मुसलमानों के मजहबी  मामलात सिर्फ शरियत की रोशनी में हल होंगे

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‘अजमते सुन्नियत व इस्लाह-ए-मआशरा’ सम्मेलनगोरखपुर। घोषी के इस्लामिक विद्वान मुफ्ती रिजवान अहमद शरीफी ने कहा कि इस्लामी कानून अल्लाह का कानून हैं। हुकूमत इस्लामी कानून को बदल नहीं सकती। सरकार की मुस्लिम औरतों से हमदर्दी नहीं ब्लकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलअंदाजी करना हैं। इस्लामी कानून हमारा सब कुछ हैं। यहीं हमारी दुनिया है और यही हमारी आखिरत भी।
यह बातें उन्होंने अराकीने कमेटी व मुतवल्ली साहिबान व मुसल्लियान मस्जिदें ख़ादिम हुसैन  के तत्वावधान में तिवारीपुर ग्राउंड पर रविवार रात्रि आयोजित ‘अजमते सुन्नियत व इस्लाह-ए-मआशरा’ सम्मेलन के दौरान बतौर विशिष्ट वक्ता कहीं।
‘तीन तलाक की शरई हैसियत’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमारा संविधान हमें मजहबी आजादी देता हैं। जब यह देश आजाद नहीं हुआ था तो 1937 में ‘शरियत एक्ट’ अंग्रेजों के जमाने में पास हुआ। उसमें हैं कि मुसलमानों के तलाक, निकाह, विरासत वगैरह के मुकदमें मुसलमानों की शरियत की रोशनी में सुने जायेंगे और उसी की रोशनी में फैसले किए जायेंगे। 1947 में हमारा मुल्क आजाद हुआ तो शरियत एक्ट के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी। तब से लेकर अब तक उसी शरियत एक्ट और मुस्लिम पर्सनल लॉ की रोशनी में मुसलमानों के मुकद्दमात का फैसला होता चला आ रहा हैं। हिन्दुस्तान  के संविधान ने मुसलमानों को ही नहीं हिंदू, बौद्घ, सिख, ईसाई को भी पर्सनल लॉ का अधिकार दिया हैं।
उन्होंने कहा कि अगर आज हिंदुस्तान का सर्वे करा लिया जायें तो तलाक पाने वाली औरतों की तादाद उन औरतों से कम हैं जिन्हें तेल छिड़क कर जला दिया जा रहा हैं। गला घोंट कर मार दिया जा रहा हैं। पैदा होने से पहले कोख में मार दिया जा रहा हैं। हथियारों से खत्म कर दिया जा रहा हैं। जिनकी जिंदगीयां छीन ली जा रही हैं उनकी तादाद ज्यादा हैं।  पहले औरतों को जिंदगी देने की बात करें सरकार। बाद में हुकूक की बात की जायें।

उन्होंने कहा कि औरतों को तो मजहबें इस्लाम ने जो इज्जत व ओहदा दिया हैं किसी और मजहब ने नहीं दिया हैं। नबी-ए-पाक ने औरतों के हकूक बता दिए। बेटी जिस घर में पैदा होती हैं वहां अल्लाह की रहमत उतरती हैं। जिस घर में ब्याह के जाती हैं शौहर के लिए निस्फें ईमान की जमानत बन जाती हैं और जब मां बनती हैं तो उसके कदमों के नीचे जन्नत आ जाती हैं। शादी के बाद किसी भी मजहब में औरत को कोई हिस्सा जायदाद में नहीं दिया जाता हैं। इस्लाम तंहा मजहब हैं जिसमें शादी के बाद भी बेटी बाप की जायदाद में, शादी के बाद शौहर की जायदाद और मां बनने के बाद बेटे की जायदाद में हिस्सा पाती हैं। इस्लाम ने औरतों को इज्जत न दी होती तो दुनिया विधवाओं से शादी के लिए तैयार न होती।हमारे नबी-ए-पाक ने जिस माहौल में विधवा से शादी की उस दौर में विधवा का चेहरा देखना गंवारा नहीं था। नबी-ए-पाक ने मां के साथ सबसे ज्यादा बेहतर सुलूक का हुक्म दिया। इस्लाम ने ही औरतों को इज्जत दी।

बाराबंकी के मशहूर इस्लामिक स्कॉलर  पीरे तरीकत अल्लामा सैयद शाह गुलजार इस्माईल ने कहा कि अल्लाह ने दुनिया को बनाने के बाद सबसे आला दर्जा इंसान को अता किया और इस सिलसिले में उनकी हिदायत व रहनुमाई के लिए अम्बिया का सिलसिला जारी फरमाया। जिसकी आखिरी कड़ी बनकर हमारे नबी-ए-पाक तशरीफ लायें। जिनकी नुबूवत कयामत तक के लिए हैं। उनकी लायी हुई किताब ‘कुरआन’ इंसानी जिंदगी का इंसाइक्लोपीडिया हैं ताकयामत तक के लिए।
उन्होंने कहा कि नबी के बाद इंसानों की हिदायत के लिए अल्लाह ने नबी का नायब उलेमा व औलिया को बनाया। जिनके जरिए इंसानों की हिदायत का काम हो रहा हैं और ताकयामत तक होता रहेगा।

उन्होंने आला हजरत की शख्सियत पर रोशनी डालते हुए कहा कि वह 14वीं व 15वीं सदीं के मुजद्दीद हैं। मसलके आला हजरत जन्नत तक ले जाने वाले रास्ते की निशानी है। उनकी एक प्रमुख पुस्तक जिस का नाम अद्दौलतुल मक्किया है जिस को उन्होंने केवल 8 घंटों में बिना किसी संदर्भ ग्रंथों के मदद से हरम-ए-मक्का में लिखा। उनकी एक प्रमुख ग्रंथ फतावा रजविया इस सदीं के इस्लामी कानून का अच्छा उदाहरण है जो कई खंडों  में  है। उर्दू जुबान में कुरआन का तर्जुमा कन्जुल ईमान विश्वविख्यात हैं। रसूले पाक अलैहिस्सलाम से आपको सच्ची मुहब्बत और गहरा इश्क आपका सबसे अजीम सरमाया था। उलेमा अरब व अजम सबने आप की इल्मी लियाकत को तस्लीम किया।

मुंबई से आयें इस्लामिक विद्वान मुफ्ती जुल्फिकार अहमद ने इंसानियत का पैगाम देते हुए कहा कि पूरी इंसानियत की भलाई इस्लामी कानून के अंदर हैं। कुरआन में ही सारी समस्याओं का हल और सही रहनुमाई  हैं। आज विज्ञान व दुनिया जो कुछ कह रही है और जो कुछ कर रही हैं वह सब कुरआन का सदका हैं। अगर  विज्ञान की दुनिया कुरआन की रोशनी में तहकीकात करके इतनी आगे जा रही हैं तो मुसलमानों पर लाजिमी हैं कि कुरआन पर मुकम्मल अमल करके आगे बढ़े।

उन्होंने कहा कि इस्लामी लॉ के फैसलों के लिए फतावा आलमगीरी, शामी, हिदाया आदि किताबें मौजूद हैं। इसलिए हमारी गुजारिश हैं सुप्रीम कोर्ट से, कि वह मरकजी हुकूमत से राय लेकर इस्लामिक लॉ पर औरतों के तहफ्फुज के लिए अपनी कोई राय न दे। इस्लामिक किताबों की राय हमारे सामने पेश कर दें। उक्त किताबें इस्लामिक लॉ के लिए कोर्ट कचहरी में रखी हुई हैं।

उन्होंने लोगों से अपील किया कि वह नमाज, रोजा, जकात, हज वगैरह की पाबंदी करें। खासतौर से नमाज का ख्याल रखें। नमाज नबी के आंखों की ठंडक है। नमाज कायम करें। अल्लाह के जिक्र से दिलों को रौशन करों। शरियत की खिलाफ कोई काम ना करें। अल्लाह व रसूल के बतायी हुई तालिमात पर अमल पैरा रहें। वालिदैन की फरमाबरदारी करें। शादी शरियत के मिजाज से करें। फिजुलखर्ची बिल्कुल न करें। लड़कियों के मां-बाप के लिए रहमत बनें जहमत न बनें। दहेज लिए बिना शादी करें। आधी रोटी खाकर बच्चों को तालीम दीजिए। हलाल कमाई से खुद की और बच्चो की परवरिश कीजिए।
नात ख्वां गाजीपुर के मोहम्मद इस्लाम गाजीपुरी  ने नात शरीफ पेश की

’’कब प्यास बुझाई जायेगी, कब जाम पिलाया जायेगा ।

कब रिंदे मोहब्बत को आका तैबा में बुलाया जायेगा।

खुशबू भी लगायी जायेगी, दूल्हा भी बनाया जायेगा।

जिस वक्त जनाजे को मेरे कांधे पे उठाया जायेगा।

जितने है नबी वह सब के सब महशर में मनाएंगे रब को ।

इक जात मोहम्मद है जिनको महशर में मनाया जायेगा।’’
इसके बाद बरेली के सईद अख्तर जोखनपुरी ने नात पढ़ी

’’ इतना रौशन जो तुम्हें शम्सों कमर लगता है।

गुम्बदें खजरा के जलवों का असर लगता है।’’
इस पहले कार्यक्रम की शुरूआत मौलाना मोहम्मद शादाब रजा ने तिलावत कलाम पाक से की।

अंत में पीरे तरीकत सैयद शाह  गुलजार इस्माईल ने आवाम को अपनी मुरीदी में लिया। इसके बाद सलातों सलाम पेश कर मुल्क व कौमों मिल्लत के लिए खुशूसी दुआएं मांगी गयी।

खादिम हुसैन मस्जिद के इमाम  मौलाना मोहम्मद अफजल बरकाती ने अध्यक्षता व संचालन की जिम्मेदारी बाखूबी अंजाम दी। इस मौके पर कारी अनीस अहमद,  हाफिज नजरे आलम कादरी, हाफिज हकीकुल्लाह, मौलाना नूरुज्जमा, मौलाना अफरोज आलम निजामी, हाफिज गुलाम खैरुल वरा, मोहम्मद आजम, मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी, अब्दुल रहीम,  हाफिज रहमत अली सहित शहर के सभी उलेमा व बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।

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