चीतों का स्वागत

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 एस.एन.वर्मा

मो.7084669136

प्रधानमंत्री  नामीबिया से आये आठ चीतो को आगवानी कर स्वागत किया मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में यह समाचार इसलिये बना क्योकि 1952 में भारत में चीतो को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। भारत में एक चीते नही रह गये थे। चीतों की गले में रेडियो कालर लगे है। इससे चीतो के रहन सहन व्योहार के साथ उनके हर हरकत और शिकार करने के तरीको की जानकारी मिलेगी। चूूकिं चीतों की संख्या बढ़ाने की योजना है इसके लिये उपरोक्त जानकारियां अति जरूरी होगी। साउथ अफ्रीका से बाहर चीते और आने वाले है।
इन्हें अभी क्वरन्टीन में रक्खा गया है। भोजन के लिये उनके बाड़े में 187 से ज्यादा चीतल छोड़े गये है। जंगल के आस-पास के जानवरों का टीकाकरण किया गया है जिससे किसी तरह के संक्रमण से चीते सुरक्षित रहेगे। नर और मादाओं को अलग-अलग बाड़े में रक्खा गया है।
चीते या किसी भी जंगली जानवर के लिये नई जगह के मौसम और वातारण के अनुसार ढलना जरूरी होता है अन्यथा वे मौत के शिकार बहुत जल्दी हो जाते है। उनके यहां के शिकार की आदत हो सके। आस-पास के वन्य जीवों और उनके सुगन्ध से परिचित हो सके। इसलिये उन्हें क्वारन्टीन में रक्खा गया है। अभी लोगां को उन्हें देखने के लिये आने से रोक दिया गया है। जब तक चीते यहां के माहौल और मौसम के अनुसार ढल नहीं जाते तब तक दर्शकों की नज़र से दूर रहेगे। इनकी रक्षा के लिये चीतामित्र भी तैयार कर लगाये गये है।
महीने भर बाद धीरे-धीरे खुले इलाके में छोड़ा जायेगा। पहले नर चीते बाहर आयेगे। मादा चीता बाड़े में ही रहेगी। जिससे नर चीता दूर तक न जाये और मादा के आकर्षण में वापस आ जाया करें। तीन चार महीनो के बाद अगर सब कुछ सामान्य रहा, निर्धारित योजना के अनुसार आगे बढ़ता रहा तो उम्मीद है जनवरी तक आम जनता उनका दर्शन कर सकेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जन्म दिन पर सबको ये नायाब उपहार दिया है।
मादा चीता अपने बच्चों के साथ अकेली रहती है। सिफी मेटिंग के समय नर चीता के साथ जोड़ी बनाती है। इसी तरह नर चीता अकेला रहता है अपने भाईयों के साथ और उनके साथ मिलकर शिकार करता है। गर्भ अवस्था 93 दिन की होती है। एक साथ छह बच्चों को जन्म देती है। चीता अपना ज्यादा समय सोने मे बिताते है और उनकी उम्र 10-12 साल होती है। पिंजरे में 17-20 साल रह सकते है। चीते दहाड़ते नही है। अपनी रफ्तार आधा मिनट से ज्यादा कायम नहीं रख पाते है और शिकार को 30 सेकेन्ड में पकड़ना होता है। शिकार करने के बाद आराम जरूरी होता है तुरन्त खाना शुरू नही करता है। इस बीच दूसरे मांसहारी जानवर शिकार चट कर जाते है। वयस्क चीता 2-5 दिन में शिकार करता है, तिन से चार दिन में उसे पानी पीने की जरूरत महसूस होती है। उसके पूरे शरीर पर काली धारियां होती है, ये धारियां उन्हें सूर्य की चकचौध से बचाते है। तीन सेकेन्ड में 100 मीटर की दौड़ लगा सकता है। वह दुबला पतला होता है, हड्डियां लचीली होती है रीढ़ की हड्डी फैल सकती है। लम्बी मांसपेशीय पूछ तेज गति से शिकार का पीछा करते हुये एकाएक तीखे मोड़ ले पाने में मदद करते है।
इन चीतो के लाने का श्रेय मध्यप्रदेश में रह चुके आईएएस अफसर रनजी सिंह को जाता है। जहां वह कई सैकचुऊरी और नेशनल पार्क खोले। इसी के तहत 1981 में कूनो नेशनल पार्क स्थापित हुआ। वाइल्ड लाइफ (प्रोटेक्शन एक्ट) 1972 के चीफ आकीटिक्ट रनजी सिंह है। हालाकि चीते की प्रजाति भारत से गायब हो चुकी थी 1952 में यह विलुप्त जाति घोषित भी कर दी गयी थी पर उन्होंने ऐक्ट में चीता को भी सम्मिलित करवाया। उनका कहना था चीता एक दिन भारत में वापस आयेगे। तब ऐक्ट सुधारने की जरूरत नही पड़ेगी। 17 सितम्बर को उनका सपना और भविष्यवाणी सच साबित हुई। मोदी जीने अपने जन्म दिन पर देश वासियों को शानदार तोहफा दिया।
1949 में छत्तीसगढ़ के कोरिया के राजा ने जो आखिरी तीन चीते भारत में बचे थे उनका शिकार कर डाला और भारत बिना चीतो का हो गया। पुराने राज महाराजे चीतों को पालतू बनाया और शिकार पर ले जाते थे।
अभी तो चीतो के गले में लगे रेडियो कालर से उनकी रोज़ मानीटरिंग की जा रही है। आगामी कुछ सालों में भारत में फिर चीतों की संख्या बढ़ जायेगी।

 

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