लेखक-गीतकार जावेद अख्तर का कहना है कि लाउडस्पीकर पर अज़ानदेने का चलन बंद किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे दूसरों को असुविधा होती है। उन्होंने कहा कि अज़ान मजहब का अभिन्न हिस्सा है, लाउडस्पीकर का नहीं।
लेखक-गीतकार जावेद अख्तर का कहना है कि लाउडस्पीकर पर अज़ानदेने का चलन बंद किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे दूसरों को असुविधा होती है। उन्होंने कहा कि अज़ान मजहब का अभिन्न हिस्सा है, लाउडस्पीकर का नहीं।
In India for almost 50 yrs Azaan on the loud speak was HARAAM Then it became HaLAAL n so halaal that there is no end to it but there should be an end to it Azaan is fine but loud speaker does cause of discomfort for others I hope that atleast this time they will do it themselves
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) May 9, 2020
शनिवार को किए एक ट्वीट में अख्तर ने पूछा कि यह चलन करीब आधी सदी तक हराम (मना) माना जाता था, तो अब हलाल (इजाजत) कैसे हो गया। गीतकार ने ट्वीट किया, भारत में करीब 50 साल तक लाउडस्पीकर पर अज़ान देना हराम था। फिर यह हलाल हो गया और इतना हलाल कि इसका कोई अंत नहीं है, लेकिन यह खत्म होना चाहिए। अज़ान ठीक है, लेकिन लाउडस्पीकर पर इसे देने से दूसरों को असुविधा होती है। मुझे उम्मीद है कि कम से कम इस दफा वे खुद इसे करेंगे।
ट्विटर पर जब एक शख्स ने 75 वर्षीय अख्तर से मंदिरों में लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि स्पीकरों का रोजाना इस्तेमाल फिक्र की बात है। उन्होंने जवाब दिया, चाहे मंदिर हों या मस्जिद, अगर आप किसी त्यौहार पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो ठीक है, लेकिन इसका इस्तेमाल मंदिर या मस्जिद में रोजाना नहीं होना चाहिए।
अख्तर ने कहा, एक हजार साल से अधिक समय से अज़ान बिना लाउडस्पीकर के दी जा रही है। अज़ान आपके मजहब का अभिन्न हिस्सा है, इस यंत्र का नहीं। इससे पहले मार्च में अख्तर ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान मस्जिदों को बंद करने का समर्थन किया था और कहा था कि महामारी के दौरान काबा और मदीना तक बंद हैं। उन्होंने समुदाय के लोगों से रमजान के महीने में घर में ही नमाज़ पढ़ने की अपील की थी। रमजान का महीना 24 अप्रैल को शुरू हुआ था।