एस.एन.वर्मा
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नितीश का दलबदल कारनामा कोई नया नहीं है। उन्हें लोग राजनीतिक मौसम विज्ञानी कहते है। क्योंकि वह माप लेते है कब दलबदल का समय आ गया है। यही वजह है एक बार भी अपने बल पर बहुमत नही पाने वाले नितीश 17 सालों से मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे। बीच में छोटा साकाल जीतन माझी का थ। वह और लालू जैप्रकाश अन्दोलन के प्राइक्ट है। पर जैयप्रकाश के आर्देश के कितने करीब है आप खुद ही निर्णाय ले लो कभी लालू की पार्टी के साथ मिलकर सरकर बनाने वाले नितीश भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर अलग हो गये थे। आज उसी पार्टी की गोद में जा गिरे है। मुख्यमंत्री की कुर्सी उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। उनके साथ राजद के अलावा कांग्रेस और वामपंथी भी है। नितिश का पानी की बत्तख की तरह इधर से उधर होते रहना ने उनको पलटू राम का नाम दिला दिया है। नितीश अगर अपने इस नाम से खुश होते है तो मै इसे उनकी महानता कहूगा। जाति समीकरण ही उनकी पंूजी है। नीतीश की नाराजगी जाति जनगणना, अग्निपथ योजना, बिहार को बिहार को विशेष राज्य का दर्जा ने मिल पाने के वजह से तो था ही विधानसभा समारोह में निमन्त्रण पत्र पर उनका नाम न होना तो घोर अनदेखी अपमान है मुख्यमंत्री पद का किन वजहां से ऐसी हुआ यह तो पार्टी के शीर्ष नेता ही जाने। वह उपराष्ट्रपति नहीं बनाये गये इसलिये भी नाराज़ है।
बिहार में बीजेपी गठबन्धन का गिरना विरोधी पार्टियों के लिये जो अब तक नाकाम रही हैं एक मारल बूस्टर हो सकता है और राज्यों में भी इसका असर पड़ सकता है 2024 के आम चुनाव को प्रभावित कर सकता है। भाजपा के लिये कुछ मुशकिले तो बढ़ी ही है।
नीतीश भाजपा से नाराज़ तो चल रहे थे यह भाजपा को मालुम था। क्योंकि वह राष्ट्रीय स्तर के बैठको में लगातार अनुपस्थित हो रहे थे। उनकी शिकायत यह है कि भाजपा उन्हें स्वतन्त्र हो कर काम नहीं करने दे रही थी उन पर हमेशा दबाव बनाये रखती थी। इसके बाद आरसीपी सिंह को बिना उनके सहमति के केन्द्रीय मंत्री बना दिया गया। आरसीपी सिंह जदयू से दूर होते जा रहे थे भाजपा के करीब होते जाते थे। नीतीश ने आर सी पी सिंह को राज्यसभा का टिकट नही दिया। आरसीपी सिंह बिहार में उनके विधायकों से सम्पर्क करने लगे। नीतीश का कहना है भाजपा के इशारे पर वे ऐसे कर रहे है और वह उनकी पार्टी को तोड़ना चाहते है। भाजपा चिराग पासवान को सपोर्ट करती रहती है विधानसभा में चिराग को सपोर्ट कर उनके पार्टी के जीत पर अंकुश लगा दी थी। इसके अलावा नितीश की सबसे बड़ी महात्वाकांक्षा मोदी का विकल्प बनने की है। पर अभी भी अगर विपक्ष का गठबन्धन बनता है तो क्या वे नीतीश को अपना प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनायेगे। सम्भव नहीं लगता। हालाकि महाराष्ट्र में जिस तरह भाजपा ने विपक्ष को धाराशयी किया वह बिहार में विपक्ष की बढ़त से बेअसर हो गया। विपक्षी दलों में फिर कुलबुलाहट जाग सकती है। पर केन्द्रीय रोल में हर पार्टी अपने को रखने की स्पर्धा में मात खाती रहेगी। आम चुनाव में इसका कुछ असर पड़ सकता है पर मोदी फैक्टर अभी भी मजबूत दिख रहा है।
बिहार की गठबन्धन सरकार के लिये नितीश ने इस्तीफा पर देना के बाद अपनी दावेदारी पेश कर दी है। तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री होना तय है। मुमकिन है एक दो उपमुख्यमंत्री और बने। क्योंकि बिहार की राजनीति अपने तरह की मुख्यधारा से अलग रहती है।
कई दलों को मिलाकर जो अस्वाभविक सरकार बनती है उनमें अन्तरविरोध पनपना आम बात है। भाजपा को सामंजस्य बैठाने में महारत हासिल है। इस अन्तविरोध को भाजपा अपने पक्ष में मोड़कर महाराष्ट्र का करिश्मा दोहरना चाहेगी। क्योकि बिहार में सब कुछ मुमकिन है। वैसे बिहार में भाजपा के लिये मुशकिले ज्यादा पैदा हो गई है। जातीय समीकरण और वोट बैंक अब विरोध सरकार के पास ज्यादा हो जायेगा। उसमें पैठ बनापाना भाजपा के लिये आसान नही होगा। वह बिहार के उसके चुनाव सन्तुलन को प्रभावित करेगा। हालाकि भाजपा विपक्ष के कोर बैक में सेंध लगाने में सफल रहती है। विपक्षी दलो के जाति समीकरण को कुछ हद तक अपने पक्ष में मोड़ती रहती है।
भाजपा के नीतीश की नारज़गी का अहसास तो था पर गठबन्धन तोड़ देगे इसका अन्दाजा उन्हें नही था। भाजपा नेतृत्व पता नही क्यों नीतीश की नाराजगी से उदासीन भी रहा। शायद इस विश्वास पर की नीतीश अलग नही होगे। बिहार भाजपा के पास नीतीश और तेजस्वी के टक्कर का कोई नेता नही है। कोई बड़ा चेहरा भी उसके पास नही है। इसलिये बिहार भाजपा नेतृत्व की असल परीक्षा होगी।