वक़ार रिज़वी
बूचड़ख़ाने बंद करना तो एक बहाना है सिर्फ़ यह दिखाने के लिये कि हमने आते ही मुसलमानों को कितना ख़ौफ़ज़दा कर दिया। हमारा रोना, चिल्लाना, गिड़गिड़ाना, मिन्नतें करना उन्हें हर दिन मज़बूत करेगा क्योंकि वह यही दिखलाना चाहते हैं कि हमनें हुकूमत संभालते ही उन्हें यह सब करने को मजबूर कर दिया, फिर न कोई विकास की बात करेगा और न कोई किये गये वादे याद दिलायेगा। अब तो बस हमें यह जानने की ज़रूरत है कि देश को आज़ादी दिलाने के लिये गांधी जी ने क्या किया? सुनते हैं कोई सत्याग्रह आदोंलन, नमक अंादोलन मुख़्तसरन न मिन्नतें की, न गिड़गिड़ाये और बड़ी बात यह कि हिंसात्मक आंदोलन के हमेशा विरोधी रहे फिर कैसे अंग्रेज़ उनसे डरकर भाग गये।
कहते हैं कि गोश्त का कारोबार तक़रीबन 11 हज़ार करोड़ का है जिसका बड़ा हिस्सा मुसलमानों से कहीं दूर है ऐसे में अगर निहायत ख़ामोशी के साथ क्या बड़ा और क्या छोटा, मुर्ग़ा-मछली सब मुसलमान सिर्फ़ तीन दिन के लिये लेकिन सब एक साथ बंद कर दें तो त्राहि-त्राहि मच जायेगी, आलू और भिंडी 5 सौ और 8 सौ में बिकेगी वैसे भी गोश्त अब मुस्लिम कम और हिन्दु ज़्यादा खाता है। फिर देखें पांच सितारा होटलों से लेकर तमाम ग़ैर मुस्लिम होटलों में गोश्त कहां से आता है। गोश्त तो आयेगा लेकिन तब यह पता चल जायेगा कि गोश्त की बड़ी सप्लाई कौन करता है। हालांकि शियों का बुचड़ख़ाने से ताल्लुक़ नहीं है लेकिन उनके पास एक मौक़ा है कि वह अपने भाइयों के साथ खड़े हो जायें जो मुश्किल वक़्त में किसी के साथ खड़ा होता है उसे हमेशा याद रखा जाता है अगर आपने इस वक़्त अपने भाइयों का साथ दिया तो फिर शहर के सब मौलवी मिलकर भी आपको एक दूसरे से अलग नहीं कर पायेंगें। यह बात इस वक़्त शायद आसानी से समझ आनी चाहिये कि इत्तेहाद के अलावा अब हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है।
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