Saturday, April 27, 2024
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इस साल वि-रु39यव अस्थमा दिवस पर अपने फेफड़ों का नंबर जानें!

इस साल वि-रु39यव अस्थमा दिवस पर अपने फेफड़ों का नंबर जानें!लखनऊ: अस्वस्थ जीवनशैली के चलते हमें कई तरह की लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों ने घेर लिया है। धूम्रपान, कसरत न करने, अस्वस्थ खाने-ंउचयपीने और पर्यावरणीय कारकों जैसे प्रदूषण व धूल के कारण हमारे फेफड़े कमज़ोर हो जाते है। कमज़ोर फेफड़ों के कारण शरीर को सांस लेना बहुत मुश्किल हो जाता है और ज्यादातर मामलों में यह ट्रिगर अस्थमा का कारण बनता है। इसलिए अपने फेफड़ों की सेहत जानने के लिए पहला कदम ‘नो यूअर लंग नंबर‘ अपनाएं। इसका अर्थ है कि आपके फेफड़ों कितना काम करने में सक्षम है, यह जानें। अस्थमा की समस्या में फेफड़े उतनी हवा शरीर को नहीं पहुंचा पाते जितनी उसे चाहिए और जितना फेफड़े कम काम करते है, उतनी ही अस्थमा की गंभीर बीमारी होती है।
हम अक्सर मानते है कि अगर हृदय स्वस्थ है तो शरीर भी सेहतमंद होगा लेकिन यह एकमात्र कारक ही संपूर्ण सेहत का प्रतीक नहीं है। फेफड़ों की कार्यक्षमता
हमारे पूरे शरीर को प्रभावित करती है, जिसकी आमतौर पर अनदेखी की जाती है।
हाई ब्लड प्रेशर का मरीज़ नियमित रूप से बीपी चेक करता है, इससे उसे अपने बीपी के स्तर को मैनेज करना आसान हो जाता है। ठीक इसी तरह से अस्थमा के रोगियों को भी अपने फेफड़ों को चेक करते रहने की जरूरत है। नियमित रूप से चेकअप करने से आपको अपने फेफड़ों का नंबर यानि कि ‘ नो यूअर लंग नंबर‘ पता चलेगा। इस नंबर को बेहद ही किफायती और साधारण टेस्ट जैसे स्पाइरोमिट्री टेस्ट या पुल्मोनेरी टेस्ट से पाया जा सकता है।


फेफड़ों की जांच के महत्व पर ज़ोर देते हुए डाॅ. बी.पी. सिंह, डाॅयरेक्टर, मिडलैण्ड हाॅस्पिटल एण्उ रिसर्च सेन्टर कहते है, ‘‘हमें यह याद रखना चाहिए कि अस्थमा लंबी चलने वाली बीमारी है जिसका कोई इलाज नहीं है बल्कि यह इंहेलर की मदद से सही तरीके से मैनेज की जा सकती है। काफी रोगी जब खुद को बेहतर महसूस करते है तो वह इंहेलर लेना बंद कर देते है। यह काफी खतरनाक हो सकता है और इससे रोगी को सांस लेने में दिक्कत भी हो सकती है। इस वजह से उसके लिए रोज़मर्रा के काम करना मुश्किल हो सकता है। रोगियों को डाॅक्टर से परामर्श लेना चाहिए और अपने फेफड़ों को स्वस्थ और फिट रखने के लिए जरूरी टेस्ट करवाने चाहिए।‘‘ स्पाइरोमिट्री में हवा के प्रवाह को मापा जाता है, जिसमें हवा कितनी ली गई है और कितनी जल्दी ली गई, यह जाना जाता है। स्पाइरोमिट्री की मदद से व्यापक स्तर पर फेफड़ों की बीमारियांे का पता चलता है। स्पाइरोमिट्री से पता चलता है कि फेफड़े कितने अच्छे से सांस ले रहे है। जबकि पुल्मोनेरी टेस्ट से
फेफड़ों की कार्यक्षमता का पता चलता है कि फेफड़े कितने अच्छे से सांस अंदर
और बाहर ले रहे है व कितने बेहतर तरीके से आॅक्सीजन को रक्त में ट्रांसफर कर
रहे है। इन जांचों से फेफड़ों की बीमारियों का पता चलता है।

अस्थमा की शुरूआत में ही पहचान इन टेस्टों से हो जाती है और सही इलाज रोगी की स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जो रोगी अस्थमा का सही इलाज नहीं कराते, उन्हें बार बार अस्थमा अटैक होने का रिस्क रहता है, जिसकी वजह से उन्हें बार बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है और कई बार यह जिंदगी के लिए भी खतरा हो सकते है।
इस बारे में डाॅ. एस. एन. गुप्ता, डाॅयरेक्टर, संजीवनी लंग सेन्टर, लखनऊ विस्तार से कहते है,’‘ यह सम-हजयना बहुत महत्वपूर्ण है कि फेफड़ों क्षमता की जाँच क्यों आव-रु39ययक है और क्यों इन्हेले-रु39यान थेरेपी अस्थमा या सांस लेने में तकलीफ को नियंत्रित करने में प्रभावी है। इस वि-रु39यव अस्थमा दिवस पर हम अस्थमा या सांस लेने में तकलीफ से पीड़ित लोगों को आग्रह करना चाहेंगे कि अस्थमा के लक्षणों को पहचानने के लिए पहला कदम स्पाइरोमिट्री टेस्ट या पुल्मोनेरी टेस्ट कराना चाहिए, जो कि अस्थमा की पहचान में पहला कदम है। इसके इलाज से जुड़े जितने भी मिथ है, उन्हें खत्म करने की जरूरत है। इंहेल्ड
कोरटिकोस्टेराॅयड को अस्थमा के मैनेजमेंट में मुख्य व व्यापक रूप से
स्वीकार किया गया है।‘‘
डाॅ. एस.एन. गुप्ता ने यह भी बताया कि ऐसे मरीजों में अस्थमा अटैक के अवसर और ब-सजय़ जाते हैं जो कई प्रकार की दवाइएं अस्थमा के लिए लेते हैं। अस्थमा अटैक से बचाव के लिए दिन में कई बार दवाएं लेनी पड़ती है और जिनका वजन
अधिक हैं।
अस्थमा के इलाज का मुख्य उद्देश्य बीमारी को नियंत्रित करना है। अस्थमा को कंट्रोल करने के लिए भारत में इंहेलेशन थेरेपी सबसे किफायती है। इसकी कीमत चार रूपये से लेकर छ रूपये प्रति दिन आती है और इसका मतलब है कि सालभर दवाई की सप्लाई का खर्च किसी भी अस्पताल में एक रात गुजारने से भी कम आता है।
इसलिए इन बाधाओं को दूर करना बहुत महत्वपूर्ण है और इंहेलेशन थेरेपी के महत्व को सम-हजयना बहुत जरूरी है ताकि हम अस्थमा को नियंत्रित कर बेहतर जिंदगी बिता सके। इसके साइड इफैक्ट्स बहुत कम होते है और ओरल दवाइयों के डोज़ के मुकाबले इसका डोज़ बहुत कम होता है। इसलिए यह सभी उम्र के लोगों के लिए और गर्भवती महिलाओं तक के लिए भी सुरक्षित है।

रोगी को अस्थमा के लक्षणों, इलाज और देखभाल की समय पर सही और प्रमाणित जानकारी देने की जरूरत है। रोगियों के लिए इस तरह की जानकारी से भरपूर बेवसाइट है जिसमें डाॅक्टरों द्वारा प्रमाणित अस्थमा, सीओपीडी और नांक से जुड़ी एलर्जी के बारे में आसान शब्दों में जानकारी प्रदान की गई है।
शहर के पुल्मोनोलोजिस्ट अपील करते है कि इस विश्व अस्थमा दिवस के मौके पर
जांच कराएं और अस्थमा के लक्षणों को पहचानें।

ब्रीथफ्री के बारे में
ब्रीथफ्री हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की मदद से सिप्ला द्वारा की जा रही पब्लिक सर्विस है जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को अस्थमा और सांस से जुड़ी बीमारियों के प्रति जागरूक कराना है। ब्रीथफ्री कई जागरूकता से जुड़े कार्यक्रम और गतिविधियां आयोजित करता है जिसमें कैंप, क्लिनिक, रोगी स्क्रीनिंग यात्रा और ज़मीनी स्तर की कई गतिविधियां शामिल है। इसमें रोगियों को कई भाषाओं में आसानी से सम-हजय आने वाली जानकारियां मुहैया कराई जाती है।
यह सभी जानकारियां बेवसाइट ीजजचरूध्ध्ूूूण्इतमंजीमतिममण्बवउ पर है जो रोगियों और देखभाल करने वाले लोगों को सशक्त बनाती है।
अस्थमा के बारे में डाॅ. राजीव अवस्थी, वरि-ुनवजयठ, पराम-रु39र्या चिकित्सक, प्रर्थना क्लीनिक, लखनऊ के अनुसार दुनियाभर के काफी लोगों को प्रभावित करने वाली अस्थमा गंभीर बीमारी है और इस बीमारी के मामले प्रतिवर्ष ब-सजय़ते ही जा रहे है। डब्लू एचओ के अनुसार 100 से 150 मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित है। भारत में भी यह बीमारी तेज़ी से ब-सजय़ रही है और इसके 15-ंउचय20 मिलियन मामलें देखे गए है और इन नंबरों में लगातार इजाफा होता जा रहा है। इसलिए इस बीमारी की पहचान करके उसका समय पर इलाज करना बहुत जरूरी है ताकि अस्थमा को बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सके।
अस्थमा एक दीर्घकालिक सांस से जुड़ी बीमारी है, जिसमें फेफडों की सांस की नलियों में सूजन आ जाती है। सूजन के कारण सांस की नलियां सिकुड जाती है और फेफडें अति संवेदनशील हो जाते है। कोई भी एलर्जी अस्थमा अटैक में ट्रिगर का काम करती है। धूल, ठंड, पराग, जानवरों के फर व वायरस और हवा के प्रदूषक और कई बार भावनात्मक गुस्सा भी अस्थमा अटैक का कारण बनता है। आमतौर पर अस्थमा के लक्षणों में बार बार छाती में जकड़न, सांस लेने में दिक्कत और खांसी है। बच्चों में अस्थमा का महत्वपूर्ण लक्षण रात या सुबह जल्दी खांसी रहना है। कई तरह के खांसी के सिरप और अन्य दवाइयां लेने के बावजूद खांसी का लगातार रहना अस्थमा का लक्षण हो सकता है। हालांकि अस्थमा पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता लेकिन इसे नियंत्रित करके सक्रिय जिंदगी को जिया जा सकता है। अस्थमा को नियंत्रित करने के लिए बाज़ार में कई तरह की थेरेपियां व दवाइयां मौजूद है लेकिन दुनियाभर में इंहेलेशन थेरेपी को सबसे बेहतरीन व सुरक्षित तकनीक माना गया है क्योंकि इसमें दवाइयों का डोज़ सीधे फेफडों में पहुंचता है और तुरंत असर करता है। इसके साथ यह भी ध्यान देने योग्य है कि इंहेलेशन थेरपी में टैब्लेट या सिरप के मुकाबले 20 गुना कम डोज़ है और कम डोज ही बहुत प्रभावी होता है।

https://www.youtube.com/watch?v=EDLtmFX4w9o


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