एस. एन. वर्मा
हरितक्रान्ति के जन्मदाता भारत को आकाल से मुक्त कराकर दुनिया का अन्नदाता बनाने वाले कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन का 98 वर्ष की उम्र में देहअवसान हो गया। उनको अवदानो के देखते हुये प्रधानमंत्री ने ठीक ही उन्हें नवाचार का एक ऊर्जाघर कहा। टाइम्स ने उनकी प्रतिभा और अवदान को देखते हुये उन्हें 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली एशियाई लोगो की सूची में रक्खा। देश विदेश ने उन्हें अनेको पुरस्कारों से सम्मानित किया पर वह इन सबके ऊपर थे।
वैज्ञानिकों की शानदार उपलब्धि मून लैन्डिग है पर उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है प्लान्ट जेनेटिक्स के उपयोग से खद्यान्न उपज बढ़ाना। 1965 तक भारत भुखमरी का शिकार था। अमेरिका से लाल गेहूं जिसका सार तत्व अमेरिका निकाल कर समुद्र में फेंक देता था। वह भारत में आकर लोगो का पेट भर रहा था। उस समय जनसंख्या पांच मिलियन से ज्यादा थी और गेहूं की पैदावार 12 मिलियन टन थी।
बंगाल के आकाल ने स्वामी नाथन को हिला दिया था। स्वामीनाथन के पास कृषि की डिग्री थी सिटी जेनेटिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट थे। 1949 में इन्डियन पुलिस सर्विस में चुने जाने के बावजूद पुलिस सेवा ठुकरा दिया। उन्होंने यूनेस्को फेलोशिय जेनेटिक्स को तरजीह दी और कैम्बिज में डाक्टरेट को तरजीह दी। इससे पहले अमेरिका विसकोन्सिल यूनीवर्सिटी में पोस्ट डाक्टोरल रिसर्च के लिये जा चुके थे।
वहां पर उनकी मुलाकात 1958 में नारमन बारलाग से हुई। वहां बारलाग गेहू में रस्ट रोम लगने पर स्पीच दे रहे थे और नियन्त्रण के उपाय बता रहे थे। इनसे स्वामी नाथन प्रभावित थे इसके बाद स्वामीनाथन का सम्बन्ध उनसे बना रहा। स्वामी नाथन भारत लौट आये और सरकारी नौकरी कर ली। 1959 में बरलाग ने मेक्सिको के हाई यील्डिंग गेहूं के उपज से प्रभावित हो बहुत ही गुलाबी तस्वीर प्रचारित की। इसमें जापानी डवार्फिंग जेनी का प्रयोग किया था। स्वामी नाथन एशिया के इकलौते प्लान्ट जेनिसिस्ट थे इससे बहुत प्रभावित हुये। स्वामी नाथन ने गौर किया भारत की सबसे अच्छी गेहूं, चावल की किस्म अनुकूल हालत में फटीलाईजर के समुचित उपयोग के बावजूद औसत पैदावार से 20 से 30 प्रतिशत ही पैदावार बढ़ा पाती है। इनके पौधो के नाजुक पेड़ बड़े दाने को भार उठा पाने में अक्षम थे। स्वामी नाथन उस समय एग्रीकल्चरल रिसर्च इन्स्ट्रीटयूट में गेहूं का कार्यक्रय देख रहे थे। 1962 में अपने डायरेक्टर को पत्र लिखा जिसमें बरलाग के सेमी डवार्फ गेहूं की सफलता के बारे बताते हुये जिसमें गेहूं के अधिक दाने लगते है, जिसका बारलोग ने मेक्सिको में परीक्षण किया था उसपर भारत में भाषण देने के लिये बुलाने का अनुरोध किया और बारलाक भाषण देने भारत आये।
जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने और सुब्रमनियम कृषिमंत्री बने तो भारत में चल रही अन्न की कमी से वे आहत थे उसे दूर करने के उपाय के लिये गम्भीरता से विचार कर रहे थे। स्वामीनाथन सरकार के अन्न नीति को प्रभावी ढंग से संचालन करने के लिये संस्थाओ में रह कर भारत की इस सम्बन्ध में नीति को प्रभावित कर सरकार का मार्गदर्शन भी कर रहे थे। शास्त्री जी और सुब्रमनियम राकफेलर फाउनडेशन को जो मेकिस्को के कार्यक्रम को फन्ड मुहैया करा रहा था। पत्र लिखा बारलोग कि सेवायें उपलब्ध कराने के लिये और उनको डवार्फ मेक्सिकन व्हीट सीड देने और उपलब्ध कराने के लिये। 1963 में बारलाग भारत आये और उसके बाद 100 किलोग्राम डवार्फ-सेमीडवार्फ बीज भारत को उपलब्ध कराया। पंजाब के किसानों को प्रदर्शन प्लाट के रूप में उसे उठाने के लिये मनाया गया। चूकि यह बीज लाल रंग का था इसलिये भारतीय वैज्ञानिको ने स्थानीय बीज से क्रास कराया जिससे गेहूं का रंग लाल से सुनहरा हो गया। यही मेक्सिको को का बीज स्वामी नाथन की सूझबूझ और सरकारी सहयोग से भारत के अन्न उत्पादन में हरितक्रान्ति पैदा कर दी। भारत जो भूख मिटाने के किये दूसरे देशो खासकर अमेरिका का मोहताज था वह विदेशियो की भूख मिटाने अग्रसर है के लिये अनाज का निर्यात करने लगा। आज भारत जिस अवस्था में है विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।
बारलोग 1964 में भारत आये मेक्सिकन गेहूं की हाईयिंल्डिग किस्म का पहला जहाज आया जिसको प्रदर्शन के लिये खेतो में बोया गया। पंजाब, दिल्ली, कानपुर पन्तनगर और बेलिंगटन में इनको प्रदर्शन प्लाट बनाये गये। इनकी बढ़ी उपज ने किसानों को बहुत प्रभावित किया। पंजाब यूनिवर्सिट ने प्रदर्शित किया 3291 प्रति हेक्टयर की जगह उपज बढ़कर 4690 प्रति हेक्टर पर हो गई। 1965 में सरकार की वजह से मेक्सिकन बीज 250 टन मंगाया गया।
इस तरह स्वमीनाथन का हरितक्रान्ति का सपना पूरा हुआ। स्वामी नाथन ने भारतीय महिलाओं के लिये भी योजना बना उन्हें कृषि मजदूरी से निकालकर उद्यमी बनाता उन्होंने कृषि से सम्बन्धित कई संस्थाओं खेती जिसका संचालन महिलाये कुशलतपूर्वक रही है। इस तरह मेक्सिकन गेहूं कि 100 किलोग्राम नमूने भारत की अन्न की उपज में काया पलट कर दी। आज लाखो गरीब बढ़े अनाज को खाकर स्वामीनाथन को दुआएं दे रहे है।
हरितक्रान्ति के जनक को विनम्र श्रद्धाजली