धर्मान्तरणों पर कोर्ट का सख्त रूख

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

 

 

धर्मान्तरणों की प्रक्रिया बहुत पुरानी है। जैसे-जैसे नये सम्प्रदाय और धर्म बनते गये लोग स्वेच्छा से धर्म और सम्प्रदाय बदलते गये। पर धर्मान्तरण में और अबके धर्मान्तरण में बहुत फर्क है पहले लोग धर्म और सम्प्रदाय के प्रवचनों से प्रभावित होकर धर्म बदलते रहे। हालाकि कुछ सिरफिरे धर्म प्रधानों और सम्प्रदा प्रधानों में ज्यादती भी की है। कल्ते आम भी हुआ है। फिर भी व्यक्ति की स्वतन्त्रता बहुत हद तक कायम रही है। जैसे समाज में आम आदमी सभ्य और कानून सम्मत होते है उनमें कुछ असामाजिक और जुर्मी भी निकल आते है। यही हाल धर्म और सम्प्रदायों का भी रहा है। पर वर्तमान जो धर्म परिवर्तन हो रहे है वे लालच देकर बहला फुसला कर डरा धमका कर कराये जा रहे है। यहां तक की शादी नामक संस्था भी इससे अछूती नही है। शादी झासा देकर हर तरह के शोषण के साथ धर्म परिवर्तन भी कराया जाता है। कुछ मामलों में अगर वे सफल नही होते तो हत्या भी कर देते है।
इन सबके परिप्रक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुये सरकार से पूछा है कि जबरन धर्मान्तरण को रोकने के लिये क्या कदम उठाये जा रहे है। जवाब एक सप्ताह के अन्दर मांगा है। कोर्ट ने सख्त होने की वजह का खुलासा किया है कि लालच देकर डरा धमका कर बहला फुसला कर कराया जाने वाला धर्मान्तरण धार्मिक स्वतन्त्रता नही है बल्कि नागरिको को संविधान में मिले धार्मिक स्वतन्त्रता का उल्लंघन है। यह भी कहा यह धर्मान्तरण देश के लिये खतरा भी पैदा कर सकता है। भारत के सालिसिटर जेनरल ने यह भी बताया कि देश के आदिवासी बहुल क्षेत्र में यह घटनायें बहुतायत से मिलती है। आदिवासी गरीब भी है अशिक्षित भी है, भौगोलिक दृष्टि से भी मुल्क से कटे पिटे है। यहां दूसरे सम्प्रदाय और धर्म वाले बहुतायत से अड्डा जमाये हुये है। गांव के छोटे से छोटे हिस्सों में दूर दराज के इन्टिरियर क्षेत्रों में अड्डा बनाये हुये है। ये लोग आदिवाससियों के अशिक्षा और गरीबी का बहुत बुरी तरह दोहन करते है और धर्म परिवर्तन कराते है।
मै खुद अपने आंखो से देखी एक घटना बता रहा हॅू। मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ नही बना था तो मै वहां सरकारी नौकरी में था। हमारा जाब एसे था की काम के सिलसिले में गांवों का भी दौरा हमारे जाब का हिस्सा था। एक गरीब आदिवासी परिवार का बच्चा बिमार बड़ा उसके दवा के नाम पर वहां का धर्मप्रधान शीशी में पानी भर कर पिलाता रहा कहा देखे इससे कोई फायदा नही हो रहा है अब मै अपने धर्म की दवा देता हॅू सही दवा देने पर बच्चा ठीक हो गया। उसने कहा देखा हमारे धर्म का चमत्कार इस धर्म से गरीबी भी दूर होगी और रोग भी दूर भागेगा।
भोला भाला आदिवासी उनके चंगुल में आ गया। उसे तुरन्त पहनने को कपड़े दे दिया और कुछ खाने की व्यवस्था कर दी। धार्मिक दृष्टि से यह क्रिया तो पाप की श्रेणी में आयेगा पर इसे पुण्य की संज्ञा परिवर्तन कराने वाले देते है।
अनपढ़ और गरीबों को यह भी नही पता चल पाता है कि उनके साथ साजिश हो रही है। धर्मान्तरण कराने वालो की वाणी में मिठास और साहनुभूति से पूर्ण रहती है कि उन्हें लगता है ये उनके तारनहार बनके आये है उनकी मदद कर रहे है। अधिकार की बात तो वे जानते भी नहीं क्या होता है।
धर्म चाहे सही हो या गलत इसका मसला बहुत ही जटिल होता है। यह मामला अतिसंवदेनशील होता है। क्योकि धर्म के नाम पर अभी भी उग्रता देखी जाती है। भाई चारा बिगड़ता देखने को मिलता है। इस मामले की नज़ाकत को समझते हुये सही नियम बने जिससे धर्म चुनने की स्वतन्त्रता पर कोई आंच न आये। क्योकि कुछ लोग अन्य धर्म के दर्शन और शिक्षाओं से प्रेरित होकर धर्म परिवर्तन करते है तो उनकी धार्मिक स्वतन्त्रता बनी रहे। उस पर कोई आंच नही आये। यह सरकार को भी देखना है और कोर्ट को भी देखना है।
वर्ममान में धर्म को ले असाहिष्णुता बढ़ती दिख रही है। धर्म को लेकर संकीर्ण विचार प्रगट किये जा रहे है। इसे लेकर दंगा फंसाद भी हो रहा है। इसे रोकने के लिये कदम उठाने की जरूरत है। यह भी देखना है कि धर्मनिरेपक्षता पर कोई आंच नही आये।
जो सम्प्रदायिक धार्मिक संस्थान है स्वस्थ बहस करे स्वस्थ रूप से अपने अपने मत का प्रचार करे। किसी पर भी किसी तरह जुल्म नही ढाये। सभी धर्मो का निचोड़ है सौहर्द बढ़ाना। प्रबुद्ध नागरिक उत्सुक्ता से सरकार की ओर देख रहा है कि जबरन धर्मान्तरण के खिलाफ सरकार क्या कदम उठाती है और क्या नियम कानून बनाती है। इसमें जिम्मेदार नागरिको और एनजीओ की भी भूमिका महत्वपूर्ण बन सकती है यदि वे इस मामले पर स्वस्थ बहस उठाये। संविधान की धर्मनिरपेक्ष की भावना सर्वोपरि रहनी चाहिये। समाज की समरसता बनी रहनी चाहिये।

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