते ही अहिल्या पुनः नारी बन जाएगी। मुनि की आज्ञानुसार संकोच करते हुए राम अहिल्या का उद्धार करते हैं।
ऐतिहासिक धनुष यज्ञ और लक्ष्मण-परशुराम सम्वाद ने लोगों का मन मोह लिया। व्यास श्री सूरज प्रसाद और उनकी मंडली ने भक्तिमय रचना
भगवान शंकर के धनुष की रचना, किस प्रकार शंकर जी रावण की जगह राजा जनक को दधीचि की हड्डियों से बने धनुष को देते हैं और गुरू भाई रावण, बाणासुर और परशुराम देखते रह जाते हैं। जनक धनुष को लेकर मिथिला आते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं। राजा जनक के दरबार में स्वयंवर के लिए विभिन्न देशों के राजा आते हैं और धनुष तोड़ने की जोर आजमाइश करते हैं। अंत में प्रभु राम द्वारा धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने के साथ ही धनुष टूट जाता है और श्रद्धालू जय सियाराम के उद्घोष से पण्डाल को गुंजायमान कर देते हैं। तभी मंच पर परशुराम जी का आगमन होता है और लक्ष्मण से उनकी तीखी नोंकझोंक होती है। चारों भाईयों के विवाह तथा अयोध्या प्रस्थान पर लीला का समापन होता है।
बृजेन्द्र बहादुर मौर्या की रिपोर्ट——————-
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