Tuesday, April 30, 2024
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HomeUttar PradeshLalitpurसम्राट अशोक महान की 2328वीं जयन्ती मनायी

सम्राट अशोक महान की 2328वीं जयन्ती मनायी

अवधनामा संवाददाता

भारत के इतिहास में सम्राट अशोक मानवतावादी धम्मप्रिय और
प्रजापालक कोई दूसरा सम्राट नहीं हुआ : घनश्यामदास सेन

ललितपुर। अखिल भारतीय सेन समाज उ.प्र. के तत्वाधान में आयोजित एक बैठक प्रदेश अध्यक्ष घनश्यामदास सेन पत्रकार के मुख्य अतिथ्यि में संपन्न हुयी। बैठक में भारत के महान सम्राट अशोक की 2328वीं जयन्ती मनायी गयी। इस दैरान उनके जीवनकाल में किये गये कार्यों एवं शिलालेखों के स्तम्भ लेखों के बारे में प्रकाश डाला गया। सम्राट अशोक का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी को तदानुसार ईसा पूर्व 304 में हुआ था। वह 40 वर्ष बिना तलवारर के धम्म के सहारे शासन करने के बाद 72 वर्ष की आयु में ईसा पूर्व 232 में परिनिवृत्व हुये थे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रदेश अध्यक्ष घनश्यामदास सेन पत्रकार ने कहा कि ईसा, बुद्ध, अरस्तु, बेकन व लिंकन के साथ सम्राट अशोक को भी इतिहास में 6 प्रमुख व्यक्तियों में सम्मान दिया गया है। विश्व के इतिहास में सिकन्दर, समुद्रगुप्त, नेपोलियन जैसे विजेता हुये हैं। किन्तु किसी को भी वह सम्मान प्राप्त नहीं हुआ जो सम्राट अशोक को मिला है। विश्व के इतिहास में आज तक सम्राट अशोक की बराबरी किसी से भी नहीं की जा सकती है। सम्राट अशोक उदारता की मूर्ति व मानवता के सबसे बड़े पुजारी थे। विश्व के इतिहास के रंगमंच पर जितने प्रतिष्ठित सम्राटों के अदभुत कृतित्व के द्वारा अमर कीर्ति प्राप्त की है, उन सब में सम्राट अशोक का नाम अग्रणी है। प्राचीन भारत के सम्राटों में सम्राट अशोक को अद्वितीय एवं महानतम सम्राट माना गया है। उनकी महानता का कारण उनके विशाल सम्राज्य को नहीं उनके चरित्र आदर्श और सिद्धांतों को बताया गया है, जिनके अनुसार उन्होंने शासन किया था। प्रत्येक युग और प्रत्येक राष्ट्र ऐसे राजा को जन्म नहीं दे सकता। सम्राट अशोक का स्थान भारत ही नहीं संसार के महानतम सम्राटों में प्रथम माना जाता है। सम्राट का विवाह विदिशा के एक सेठ की पुत्री महादेवी के साथ हुआ था। महादेवी से महेन्द्र व संघमित्रा थे, जो महेन्द्र से दस साल छोटी थी। यह पुत्र-पुत्री बाद में भिक्खू संघ में प्रवजित होकर श्रीलंका में धर्मदूत बनकर पहुंचे। अध्यक्षता करते हुये राकेश कुमार सेन ने कहा कि सम्राट अशोक तीव्र और कुशाग्र बुद्धि के थे। राजा विन्दुसार ने सम्राट अशोक की शिक्षा-दीक्षा की उचित व्यवस्था की। उन्होंने शीघ्र ही सभी शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिया। कार्यक्रम में बृजनन्दन सेन, मदनलाल सविता, कन्हैयालाल सेन, मोतीलाल नापित, सुखलाल सेन, बालकृष्ण सेन, श्रीराम सेन, राकेश कुमार सेन, जमना प्रसाद सेन, प्रभुदयाल सेन एड., करन सिंह वर्मा एड., महेन्द्र स्वरूप सविता एड., राममूर्ति सविता एड., दर्शन बड़ौनियां एड., मनीष याज्ञिक एड., सीताराम सेन, घनश्यामदास सेन, अशोक कुमार सेन, रघुवीर सेन, गिरीश सविता, विनोद कुमार नापित, दयाराम सेन, रामबाबू याज्ञिक, प्रमोद कुमार सेन, बद्री प्रसाद सेन, अनूप कुमार सेन, रविशंकर सेन, पुनीत कुमार सेन, जितेन्द्र कुमार सेन, प्रकाश नारायण सेन, महेश कुमार सेन, गौरव सेन एड., मुकेश कुमार सेन, पूरनलाल सेन, अयोध्या प्रसाद सेन, रामकुमार सेन, कैलाश नारायण सेन, आशाराम सेन, राजेन्द्र कुमार सेन, गोकुल प्रसाद सेन, मुन्नालाल सेन, लक्ष्मन सेन, रमेश कुमार सेन, मुन्नीलाल सेन आदि उपस्थित रहे। संचालन दयाराम सेन व आभार जितेन्द्र सेन ने व्यक्त किया।

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