विपक्षी एकता सपना हकीकत

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एस एन वर्मा

जैसे-जैसे 2023 के विधानसभाओं और 2024 के लोकसभा के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं विपक्षी एकता की कोशिशे कई कोनो से जोर मार रही है। क्योंकि 2023 में होने वाले राज्यों के नतीजे 2024 के नतीजों की ओर संकेत करेगे। पता चलेगा विपक्ष कहां तक कामयाब हो सकता है और मोदी कहीं कहां तक अपनी साख बचाये रख सकते है। हालाकि अभी विपक्षी एकता का कोई ठोस रूप नहीं उभरा है। कई ओर से कोशिशे हो रही है तीसरा मोर्चा भी बनाया जा रहा है। ऐसे में तो विपक्षी एकता पहले ही बटती नजर आ रही है। इसके अलावा दो तीन विपक्षी नेताओं की महत्वाकांक्षा भी टकरा रही है। एक तरफ ममता, एक तरफ नितीश एक तरफ चन्दशेखर राव, एक तरफ कांग्रेस नेतृत्व किसी ने अपने पत्ते अभी खोले नहीं है पर उनकी बेचैनी पढ़ी जा सकती है। नितीश ने कहा अब मरकर भी भाजपा का साथ नहीं करेगे। उधर चन्द्रशेखर राव के बुलावे पर नितीश ने इनकार कर दिया। कांग्रेस ने अभी शुरू हुये सदन में भाग लेने से पहले विपक्षी नेताओं को बुलाया। एक साथ मिलकर केन्द्र को घेरने के लिये पर बहुत ही कम विपक्षी नेता आये। ऐसे में किस विपक्षी एकता की बात की जाये। कांग्रेस को अपने भारत जोड़ो यात्रा से बड़ी उम्मीद बन रही थी पर उनके बुलाये बैठक में भारी अनुपस्थिति ने कुछ हद तक इशारा कर दिया की भारत जोड़ो यात्रा कितना नफरत भंगा सकी।
विपक्षी एकता के प्रयास में चन्द्रशेखर राव काफी सक्रिय दिख रहे है। उनके द्वारा आयोजित अवसर पर कई विपक्षी नेता शामिल हुये। पर उनके यहां होने वाले विधानसभा चुनाव नतीजे उनके प्रयासो के सफलता को कुछ हद तक बता सकेगे। वही यह भी ध्यान देने की बात है कि राहुल की यात्रा में कई विपक्षी दल दूरी बनाये रहे। नितीश को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है फिर भी वह यात्रा से दूर रहे।
हिमांचल के चुनाव नतीजा भाजपा के लिये सबक है कि विपक्ष कमजोर है पर एकदम साफ नहीं है। क्योकि हिमांचल में 96 प्रतिशत हिन्दू है फिर भी वह सत्ता से बाहर हो गई। राहुल गांधी हाथ जोड़ो अभियान में व्यस्त रहेगे। कांगे्रस अध्यक्ष खरगे जिन्हे सोनिया का विश्वास प्राप्त है कांग्रेस की ओर से विपक्षी एकता की बात चला सकते है। पर क्या उनमें विपक्षी नेताओ को अपने पक्ष में करने की क्षमता है। खुद राहुल गांधी में भी अभी वह परिपक्ता नजर नहीं आती किसी को देख दाढ़ी बढ़ा लेना मन्दिरो गुरूद्वारो में जाना उनमें मौलिक सोच की कमी दिखती है। वह कहते है भाजपा नफरत फैला रही है यह भी कह रहे है 28000 कि भी भारत जोड़ो यात्रा में कहीं नफरत नहीं दिखता। यह भी सवाल लोग करते है कि जब राहुल राजस्थान में अपनी ही पार्टी के गहलौत और पायलट को एक नहीं कर सके तो विपक्षी दलो को कैसे एक करेगे।
सब हालातों को देखते हुये निष्कर्ष यही निकलता है विपक्षी एकता अभी दूर का सपना है। भाजपा की संख्या कुछ कम हो सकती है पर हालात उसी के बुलन्दी की ओर इशारा करते है। क्योकि किसी एक पार्टी को अकेले मोदी को हराना मुमकिन नहीं दिखता। वैसे पार्टियां नहीं जनता कुछ भी चमत्कार दिखा सकती है।

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