हरिद्वार भूमि घोटाला: नगर आयुक्त पर उठे सवाल, बिना अनुमति नगर आयुक्त ने बदल दी थी मनसा देवी रोपवे टेंडर की शर्तें

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हरिद्वार नगर निगम भूमि घोटाले में निलंबित आयुक्त वरुण चौधरी की मुश्किलें बढ़ रही हैं। मनसा देवी रोपवे टेंडर में उन पर बोर्ड की अनुमति के बिना शर्तें बदलने का आरोप है। जांच में पाया गया कि बोर्ड गठन के बाद भी उन्हें अंधेरे में रखा गया। अनुभवहीन कंपनियों के टेंडर डालने पर सवाल उठे। अब रोपवे संचालन के लिए पांच वर्ष का अनुभव अनिवार्य किया गया है।

हरिद्वार के चर्चित नगर निगम भूमि घोटाले में निलंबित नगर आयुक्त वरुण चौधरी की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। मनसा देवी रोपवे टेंडर मामले में तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं। रोपवे प्रकरण की जांच में पता चला कि तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी ने नगर निगम बोर्ड की मंजूरी के बगैर ही टेंडर की शर्तों में बदलाव कर दिया था।

जांच में सामने आया है कि सात फरवरी 2025 को नगर निगम बोर्ड का गठन होने के बाद भी तत्कालीन नगर आयुक्त ने इस मामले को लेकर निर्वाचित बोर्ड को अंधेरे में रखा। आलम यह है कि नियमानुसार नगर निगम बोर्ड में इससे संबंधित प्रस्ताव लाया जाना चाहिए था। उस पर चर्चा होनी थी, लेकिन इन प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। केवल महापौर से अनुमोदित कराकर प्रक्रिया पूरी कर दी।

टेक्निकल बिड खुलने पर टेंडर में किए गए बदलावों का पता चला। सड़क और भवन बनाने वाली फर्मों ने भी टेंडर डाले हैं, जिनके पास रोपवे संचालन और अनुरक्षण का कोई अनुभव नहीं है। इन फर्मों में गुरुग्राम हरियाणा के बिल्डर के भी नाम आ रहे हैं। बहरहाल इस क्षेत्र में अनुभव रखने वाली कंपनी उषा ब्रेको अदालत गई तब जाकर नगर निगम ने स्वत: टेंडर रद कर दिए।

तत्कालीन नगर आयुक्त के स्तर से टेंडर शर्तों में बदलाव किए जाने से पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। महापौर किरण जैसल का कहना है कि नया-नया बोर्ड का गठन हुआ था। इस वजह से वह प्रक्रिया को भलीभांति समझ नहीं पाई थी। बहरहाल 10 जून 2025 को कोर्ट ने अपने आदेश में एक माह के भीतर दोबारा टेंडर कराने के आदेश दिए हैं। जिसके अनुपालन में नगर निगम ने तैयारी शुरू कर दी है।

लैपटाप और स्ट्रीट लाइट खरीद में भी गड़बड़ी की आशंका

करीब सवा साल नगर निगम में प्रशासक राज रहा। तब भी नगर आयुक्त वरुण चौधरी थे। 49 लैपटाप साढ़े तीन करोड़ रुपये में खरीदने और करीब इतनी ही लागत से स्ट्रीट लाइट भी खरीदी गईं। अब इसे लेकर भी सुगबुगाहट शुरू हो गई है।

अब रोपवे संचालन को न्यूनतम पांच वर्ष का अनुभव जरूरी

मां मनसा देवी रोपवे संचालन के लिए बिना अनुभव वाली कंपनियों को टेंडर प्रक्रिया में शामिल करने के मामले में शासन की ओर से गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। जिसमें रोपवे संचालन और अनुरक्षण (ओएंडएम) में कम से कम पांच वर्ष का वर्ष अनुभव रखने वाली कंपनी ही अब टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा ले सकती है।

पहले न्यूनतम दो वर्ष का अनुभव रखने वाली फर्म हिस्सा ले सकती थी। रिपोर्ट के आधार पर ही अब नगर निगम प्रशासन जल्द दोबारा टेंडर की प्रक्रिया शुरू करेगा। नगर आयुक्त नंदन कुमार ने बताया कि टेंडर को लेकर गठित कमेटी की रिपोर्ट पर शासन की मुहर लग गयी है। कमेटी की मुख्य सिफारिशों में रोपवे संचालन और अनुरक्षण में कम से कम पांच वर्ष का अनुभव रखने वाली फर्म के टेंडर में हिस्सा लेने को अनिवार्य किया गया है। जल्द नए टेंडर किए जाएंगे।

पहले भी आया था मामला हाई कोर्ट में

मनसा देवी रोपवे का मामला 2023 में भी हाई कोर्ट पहुंचा था। तब कोर्ट ने नगर निगम को रोपवे के लिए नए सिरे से निविदा प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश देते हुए साफ कहा था कि वर्तमान निविदा को 31 मार्च 2023 से आगे न बढ़ाया जाए। हरिद्वार निवासी नीरव साहू ने याचिका दायर कर कहा था कि मनसा देवी रोपवे का कार्य 40 साल की लीज पर 1973 में ऊषा ब्रेको रोपवे लि. को दिया गया था।

यह लीज 2020 में समाप्त हो गई, लेकिन फिर से कंपनी को 3.30 करोड़ सालाना में नियम विरुद्ध तरीके से रोपवे संचालन का कार्य दे दिया जबकि नियमानुसार निविदा होने पर अधिक आय होती। कंपनी का कहना था कि वह नगर निगम को सालाना 6.50 करोड़ की धनराशि पट्टा किराया के रूप में भुगतान को तैयार है, यही नहीं बेचे गए प्रत्येक टिकट पर छह रुपये उपकर के रूप में भी दिया जाएगा।

इसके बाद कोर्ट ने सरकार के प्रार्थना पत्र 25 जून 2023 के आदेश को संशोधित कर नगर निगम को दस अप्रैल 2024 तक रोपवे संचालन की अनुमति देने के लिए छूट प्रदान की थी।

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